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लोगों की आस्था का अनुष्ठान है सूर्यषष्ठी व्रत

गोपालगंज : व्रतों, त्योहारों, अवतारों और अनुष्ठानों की दृष्टि से कार्तिक मास सर्वोत्तम माना गया है. इसे देवमास भी कहते हैं. इस पवित्र मास में न सिर्फ शिव सुत कार्तिकेय ने पृथवी पर पदार्पण किया, बल्कि राम भक्त हनुमान, धन-ऐश्वर्य दात्री लक्ष्मी व दानवता के काल कालि का भी अवतरण हुआ. कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को […]

गोपालगंज : व्रतों, त्योहारों, अवतारों और अनुष्ठानों की दृष्टि से कार्तिक मास सर्वोत्तम माना गया है. इसे देवमास भी कहते हैं. इस पवित्र मास में न सिर्फ शिव सुत कार्तिकेय ने पृथवी पर पदार्पण किया, बल्कि राम भक्त हनुमान, धन-ऐश्वर्य दात्री लक्ष्मी व दानवता के काल कालि का भी अवतरण हुआ.

कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को विष्णु के अशधारी महान वैद्य धन्वंतरि भी मंथन के दौरान हाथ में अमृत कलश लिये बाहर निकले थे. अभिजीत ग्रुप के मुख्य आचार्य पंकज शुक्ला की मानें, तो देवोत्थान के रूप में चर्चित कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को भगवान विष्णु ने लोक कल्याणार्थ जागरण की ज्योति जलायी. ऐसी भी मान्यता है कि लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात भगवान राम कार्तिक अमावस्या को ही अयोध्या पहुंचे थे.

इसके अलावा इस माह में भातृद्वितीया, चित्रगुप्त पूजा, अक्षय नवमी समेत कई और पर्व व पूजनोत्सव होते हैं. सूर्यषष्ठी व्रत न केवल इस माह बल्कि सभी अनुष्ठानों में सर्वोत्तम माना गया है. इस व्रत के प्रभाव से उपासकों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. शरीर के असाध्य रोग, श्वेत कुष्ठ आदि समूल नष्ट हो जाते हैं. सूर्य को लाल रंग सर्वाधिक पसंद है.
इसलिये लाल वस्त्र धारण कर अर्घ देना और लाल वस्त्र दान करना श्रेयस्कर होता है. सूर्यषष्ठी व्रत का निरंतर अनुष्ठान करनेवाले व्यक्ति पर शनि ग्रह का प्रकोप कभी नहीं होता है, क्योंकि शानिदेव सूर्य के प्रिय पुत्र है. कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति का पुत्र होने के कारण सूर्य को आदित्य भी कहते हैं. इनकी पुत्री यमुना है जिस कारण इन्हें जल अधिक प्यारा है.
पत्नी इंद्रवारुणी को छठी मइया के नाम से भी संबोधित किया जाता है. सूर्यषष्ठी व्रत का प्रचलन बिहार व झारखंड समेत यूपी के कुछ हिस्सों में परिदृश्य है. लेकिन, तेजी से इसका विस्तार कई राज्यों तक हो रहा है. व्रत के कुछ दिन पूर्व से ही देश के अधिकतर हिस्सों में छठ के गीत शुरू हो जाते हैं.
जल में हीं अर्पित करें अर्घ : व्रतियों को हमेशा अर्घ जल में ही अर्पित करना चाहिए. अर्घदान के समसय द्वादश सूर्य(घाता, मित्र, अर्यमा, रुद्र, वरुण, सूर्य भग, विवश्वान, पूषा, साविता, त्वाष्टा, विष्णु) का नाम लेकर ध्यान करना चाहिए. रात में जागरण व मंगल गीत गाकर सूर्य देव को प्रसन्न करना चाहिए.

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