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गोपालगंज के छोरे ने मुंबई में मचाया धमाल

पंकज को मिला विशेष पुरस्कार गोपालगंज में खुशियों की लहर दौड़ी गोपालगंज : गंवई मिट्टी में पलकर अभिनय की दुनिया में पहुंचने वाले पंकज त्रिपाठी सिने जगत में आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है. गंवई नाटक मंच से अपने सिने में अभिनय की आग लिये रुपहले पर्दे पर पहुंचने वाले पंकज त्रिपाठी ने गोपालगंज […]

पंकज को मिला विशेष पुरस्कार

गोपालगंज में खुशियों की लहर दौड़ी
गोपालगंज : गंवई मिट्टी में पलकर अभिनय की दुनिया में पहुंचने वाले पंकज त्रिपाठी सिने जगत में आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है. गंवई नाटक मंच से अपने सिने में अभिनय की आग लिये रुपहले पर्दे पर पहुंचने वाले पंकज त्रिपाठी ने गोपालगंज ही नहीं बिहार का भी नाम रोशन किया है. शुक्रवार को नेशनल अवार्ड की घोषणा के दौरान जब पंकज त्रिपाठी को विशेष पुरस्कार देने की घोषणा की गयी तो गोपालगंज में खुशियों की लहर दौड़ गयी. उनके पैतृक गांव बेलसंड में आतिशबाजी होने लगी.
पंकज को यह पुरस्कार न्यूटन फिल्म में आत्मा सिंह का किरदार निभाने के लिए मिला है. 2004 में फिल्म रन के साथ अभिनय की शुरुआत करने वाले पंकज त्रिपाठी अब तक 40 से ज्यादा फिल्म और करीब 60 टेलीविजन सीरियल में काम कर चुके हैं. गैंग्स ऑफ वासेपुर, बरेली की बर्फी, फुकरे, फुकरे रिटर्न्स, सिंघम रिटर्न्स, मांझी: द माउंटेन मैन और न्यूटन जैसी फिल्मों में पंकज ने शानदार अभिनय किया है. मायानगरी में गोपालगंज के छोरे के धमाल से जिलावासी गौरवान्वित हैं.
बचपन से ही धधक रही थी अभिनय की आग : बरौली प्रखंड के बेलसंड गांव में पंडित बनारस त्रिपाठी और हेमवंती देवी के दूसरे पुत्र पंकज हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान ही दीवाली और छठ के मौके पर होने वाले नाटकों में भाग लेते थे. गांव में होने वाले नाटकों में पंकज नायिका की भूमिका निभाया करते थे. वे बताते हैं कि कभी-कभी इस पर डांट भी पड़ती थी. किसान परिवार से आने वाले पंकज के मैट्रिक पास करने के बाद उनके पिता ने मेडिकल की तैयारी करने के लिए पटना भेजा. वहां पंकज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गये. बाद में होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर मौर्या होटल में नौकरी भी की लेकिन अभिनय की आग शांत नहीं हुई. सात वर्ष तक पटना रहने के बाद वर्ष 2004 में वह दिल्ली गये और नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा में एडमिशन लिया. कोर्स पूरा करने के बाद पंकज मायानगरी पहुंच गये.
बेटा नहीं बना डाॅक्टर, लेकिन नाम किया रोशन : फिल्म फेयर अवार्ड मिलने के बाद पंकज के परिवार में खुशी का ठिकाना नहीं है. पंकज के पिताजी बताते हैं कि इच्छा तो थी कि बेटा डाॅक्टर बने. लेकिन आज जब उसे पुरस्कार मिलने की सूचना मिली तो सीना खुशी से फूल गया. माता हेमवंती, भाई विजेंद्र और पूरा परिवार इस सम्मान से खुश है.
कंटेंट की हुई जीत : पंकज
छत्तीसगढ़ के नक्सलग्रस्त इलाके में फ्री एंड फेयर चुनाव करवाने के विषय पर आधारित ‘न्यूटन’ में असिस्टेंट कमांडेंट का किरदार निभाने वाले पंकज त्रिपाठी ने कहा कि इस फिल्म को पुरस्कार के लिए चुना जाना इस बात का प्रमाण है कि अब हिंदी सिनेमा बदल रहा है. उन्होंने कहा कि जो कहानी मिली थी, हमें बस उसे ही अच्छे से बनाना था और हम ऐसा कर पाये, मुझे इसकी बेहद खुशी है. ज्यादातर नये लोगों की टीम की यह छोटी-सी फिल्म दिखाती है कि इंडियन ऑडियंस अब बदल रहे हैं.
और उन्हें कंटेंट आधारित फिल्में पसंद आ रही हैं.
अब कहानी ही फिल्म का असली हीरो बन चुकी है. मेरे लिहाज से यह सिनेमा का अच्छा दौर है और इस वजह से मेरे जैसे एक्टर्स को भी अब सम्मान मिलने लगा है.
शूटिंग के दौरान गंवई जीवन का मिला लाभ
पंकज बताते हैं कि ‘न्यूटन’ की शूटिंग के वक्त अक्सर मुझे घर की याद आ जाती थी. उन्होंने बताया, जिस जंगल में शूटिंग हो रही थी, वहां वैनिटी वैन पहुंच ही नहीं सकता था. इसलिए ब्रेक में आराम करने के लिए मैंने गांव के लोगों से एक खटिया का जुगाड़ कर लिया था. उसे देखकर रघुवीर यादव भी कहने लगे कि मेरे लिए भी खाट मंगवा दो भाई! हम दोनों को जब भी ब्रेक मिलता, हम पेड़ के नीचे खाट पर लेटकर आराम कर लेते थे. ऐसा लग रहा था, मानो अपने गांव में हूं.
पंकज बताते हैं कि न्यूटन को भिलाई के जंगलों में शूट किया गया है. इन जंगलों के पास ही एक गांव है. शूट में कुल 40 दिनों का समय लगा. इस वजह से 40 दिन तक हम मोबाइल और इंटरनेट से दूर थे. शाम को शूटिंग करके जब वापस जाते थे, तब फोन का नेटवर्क तो कभी-कभार मिल जाता था, लेकिन इंटरनेट से तो पूरी तरह से कट गये थे. लंच के लिए भी हमें जंगल से काफी चलकर जाना पड़ता था, क्योंकि जंगल में खाना बनाने की इजाजत नहीं थी.
सबसे मजेदार बात यह रही कि हमारी फिल्म में काम कर रहे आदिवासियों को हमारा खाना पसंद नहीं आया. एक दिन तो उन्होंने हमारी कैटरिंग में खाया, लेकिन दूसरे दिन से वे अपना खाना खुद ही बनाने लगे. उन्हें हमारा खाना ज्यादा तेल-मसाले वाला लगता था. वे पानी वाला चावल बनाते थे, जिसमें नमक होता था. मुझे तो उनके चावल ही पसंद आते थे.
जब प्रेम विवाह किया तो परिजन हुए थे नाराज
एक तरफ अभिनय का जुनून और दूसरी तरफ प्रेम विवाह ने पंकज को परिवार वालों से कुछ समय के लिए अलग-थलग कर दिया. जब अपने संबंधी के यहां ही मृदुला से पंकज ने प्रेम विवाह किया तो परिजन नाराज हो गये. प्रेम विवाह के चंद दिनों बाद ही पंकज का चयन नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा, दिल्ली में हो गया और यहीं से मुंबई पहुंचने का उनका रास्ता भी बना.
बचपन में ही सम्मान पाने की लगी ललक : पंकज
पुरस्कार मिलने पर अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने कहा कि बचपन में अखबारों में जब सम्मान मिलने की बात पढ़ते थे तो मन में एक लालसा उठती थी कि काश, हमें भी पुरस्कार मिलता. आज वह सपना साकार हो गया. उन्होंने कहा कि किसी भी कलाकार को सम्मान मिलने उसे हौसला देता है और अच्छा से अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है. इस सवाल पर कि क्या उन्हें पुरस्कार मिलने की उम्मीद थी, उन्होंने कहा कि पुरस्कार मिलने की तो मुझे उम्मीद नहीं थी, हालांकि फिल्म काफी अच्छी थी.

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