गया: गया जंकशन के अलावा जिले के अन्य रेलवे स्टेशनों से कई बार बाल मजदूरों को छुड़ाया गया है. यही नहीं जीटी रोड पर बसे जिलों से भी बाल मजदूरों को छुड़ाया गया है और इनकी काउंसलिंग की गयी है. बच्चों को काउंसलिंग के बाद घर भेज दिया जाता है. लेकिन, इसके बाद इनकी कोई सुध नहीं लेता. गया के आसपास के जिलों जैसे औरंगाबाद, रोहतास या कैमूर में भी जीटी रोड के लाइन होटलों से छुड़ाये जानेवाले अधिकतर बच्चों में गया के ही होते हैं.
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10 साल में एक हजार से अधिक बच्चे छुड़ाये
गया: गया जंकशन के अलावा जिले के अन्य रेलवे स्टेशनों से कई बार बाल मजदूरों को छुड़ाया गया है. यही नहीं जीटी रोड पर बसे जिलों से भी बाल मजदूरों को छुड़ाया गया है और इनकी काउंसलिंग की गयी है. बच्चों को काउंसलिंग के बाद घर भेज दिया जाता है. लेकिन, इसके बाद इनकी कोई […]
सिर्फ गया जंकशन की जीअारपी चाइल्ड लाइन के आंकड़ों पर गौर करें, तो पिछले 10 साल में यानी 2007 से लेकर 2016 तक कुल 1094 बच्चों को दलालों की चंगुल से छुड़ाया गया है. इस दौरान 21 दलाल भी पकड़े गये. ऐरविवार की रात भी गुरारू जंकशन से सात बल मजदूरों को छुड़ाया गया. दो महीने पहले भी कुछ बच्चों को दलालों के चंगुल से छुड़ाया गया था. यह सिलसिला कई वर्षों से चला आ रहा है.
मां-बाप की रजामंदी से जाते हैं बच्चे: बाल मजदूरी में छुड़ाये गये बच्चे मां-बाप की रजामंदी से ही फैक्टरियों में काम करने जाते हैं. दलालों के माध्यम से बच्चों को जयपुर की चूड़ी फैक्ट्ररी में काम दिलाया जाता है. अब सवाल है कि कम उम्र के बच्चों को मजदूरी के लिए भेजने वाला कौन है? दलाल तो दोषी है ही, लेकिन मां-बाप की भूमिका भी कम नहीं है.
बचपन पर हावी हुई गरीबी: गुरुआ प्रखंड के बरबाडीह के रहनेवाले छोटू कुमार, कमलेश कुमार, शैलेश कुमार, सोनू कुमार व नीतीश कुमार ने बताया कि उनका परिवार काफी गरीब है. खाने तक के पैसे नहीं जुटते. पैसे के लिए घर में कलह होते रहता है. हम एक ही गांव के रहनेवाले हैं. जयपुर जाने के लिए अपने मां-बाप से पूछा, तो वे भी राजी हो गये.
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