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शराबबंदी का असर मछली चिकन की बिक्री पर भी

गया: सूबे में देसी के बाद अब विदेशी शराब की बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा का असर मछली, चिकन व मटन की बिक्री पर भी पड़ने लगा है. पिछले चार दिनों में ही इसका असर दिखने लगा है व मांस-मछली की बिक्री 50 प्रतिशत तक घट चुकी है. शराब के साथ कबाब (मांसाहारी खाद्य […]

गया: सूबे में देसी के बाद अब विदेशी शराब की बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा का असर मछली, चिकन व मटन की बिक्री पर भी पड़ने लगा है. पिछले चार दिनों में ही इसका असर दिखने लगा है व मांस-मछली की बिक्री 50 प्रतिशत तक घट चुकी है. शराब के साथ कबाब (मांसाहारी खाद्य पदार्थ) का पुराना संबंध रहा है. अमूमन देखा भी गया है कि शराब का दौर चल रहा हो और वहां मांस गायब रहे, ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है.

लेकिन, अब राज्य में पूर्ण शराबबंदी के बाद इनकी भी डिमांड घट गयी है. होटल, रेस्टोरेंट से लेकर ठेले पर भी अब इनकी मांग कम हो गयी है व लोगों का जमघट भी अब कम दिखने लगा है. ऐसा माना जाता है कि शराब के साथ लोग होटल, रेस्टोरेंट या ठेले पर उपलब्ध चिकन, मटन व मछली से बने आइटम का स्वाद लेते हैं.

इसे लेकर होटलों आदि में चिकन-मछली व अंडों की डिमांड भी रहती थी. शहर के दिग्घी तालाब के पास मछली की दुकान लगाने वाले सुनील शाहनी व सुनील कुमार ने बताया कि 31 मार्च तक हर दिन उनकी दुकान से 50-60 किलो मछली की बिक्री होती थी. एक अप्रैल से यह घट कर 20-25 किलो तक पहुंच चुका है. अब अंगरेजी शराब भी बंद हो गयी है, तो बिक्री का स्तर और भी घट सकता है. पास में ही चिकन के बिक्रेता संतोष कुमार व इराक खान ने बताया कि चार दिन पहले तक खुदरा व विभिन्न होटलों में हर दिन 125-150 किलो मुरगे की खपत हो रही थी. अब पिछले चार दिनों में ही 40 से 50 किलो तक बिक्री पहुंच चुकी है. उन्होंने कहा कि अंगरेजी शराब के भी बंद होने के बाद मुरगे की बिक्री और भी घटने की संभावना है. मुरगा दुकान में बैठे एक बुजुर्ग ने यह भी कहा कि अब शाकाहारियों की संख्या पहले की तुलना में और बढ़ जायेगी. हालांकि, नियमित रूप से मांस-मछली का सेवन करने वालों पर शराबबंदी का असर नहीं पड़ेगा, पर शराब के चक्कर में मांस-मछली की बिक्री व इसके कारोबारियों पर तो प्रभाव पड़ेगा ही.

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