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न नियम, न कानून, ऐसे ही चल रहे प्राइवेट अस्पताल

हाल के वर्षों में शहर में प्राइवेट अस्पतालों की संख्या बढ़ी है. हर महीने शहर के किसी न किसी हिस्से में अस्पताल खुल जा रहा है. लेेकिन, सवाल यह उठ रहा है कि इन अस्पतालों को खोले जाने की शर्त क्या है? जवाब कहीं भी सटीक नहीं मिल रहा है. स्थिति स्पष्ट है कि सब […]

हाल के वर्षों में शहर में प्राइवेट अस्पतालों की संख्या बढ़ी है. हर महीने शहर के किसी न किसी हिस्से में अस्पताल खुल जा रहा है. लेेकिन, सवाल यह उठ रहा है कि इन अस्पतालों को खोले जाने की शर्त क्या है? जवाब कहीं भी सटीक नहीं मिल रहा है. स्थिति स्पष्ट है कि सब कुछ बस ऐसे ही चल रहा है. एंबुलेंस चलानेवाले व डाॅक्टर की कैंची पकड़ने वाले लोग फर्जी तरीके से अस्पताल चला रहे हैं. इनकम टैक्स के सर्वे के दौरान मां गायत्री मेमोरियल हॉस्पिटल में जो हालात सामने आये, तो महज उदाहरण थे, क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से शहर के ही कई बड़े डाॅक्टरों ने भी यह माना कि डाॅक्टरों के फर्जी नाम का प्रयोग कर कुछ लोग शहर व आसपास में ऐसे अस्पताल चला रहे हैं. मरीजों से मनमाना पैसा, अप्रशिक्षित लोगों द्वारा इलाज व इलाज की कोई गारंटी नहीं वाला खेल बेरोक-टोक जारी है.

गया : शहर में होनेवाली हर गतिविधि पर नगर सरकार की नजर होती है, लेकिन यह भी हैरान करने वाली बात ही है कि नगर निगम को शहर में चलने वाले किसी भी प्राइवेट अस्पताल की कोई जानकारी नहीं है. निगम केवल उस बिल्डिंग से व्यवसायिक टैक्स लेकर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेता है. पार्षद धर्मेंद्र कुमार के मुताबिक शहर में चलनेवाले तमाम अस्पताल, मैरेज हॉल को नगर निगम से लाइसेंस लेने का प्रावधान तो है, लेकिन वह लागू नहीं हो सका है. यह सिर्फ गया नहीं पूरे बिहार की स्थिति है. इस पर अब कोई ठोस कानून नहीं बन सका है. यहीं कारण है कि निगम के पास कोई रिकाॅर्ड मौजूद नहीं होता.

क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट का इंतजार : सरकार राज्य में क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट को लागू करने की तैयारी पिछले कई वर्षों से कर रही है. लेकिन, अब तक यह लागू नहीं हो सका है. इस एक्ट में मौजूद कुछ अंशों के संसोधन के साथ लागू करने की मांग आएमए कर रहा है. आएमए सचिव के मुताबिक राज्य सरकार के स्तर पर बात चल रही है. कुछ बेसिक संसोधन के साथ ही इसे लागू किया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि इस एक्ट में शामिल एक बिंदु पर आइएमए ने आपत्ति जताया है. इसमें यह जिक्र किया गया है कि मरीज को पूरी तरह स्टैबलाइज करने के बाद ही कोई डॉक्टर उसे दूसरे डाॅक्टर के पास रेफर कर सकेगा. आइएम के सदस्यों के मुताबिक यह संभव नहीं है, मरीज की स्थिति नाजुक होने पर डाॅक्टर को उसे रेफर करना ही पड़ेगा.

इधर वरिष्ठ हड्डी रोग चिकित्सक डाॅ फरासत हुसैन ने कहा कि संसोधन के बाद एक्ट को लागू कर दिये जाने से अस्पताल या नर्सिंग होम चलाने को कई जांच की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा. सिविल सर्जन से लेकर राज्य स्वास्थ्य विभाग तक रिकाॅर्ड मौजूद होगा. लेकिन, सवाल यह है कि यह एक्ट कब प्रभावी होगा. इस पर कोई भी कुछ स्पष्ट नहीं कर रहा.

सभी प्रतिष्ठानों पर आयकर विभाग की है नजर : स्वास्थ्य महकमे के अधिकारी ऐसे फर्जी अस्पतालों पर नगर रखे या न रखे. आयकर विभाग ने इनकी सूची तैयार करनी शुरू कर दी है. आयकर के सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक, विभाग फर्जी तरीके से मनमाना कमाई कर रहे इन सभी प्रतिष्ठानों का रिकाॅर्ड तलाशने में जुट गया है. अधिकारी शहर में इन सभी जगहों पर एक के बाद एक सर्वे करने की तैयारी कर रहा है. आने वाले समय में कुछ और भी ऐसे फर्जी अस्पताल और वहां हो रही मनमानी की बात सामने आयेगी.

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