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बेरोक-टोक चल रहे कैफे

गया: एक तरफ अपराधी व अपराध दोनों की प्रवृत्ति में लगातार बदलाव हो रहे हैं. अपराध के लिए रोज नये माध्यम अपनाये जा रहे हैं, ऐसे में सुरक्षा की दृष्टिकोण से थोड़ी सी भी चूक भारी पड़ सकती है. उन परिस्थितियों व जगहों पर यह चूक और ज्यादा प्रभावी हो सकती है, जब कोई जगह […]

गया: एक तरफ अपराधी व अपराध दोनों की प्रवृत्ति में लगातार बदलाव हो रहे हैं. अपराध के लिए रोज नये माध्यम अपनाये जा रहे हैं, ऐसे में सुरक्षा की दृष्टिकोण से थोड़ी सी भी चूक भारी पड़ सकती है. उन परिस्थितियों व जगहों पर यह चूक और ज्यादा प्रभावी हो सकती है, जब कोई जगह सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील हो. दरअसल, यह पूरा मामला गया शहर में मनमाने ढंग से चल रहे साइबर कैफे का है.

शहर के अधिकतर साइबर कैफे बगैर लाइसेंस व बिना पुलिस की जानकारी के चलाये जा रहे हैं और साइबर अपराध के रिकॉर्ड से इस बात की पुष्टि होती है कि अधिकतर घटनाओं की साजिश साइबर कैफे में ही बैठ कर इंटरनेट के माध्यम से रची गयी थीं. गौरतलब है कि साइबर अपराध में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए वर्ष 2011 में साइबर कैफे नियम ‘जीएसआर 315(इ)’ लागू किया गया था. साइबर अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन एजेंसी से पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया.

साइबर कैफे स्थापित करने के लिए कुछ शर्ते तय कर दी गयीं. लेकिन, शहर में अधिकतर ऐसे साइबर कैफे हैं, जो इस कानून व संबंधित मैनुअल से अनभिज्ञ होकर बेखौफ चलाये जा रहे हैं. बात सिर्फ इतनी भी नहीं है, शहर के अधिकतर साइबर कैफे में उपभोक्ताओं से न तो कोई आइडी मांगी जाती है और न ही उनके नाम व पता लिखने के लिए कोई विवरणिका होती है. यानी, यहां आनेवाले उपभोक्ता इंटरनेट के माध्यम से कुछ भी करें कोई रोक -टोक नहीं है. हालांकि कैफे मालिक समय व पैसे का बराबर हिसाब रखते हैं. इससे साफ है कि उनका मुख्य उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना है, सुरक्षा व अपराध से उनका कोई लेना-देना नहीं है.

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