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बिहार विस चुनाव : यहां डाल-डाल नेता तो पात-पात जनता

गया में इन दिनों पितृपक्ष मेले को लेकर भीड़-भाड़ बढ़ी है, तो चुनावी माहौल भी गरमा रहा है. पितरों को मोक्ष के लिए दूर-दराज से लोग तर्पण के लिए पहुंच रहे हैं. उधर, प्रत्याशियों के नामांकन के बाद अब नेता प्रचार के लिए गांवों की ओर रुख कर रहे हैं. जिले में विधानसभा की दस […]

गया में इन दिनों पितृपक्ष मेले को लेकर भीड़-भाड़ बढ़ी है, तो चुनावी माहौल भी गरमा रहा है. पितरों को मोक्ष के लिए दूर-दराज से लोग तर्पण के लिए पहुंच रहे हैं. उधर, प्रत्याशियों के नामांकन के बाद अब नेता प्रचार के लिए गांवों की ओर रुख कर रहे हैं. जिले में विधानसभा की दस सीटें हैं.
कई दिग्गजों की किस्मत नये समीकरण में फंसी है. इन सबके बीच जनता अभी प्रत्याशियों को बारिकी से तौल रही है. कहीं कोई कुछ खुल कर नहीं बोलता. गया शहर से लेकर जिले के सुदूर इलाकों के चुनावी माहौल का जायजा लिया प्रभात खबर के गया संस्करण के संपादक कौशल किशोर त्रिवेदी ने.
क्या बात है भाई साहब, बड़ी भीड़ लगी है? कोई बात है क्या? मंगलवार को टिकारी से बाराचट्टी जाने के रास्ते में गुरारू से पहले मथुरापुर के पास स्टेट हाइवे-69 के किनारे एक भीड़ में खड़े एक युवक से प्रभात खबर प्रतिनिधि ने जब यह पूछा, तो जवाब देने से पहले वह खुद भी सवाल दागने लगता है.
पूछता है, ‘आपका परिचय? आप कौन हैं? कहां से आये हैं?’ इसी बीच गाड़ी में प्रेस का स्टिकर लगा देख एक अन्य युवक तपाक से कहता है, ‘अरे इ प्रेस के आदमी हैं.’ फिर शुरू होता है बातचीत का सिलसिला.
पहले वाले युवक ने अपना नाम धर्मेद्र कुमार बताया. नजदीक पहुंच कर बातचीत करने लगता है. वह बताता है कि एक नया ट्रांसफॉर्मर लग रहा है. स्थानीय लोग उसी पर टकटकी लगाये हुए हैं. इससे पहले कि धर्मेद्र की बातें पूरी हों, एक दूसरे सज्जन बीच में बोलने लगते हैं. कहते हैं, ‘इ सब लोग घर में बिजली के लिए बेचैन हैं. देख रहे हैं न, सब के सब ट्रांसफॉर्मरे पर आंख गड़ा के खड़े हैं. लड़िकवा सब ज्यादे ही अकबकाया है.
लगता है बिजली साथे लेइयेके घरे जायेगा.’ बात यहीं नहीं थमती. धर्मेद्र के पीछे-पीछे आये एक दूसरे सज्जन कहते हैं, स्कूली बच्चों के लिए बिजली बहुत जरूरी है. सुबह-शाम तो घर के बाकी काम भी रहता है. रात में बिजली रहेगी, तो पढ़ेंगे ना.’ यह पूछने पर कि रोजमर्रा की जिंदगी में बिजली से फर्क पड़ा है या नहीं, हिंदी पर स्थानीय टोन के प्रभाव के साथ बोलते हुए वह कहने लगते हैं, ‘इसमें कोई शक है? आरे बिजली से फरक तो पड़ा ही है.
अगर फायदे की बात नहीं होती, तो इतना आदमी इहां क्यों जुटता? सरकार ने बिजली के मामले में काम तो किया ही है. नहीं तो इहां बिजली आनेवाली थी?’ पर, उनकी बात सुन कर सड़क पर पहले से ही लुंगी-गंजी में खड़ा एक युवक व्यंग्य कसता है, ‘हूंह! आ लड़िका लोग का जामा-पाइंट नहीं देख रहे हैं का? तन पर एकोगो कपड़ा सीधा है? बड़ा बिजली आ विकास का हिसाब जोड़ा रहे हैं.’
खेल हो रहा है, खेल
मथुरापुर गांव में भीड़ के बीच से राम बदन सिंह भी प्रकट होते हैं. पेशे से किसान हैं. दवा की एक दुकान भी है, जो उनके बड़े बेटे के हवाले है. चुनाव, राजनीति, नेता व जनता की बात होने पर कहते हैं, ‘देखिए, कोई विकास नहीं करनेवाला. सब अपने-अपने धंधे में लगा है. खेल हो रहा है, खेल. और इसीलिए जनता भी पैंतराबाजी कर रही है. नेता जनता को बहुत ठगे हैं.
अब जनता भी नेता को छका रही है. अब पहिले वाला दिन नहीं है न? आप ही बताइए तो कि कहीं कोई साफ बात बोल रहा है? नेता लोग डाल-डाल थे, तो अब जनता भी पात-पात पहुंच गयी है.’ रामबदन सिंह की राय से सहमति जताते हुए गुरुआ बाजार के पास मिले लालजी मांझी कहते हैं, ‘खाली नेते जनता को चूसेगा? अब जनता भी नेता को चूसना जान गयी है. उ लोग (नेता) बिना पइसा का काम नहीं कराता है, तो भोटर (मतदाता) भी अब बिना पइसा भोट नहीं देता है. आम आदमी का करेगा?’
सब क्लीयर है जी!
टिकारी बाजार में पहुंचने पर मोहन गुप्ता के पूजा स्टूडियो के सामने कई लोग एक ही जगह मिलते हैं. आपस में बातचीत करते हुए. लेकिन, जैसे ही पत्रकार को देखा, पूछ बैठे, ‘का भाई, हवा का रुख बताइए. टिकारी में किस करवट बैठेगा ऊंट? खाली दूसरे से सवाल दागते फिरते हैं? अपने भी कुछ बोलियेगा कि नहीं?’ इसी बीच स्टूडियो वाले गुप्ता जी बोलने लगते हैं.
कहते हैं, ‘अच्छा, समझ में नहीं आ रहा है! सब तो क्लीयर है जी. लेकिन, अभी कोई कुछ बोलेगा नहीं.’ वैसे चर्चा में गंभीरता आने पर वह कहते हैं कि चुनाव में आमलोगों से जुड़ी बातें नहीं हो रही हैं. बुनियादी सवालों पर बहस नहीं हो रही है. हालांकि, इसके बाद ही वह राजनीतिक चर्चा को बंद कराने के लिए पूरी चतुराई से बातें बदल देते हैं और फिर एक-एक कर लोग वहां से सरक लेते हैं. थोड़ी दूरी पर टिकारी स्टोर के सामने कुछ दूसरे लोग मिलते हैं. कुरेदने पर कहते हैं, ‘हां, हां, चीजें तो बदली ही हैं.
पहले तो हमलोग आठ बजे के बाद टिकारी-गया रोड पर चलते भी नहीं थे. अब 12 बजे रात में भी आते-जाते हैं. बिना बदले यह संभव था? रही बात यहां की, तो देखिये कास्ट इक्वेशन क्या कराता है. यहां (टिकारी में) तो भूमिहार और यादव, दोनों का दबदबा रहा है. इस बार देखें क्या होता है? किसी के बारे में कुछ भी बोलना ठीक नहीं है. अभी थोड़ा समय भी है. धीरे-धीरे लोग फैसला लेंगे ही. आखिर किसी एक को तो चुनेंगे ही न?’
अभी तो माहौल गरमा रहा है
मंगलवार की शाम को ही इमामगंज में अंबुज वस्त्रलय चलानेवाले से बात होती है. नाम है अंबुज प्रसाद. बातचीत में कहते हैं, ‘विकास तो हुआ ही है. यह नहीं कि काम नहीं हुए. पर, जितना होना चाहिए, उतना नहीं.
जो हो सकता था, वह नहीं हुआ. बाजार में ही देखिये न कि धीरे-धीरे आबादी कितनी बढ़ गयी. और सुविधाएं? नालियां तक ठीक से नहीं बन सकीं. आवेदन देते-देते लोग थक गये. क्या कहा जाये! नेता लोग तो कहते कुछ और हैं तथा करते कुछ और.’ बात टालने के मूड में कहते हैं, ‘अभी तो माहौल गरमा रहा है. देखिए क्या होता है.’
किसान का हाल देखिए भाई
बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र में पहुंचने पर प्रखंड कार्यालय के समीप कई लोग एक ही जगह जमे मिलते हैं. कोई व्यवसायी है, तो कोई पेशे से वकील. कोई पंचायत स्तर का जनप्रतिनिधि रह चुका है.
कई कप चाय भी पहुंचती है. चाय के साथ राजनीति की बातें भी शुरू हो जाती हैं. हाथ में कप थामे प्रदीप कुमार (स्टेशनरी व्यवसायी) सवाल दागते हुए कहते हैं, ‘काम हुआ है, लेकिन क्या हुआ है? स्कूल के लिए बिल्डिंग बनी है. वहां दाल-भात मिल रहा है. स्कूल में बच्चे जा भी रहे हैं. मास्टर के नाम पर कुछ लोग भरती भी हो रहे हैं.
वैसे तो लग रहा है कि बहुत कुछ हो रहा है. पर, शिक्षा का हाल क्या है? बेहद बुरा. पूछिए मत. यही विकास है क्या? खाली भवन बनने से कहीं विकास होता है?’ वह अपनी बात पूरी कर सकें, इससे पहले ही सिंदुआर के पूर्व सरपंच सीताराम भगत बोलने लगते हैं. कहते हैं, ‘किसान का हाल देखिए भाई. उसके खेत पर नजर डालिए. आदमी कैसे जिंदा रहेगा?
किसान से वोट चाहिए सबको, पर उसके लिए काम करना किसी को याद नहीं रहता. किसी दल या नेता को किसानों की फसल के लिए न पानी की चिंता है न खाद की. सच कहें तो सबसे बुरा हाल खेती-किसानी से जुड़े लोगों का है.’ लेकिन, बाराचट्टी के ही सुनील दत्त, जो पेशे से वकील भी हैं, कहते हैं, ‘कोई माने या न माने, शासन-प्रशासन तो बदला है.
पहले से बहुत अच्छा है. और चुनाव में सीट किसी को ज्यादा मिले या कम, जो भी सरकार बनेगी, विधि-व्यवस्था ठीक ही रहेगी . मुङो कोई शक नहीं है.’ बाराचट्टी बाजार में आम दिनों की तरह चहल-पहल है. चाय और पान की दुकानों पर चुनाव की चर्चा जरूर है, लेकिन आम लोग अपनी जिंदगी में मगन हैं. अभी चुनाव प्रचार जोर नहीं पकड़ा है.
कुल सीटें 10 कुल मतदाता 2673969 मतदान 16 अक्तूबर को
जदयू/भाजपा राजद/लोजपा महागंठबंधन एनडीए
गुरुआ 46767 (भाजपा) 35331(राजद) रामचंद्र प्रसाद (जद यू) राजीव दांगी (भाजपा)
शेरघाटी 25447 (जदयू) 18944 (निर्दल) विनोद प्र यादव (जदयू) मुकेश कुमार (हम)
इमामगंज 57550 (जदयू) 33804 (राजद) उदय नारायण चौधरी (जदयू) जीतन राम मांझी (हम)
बाराचट्टी 57550 (जदयू) 33804 (राजद)) समता देवी (राजद) –
बोधगया 25160(भाजपा) 42947 (लोजपा) कुमार सर्वजीत (राजद) श्यामदेव पासवान (भाजपा)
गया शहर 55618 (भाजपा) 27201 (भाकपा) प्रियरंजन (कांग्रेस) प्रेम कुमार (भाजपा)
टेकारी 67706 (जदयू) 49165 (राजद) अभय कुशवाहा (जदयू) अनिल कुमार (हम)
अतरी 55633 (जदयू) 35023 (राजद) कुंती देवी (राजद) अरविंद सिंह (लोजपा)
बेलागंज 53044 (राजद) 48441 (जदयू) सुरेंद्र यादव (राजद) सारीम अली (हम)
वजीरगंज 38893(भाजपा) 21127 (कांग्रेस) अवधेश कुमार सिंह (कांग्रेस) वीरेंद्र सिंह (भाजपा)

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