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मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने किया था गया को तबाह
कंचन गया : गया का इतिहास भी संक्रमण के दौर से गुजरा है. आज भले ही लोगों को इसकी सुखद अनुभूति होती है, लेकिन इतिहास के पन्नों पलटने पर पता चलता है कि 1113 ई. में मोहम्मद बख्तियार खिलजी के आक्रमण से गया तबाह हो गया था. असंख्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को नष्ट कर दिया […]
कंचन
गया : गया का इतिहास भी संक्रमण के दौर से गुजरा है. आज भले ही लोगों को इसकी सुखद अनुभूति होती है, लेकिन इतिहास के पन्नों पलटने पर पता चलता है कि 1113 ई. में मोहम्मद बख्तियार खिलजी के आक्रमण से गया तबाह हो गया था. असंख्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया था.
इस आक्रमण से बौद्ध धर्म भी अछूता नहीं रहा. मजबूरन बौद्ध भिक्षुओं व धर्मावलंबियों को तिब्बत, नेपाल व दक्षिण भारत की ओर भागना पड़ा. हिंदुओं की पवित्र भूमि गया, मुसलमानों के चंगुल में आ गयी, जिसका सीधा असर यहां मूल निवासी गयावालों पर पड़ा.
उनका जीवन अनिश्चितता के भंवर में फंस गया. अपनी शुद्धता व हिंदू धर्म को बचाये रखने के ख्याल से इन गयावालों ने गया के समीपवर्ती गांवों जैसे कुर्किहार, परोरिया, महाबोधि, दुबहल व कटारी आदि में जाकर बसना शुरू कर दिया. उस विध्वंस काल में गया की आबादी घटने लगी. यात्रियों का आना भी कम होने लगा. यह स्थिति करीब दो-तीन शताब्दी तक कायम रही.उदयपुर के महाराणा लक्षा ने 13वीं शताब्दी में गया की यात्र की. उनसे गया की दुर्दशा देखी नहीं गयी.
उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ जंग छेड़ दी, किंतु वे सफल न हो सके. वे युद्धभूमि में मुसलमानों के हाथों मारे गये. बाद में उनके पुत्रों व पोतों ने लगातार पांच पीढ़ियों तक यह संघर्ष जारी रखा. राणा लक्षा की छठी पीढ़ी में राणा सांगा का जन्म हुआ, जो आगे चल कर 1509 ई. में उदयपुर के राजा हुए. राणा सांगा ने मुसलमानों का डट कर मुकाबला किया और उनके कब्जे से गया को मुक्त कराया. लेकिन, करीब 1660 ईसवी तक गयावालों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ.
गयावालों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति पहले की तरह ही रही. आगे चल कर औरंगजेब के शासनकाल में गयावालों के जातीय जीवन में नया मोड़ आया.
गयापालों को स्थापित करने में शहरचंद की महती भूमिका : गयापाल सीताराम चौधरी के दो पुत्र थे. शहरचंद व मैहरचंद. इनमें शहरचंद बड़े विद्वान व कुशल गायक थे. इनकी ख्याति धीरे-धीरे काफी फैल चुकी थी. फलत: औरंगजेब ने उन्हें अपने दरबार में प्रमुख सलाहकार नियुक्त कर लिया.
अपनी विद्वता व गायकी से शहरचंद ने न सिर्फ औरंगजेब का दिल जीता, बल्कि औरंगजेब की मल्लिका भी उनके फन की कद्रदान हो गयीं. इस तरह औरंगजेब के सबसे विश्वासी व्यक्ति बन गये शहरचंद. लेकिन, इन सबके पीछे एक रोचक कहानी है. शहरचंद के प्रति मल्लिका के बढ़ते भावनात्मक लगाव को देख कर औरंगजेब के मन में थोड़ा संदेह हुआ.
औरंगजेब ने शहरचंद की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने अपनी मल्लिका को अपने हाथों से शहरचंद को कुछ खिलाने को कहा. समझदार मल्लिका ने शहरचंद के धर्म को बचाये रखते हुए अपनी ओर से एक फल खाने को दिया, जिसे शहरचंद ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. इसके बाद से ही औरंगजेब का शहरचंद के प्रति विश्वास और बढ़ गया.
(जारी..)
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