चुनाव हार जाने के एक साल बाद वह बहुजन समाज पार्टी के साथ जुड़ गये. इस प्रकार तब वह महाबली सिंह के साथ हो लिये. इसके बाद 2005 में एमएलसी का चुनाव लड़े, लेकिन वहां भी सफलता नहीं मिली. मनोरमा देवी से चुनाव हार गये. पर, अगले ही वर्ष 2006 में वह मुखिया का चुनाव भी आजमाये और जीत भी गये. सालभर मुखिया बने रहने के बाद वह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राजनीतिक सिपाही बन गये. पार्टी ने उन्हें युवा जिलाध्यक्ष भी बनाया.
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कैरियर में कई मोड़ देखे हैं अभय ने
गया. जनता दल यू (जदयू) के गया जिलाध्यक्ष अभय कुशवाहा को अब यहां की राजनीति में करीब सभी लोग जानते हैं. कहा जा सकता है कि अब वह किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे हैं. पर, अतीत में अपने राजनीतिक करियर को लेकर उन्होंने काफी उठा-पटक का सामना किया है. राजनीति में अभय कुशवाहा का […]
गया. जनता दल यू (जदयू) के गया जिलाध्यक्ष अभय कुशवाहा को अब यहां की राजनीति में करीब सभी लोग जानते हैं. कहा जा सकता है कि अब वह किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे हैं. पर, अतीत में अपने राजनीतिक करियर को लेकर उन्होंने काफी उठा-पटक का सामना किया है. राजनीति में अभय कुशवाहा का पहला कदम वर्ष 2000 में पड़ा था. तब वह गया नगर विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़े थे. तब वह निर्दलीय थे.
पहले ही दो बार पार्टी बदल चुके अभय कुशवाहा का मन राजद में भी ज्यादा वर्षो तक नहीं लगा. वह नये राजनीतिक ठिकाने की तलाश में थे. सो, 2010 में उन्होंने बिहार में सत्तारूढ़ जदयू का दामन थाम लिया. बेलागंज में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एक सभा में उन्होंने पार्टी ज्वाइन किया. तब से अब तक वह जदयू में ही रहे हैं. पार्टी के अंदर काफी संघर्ष करते हुए एक मुकाम हासिल किया है. अपने कई विरोधियों को किनारे लगाते हुए न केवल पार्टी जिलाध्यक्ष का पद हासिल किया है, बल्कि पार्टी को मजबूती दिलाने के लिए लगातार मैदान में दिखते भी हैं और संघर्ष में बने रहने का दावा भी करते हैं. फिलहाल, वह गया नगर प्रखंड की कुजापी पंचायत के मुखिया भी हैं. अभय से अलग दूसरे मकान में रह रहे इनके बड़े भाई अजय कुशवाहा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से ताल्लुक रखते हैं.
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