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मौत के शिकार हो जाते हैं 38
गया: टीबी कोई असाध्य बीमारी नहीं है. दवाओं का नियमित सेवन कर इससे मुक्ति पायी जा सकती है. बावजूद इसके गया जिले में हर साल टीबी के औसतन 3,395 नये मरीज मिल रहे हैं, जिनमें हर साल 38 की मौत हो जाती है. हालांकि, टीबी के कंट्रोल के लिए प्रयास भी किये जा रहे हैं. […]
गया: टीबी कोई असाध्य बीमारी नहीं है. दवाओं का नियमित सेवन कर इससे मुक्ति पायी जा सकती है. बावजूद इसके गया जिले में हर साल टीबी के औसतन 3,395 नये मरीज मिल रहे हैं, जिनमें हर साल 38 की मौत हो जाती है. हालांकि, टीबी के कंट्रोल के लिए प्रयास भी किये जा रहे हैं. इसी का ही नतीजा है कि हर साल औसतन 3305 मरीजों को टीबी मुक्त किया जा रहा है.
टीबी के 2,625 मरीज : जिला यक्ष्मा केंद्र से प्राप्त आंकड़े के मुताबिक, जिले की आबादी लगभग 47.31 लाख है. इनमें 2,625 से अधिक लोग टीबी से पीड़ित हैं. इनमें एमडीआर-टीबी के 51, एक्सडीआर-टीबी के दो व दो एचआइवी पॉजिटिव भी शामिल हैं.
टीबी की गिरफ्त में हर साल आते हैं औसतन 200 बच्चे : बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण वे टीबी की चपेट में आसानी से आ जाते हैं. यही कारण है जिले में हर साल पाये जानेवाले टीबी के 3,395 नये मरीजों में 199 बच्चे (14 साल से नीचे) होते हैं.
हर साल 3305 मरीजों को टीबी से मुक्ति : जिले में पुनरीक्षित राष्ट्रीय यक्ष्मा नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) 2004 से चल रहा है. डॉट्स केंद्रों में टीबी मरीजों के लिए नि:शुल्क दवाएं मिलने लगी हैं. इसका परिणाम यह है कि हर साल 3305 मरीजों को टीबी से मुक्ति मिल रही है.
33 बलगम जांच केंद्र : टीबी की सही पहचान के लिए बलगम की माइक्रोस्कोपी जांच की जाती है. एक लाख की आबादी पर एक बलगम जांच केंद्र का प्रावधान है. लेकिन, जिले में 47 के विरुद्ध 33 बलगम जांच केंद्र ही चलाये जा रहे हैं.
स्प्यूटम (बलगम) कल्चर की सुविधा नहीं : जिले में स्प्यूटम कल्चर की सुविधा नहीं होने से हर नये टीबी मरीज का इलाज फस्र्ट लाइन की दवा से शुरू होता है. दवा का असर नहीं होने पर सेकेंड लाइन, फिर थर्ड लाइन की दवा दी जाती है. ऐसे में मरीज को परेशानी होती है और ज्यादा दिनों तक दवा खानी पड़ जाती है. कल्चर की सुविधा होती, तो मरीज की श्रेणी तय कर दवा शुरू की जाती.
सपोर्टिग दवाओं व अतिरिक्त पोषाहार की सुविधा नहीं : टीबी मरीजों को सपोर्टिग दवा व अतिरिक्त पोषाहार की जरूरत होती है. ताकि, उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायी जा सके और दवाओं का असर तेज हो. टीबी के अधिकतर मरीज गरीब तबके के लोग होते हैं. उनके लिए बाजार से दवा खरीदनी व अतिरिक्त पोषाहार लेना संभव नहीं होता. देखा गया है कि दवा खाने के बाद भी कमजोर टीबी मरीजों की मौत हो जाती है.
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