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कुपोषण से बढ़ रही शिशु मृत्यु दर : डॉ अग्रवाल

गया: अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज (एएनएमएमसीएच) के शिशु रोग विभाग व यूनिसेफ की ओर से सोमवार को होटल गर्व में ‘इनफैंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग’ विषय पर कार्यशाला आयोजित की गयी. इसमें शिशुओं व छोटे बच्चों के आहार व स्तनपान के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गयी. इस मौके पर नयी दिल्ली के सफदरजंग […]

गया: अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज (एएनएमएमसीएच) के शिशु रोग विभाग व यूनिसेफ की ओर से सोमवार को होटल गर्व में ‘इनफैंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग’ विषय पर कार्यशाला आयोजित की गयी. इसमें शिशुओं व छोटे बच्चों के आहार व स्तनपान के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गयी. इस मौके पर नयी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ केसी अग्रवाल ने कहा कि कुपोषण की वजह से ही शिशु मृत्यु दर बढ़ रही है.
उन्होंने कहा कि मां के कुपोषित व एनेमिक होने का असर बच्चों पर भी पड़ता है. देश में जन्म लेने वाले 100 बच्चों में से 22 बच्चे कम वजन के होते हैं. बिहार में छह से 35 माह के 79 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी होती है. उन्होंने कहा कि देश से कुपोषण को कम करने के लिए किशोरियों व गर्भवती माताओं में कुपोषण दूर करना होगा, क्योंकि महिलाएं कुपोषित होंगी तो वह कुपोषित बच्चों को ही जन्म देगी.
कार्यशाला के प्रारंभ में एएनएमएमसीएच के अधीक्षक डॉ एसके सिन्हा ने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के सर्वे के मुताबिक बिहार में व बिहार के गया जिले में कुपोषण से शिशु मृत्यु दर का प्रतिशत सबसे अधिक है.
गया में शिशु मृत्यु दर 300 से घट कर 200 प्रतिशत पहुंच गया है. यह जागरूकता अभियान व स्तनपान के लिए खोले गये काउंसेलिंग सेंटर से ही संभव हो पाया है. इसे शून्य पर लाने की दिशा में काम चल रहा है. उन्होंने कहा कि मगध मेडिकल अस्पताल में डब्बा व बोतल के दूध पर रोक लगा दी गयी है. ऐसी व्यवस्था की गयी है कि माताएं बच्चे को जन्म देने के एक घंटे के अंदर से ही अपना दूध पिलाती हैं. जिले में फिलहाल 22 स्तनपान परामर्श केंद्र चलाये जा रहे हैं. एक केंद्र पर हर दिन 25-30 गर्भवती माताओं व शून्य से दो साल के बच्चों की माताओं के स्तनपान व पूरक पोषक आहार पर जानकारी दी जाती है.
यूनिसेफ की पोषण पदाधिकारी डॉ शिवानी दर ने कहा कि विश्व में पांच साल तक के 45 प्रतिशत बच्चों की मौत के लिए कुपोषण जिम्मेवार है. बच्चों को कुपोषण मुक्त करने में उनके गर्भ में आने से लेकर एक हजार दिन काफी महत्वपूर्ण हैं. डॉ शिवानी ने कुपोषण की वजह से बच्चों में होनेवाले तीन बीमारियों के बारे में बताया.
उन्होंने बताया कि जन्म के समय बच्च का अल्प वजन होना, लंबाई के अनुपात में वजन का न होना व उम्र के हिसाब से वजन का न बढ़ना कुपोषण के कारण है. उन्होंने बताया कि शिशु के जन्म के एक घंटे के अंदर माताएं अपना दूध बच्चों को पिलायें. छह माह तक केवल मां का दूध ही बच्चे का आहार होना चाहिए. पानी भी नहीं. इसके बाद घर में बननेवाले हल्के भोजन, फल, सब्जी व मांसाहारी भी दे सकते हैं. माताएं दो साल तक बच्चे को स्तनपान करायें.
उन्होंने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि 37 प्रतिशत माताएं ही जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चों को दूध पिला पाती हैं.
एएनएमएमसीएच के शिशु रोग विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ एके ठाकुर ने डॉक्टरों से डब्बाबंद दूध व नवजात शिशु के लिए अन्य खाद्य पदार्थो को प्रस्तावित न करने की अपील की. उन्होंने कहा कि ऐसा करनेवाले डॉक्टरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है. भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रलय ने शिशु व छोटे बच्चों की आहारपूर्ति पर गाइडलाइन जारी की है.
इस मौके पर एएनएमएमसीएच के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ बीबी सिंह व मगध के क्षेत्रीय कार्यक्रम पदाधिकारी पीयूष रंजन ने भी लोगों को संबोधित किया. धन्यवाद ज्ञापन यूनिसेफ के सलाहकार राकेश झा ने किया.
कार्यशाला का उद्घाटन एएनएमएमसीएच के अधीक्षक डॉ एसके सिन्हा व नयी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ केसी अग्रवाल, नालंदा मेडिकल कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ एके ठाकुर, एएनएमएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ बीबी सिंह, यूनिसेफ की पोषण पदाधिकारी डॉ शिवानी दर, मगध प्रमंडल के क्षेत्रीय कार्यक्रम पदाधिकारी पीयूष रंजन ने संयुक्त रूप से किया.

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