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तालाब भी बन गये ‘नरक’

गया: दुकान से किचन व सड़क से तालाब तक हर जगह पॉलीथिन की पहुंच है. यह सुविधाजनक है, पर हानिकारक कहीं ज्यादा. यह कितना खतरनाक है व इसकी पहुंच कहां तक है, इसका अंदाजा एक सच से लगाया जा सकता है. कुछ दिन पहले शहर में एक सांड़ मर गया था. चमड़ा उतारने के लिए […]

गया: दुकान से किचन व सड़क से तालाब तक हर जगह पॉलीथिन की पहुंच है. यह सुविधाजनक है, पर हानिकारक कहीं ज्यादा. यह कितना खतरनाक है व इसकी पहुंच कहां तक है, इसका अंदाजा एक सच से लगाया जा सकता है.

कुछ दिन पहले शहर में एक सांड़ मर गया था. चमड़ा उतारने के लिए उसकी बॉडी की चीर-फाड़ की गयी, तो इस काम में जुटे लोग हतप्रभ रह गये. सांड़ के पेट से ढाई से तीन किलो पॉलीथिन निकला. यह छोटा-सा उदाहरण है, पर सच्चई यह है कि इसका दुष्प्रभाव तालाब में मछलियों से लेकर आम लोगों पर पड़ रहा है. ‘पॉलीथिन मुक्त हमारा गया शहर, प्रभात अभियान’ में पॉलीथिन से बिगड़ रही शहर के तालाबों की सूरत पर फोकस किया गया है. सड़क के किनारों व नालियों के साथ-साथ पॉलीथिन ने तालाबों में भी अपनी जगह बना ली है. इसका दुष्परिणाम न तो शहर के लोग समझते हैं, न ही जिला प्रशासन को इसकी फिक्र है.

निगम के अधिकारी जब कभी शहर का जायजा लेने निकलते हैं, तो इन्हें देख कर सिर्फ नाराजगी जता देते हैं. हर बार एक ही बयान सामने आता है कि पॉलीथिन फेंकनेवालों पर कार्रवाई होगी. लेकिन, अब तक ऐसा नहीं हुआ. मंगलवार को प्रभात खबर की टीम ने शहर के प्रमुख तालाबों का मुआयना किया.

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