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पॉलीथिन से दबी फल्गु भी

गया: शहर की पहचान माने जानेवाली फल्गु नदी भी पॉलीथिन के अंधाधुंध प्रयोग से नहीं बच पायी है. पूरी नदी में हर रोज हजारों पॉलीथिन डाले जाते हैं. कर्मकांड से लेकर पूजा करने आने वाले पॉलीथिन लेकर ही यहां आते हैं. इसके बाद नदी में ही पॉलीथिन फेंक कर चल देते हैं. जिला प्रशासन से […]

गया: शहर की पहचान माने जानेवाली फल्गु नदी भी पॉलीथिन के अंधाधुंध प्रयोग से नहीं बच पायी है. पूरी नदी में हर रोज हजारों पॉलीथिन डाले जाते हैं. कर्मकांड से लेकर पूजा करने आने वाले पॉलीथिन लेकर ही यहां आते हैं. इसके बाद नदी में ही पॉलीथिन फेंक कर चल देते हैं. जिला प्रशासन से लेकर निगम प्रशासन ने भी नदी में पॉलीथिन के प्रयोग पर कभी पाबंदी पर विचार नहीं किया.

स्थानीय लोगों की मानें, तो घाटों पर डस्टबीन नहीं होने की वजह से लोग पॉलीथिन नदी में ही फेंक देते हैं. फल्गु के सभी घाटों में अत्यंत महत्वपूर्ण देवघाट के चारों ओर पॉलीथिन बिखरे नजर आते हैं. श्रद्धकर्म करने आने वाले लोग अपनी पूजन-सामग्री का प्रयोग करने के बाद पॉलीथिन बैग को वहीं फेंक देते हैं. अन्य घाटों पर तो स्थिति और भी खराब है.

पितामहेश्वर, सीढ़िया घाट में तो आसपास के लोग अपने घर का कूड़ा भी पॉलीथिन बैग में भर कर फेंक देते है. ताज्जुब की बात तो यह है कि इस पर न तो स्थानीय पार्षद विरोध जताते हैं, न ही निगम के अधिकारी. निगम के कामकाज का आलम यह है कि इन घाटों पर सिर्फ छठ से पहले साफ-सफाई होती है.

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