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‘आनेवालों की नहीं जग में जानेवालों का नाम रहा’

गया: काव्य चक्र के तहत गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रांगण में काव्य संध्या का आयोजन किया गया. इसकी अध्यक्षता समाजसेवी कारू जी ने की. इस मौके पर हिंदी के महान रचनाकार मधुकर सिंह को सम्मेलन की ओर से श्रद्धांजलि दी गयी. उनकी आत्मा की शांति के लिए साहित्यकारों ने दो मिनट का मौन […]

गया: काव्य चक्र के तहत गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रांगण में काव्य संध्या का आयोजन किया गया. इसकी अध्यक्षता समाजसेवी कारू जी ने की. इस मौके पर हिंदी के महान रचनाकार मधुकर सिंह को सम्मेलन की ओर से श्रद्धांजलि दी गयी. उनकी आत्मा की शांति के लिए साहित्यकारों ने दो मिनट का मौन रखा. अरुण हरलीवाल ने उन्हें प्रेमचंद और रेणु की कथा धारा को आगे बढ़ाने वाले साहित्यकार की संज्ञा दी.

उन्होंने कवियों से कहा कि वे सम्मेलन की मर्यादा को ध्यान में रख कर सौंदर्य बोध की कविता का पाठ करें. उन्होंने आशा व्यक्त की कि आज काव्य संध्या के कवि कविता की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब कविता कवियों की ओर बढ़ेगी. काव्य संध्या का शुभारंभ डॉ सुधांशु ने सरस्वती वंदना से की.

मुकेश कुमार सिन्हा ने अपनी कविता ‘मंदिर में बम भोले की गूंज, मसजिद में अजान, सचमुच कितना प्यारा है भारत का इनसान’ राष्ट्रीय एकता के भाव को दर्शाया. गीतकार संजीत कुमार ने हाहाकार कविता में गाया-आज हर तरफ चीखने-चिल्लाने की आवाज है, आज हर गली-चौराहों पे मचा हाहाकार है. डॉ प्रकाश ने बुजुर्गो की दुर्दशा पर दुख व्यक्त करते हुए कहा-जिस मां ने दिया जीने का सहारा, तुमने ही कर दिया उसे बेसहारा. राजेंद्र राज ने लोकसभा चुनाव में पार्टियों की हार पर करारा व्यंग्य किया. डॉ राकेश कुमार सिन्हा रवि ने सम्मेलन के गुणों का बखान किया. सूर्यानंद मिश्र ने लोगों को परोपकार का पाठ पढ़ाया.

कहा-ईष्र्या मत कर, परोपकार अपनाओ. गजेंद्र लाल अधीर ने ‘आनेवालों की नहीं, जग में जानेवालों का नाम रहा’ कविता सुनायी. सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने कहा-कवि नहीं कविता बोलेगी. भेद समय की वह खोलेगी. मुद्रिका सिंह ने अपनी मगही कविता ‘साठा पाठा न रहलन’ सुनायी. कहा-जइसहीं कैलù साठ तू पार, खतम हो गेलो तोहर ठाठ. लक्ष्कन लेलथुन मिलजुल बांट, खाय ला भी जोह बाट.’ खालिक हुसैन परदेसी ने अपनी गजल को आवाज दी-तुङो खबर नहीं जालिम तेरी जुदाई में. बरस रही है मेरी आंखें आसमां की तरह. योगेश कुमार मिश्र ने जब गुनगुनाया-फूल फुलवा फूलù हे कचनार हे, मास सावन के सगरे श्रृंगार हे, सबों पर सावन की हरियाली छा सी गयी. डॉ सरदार सुरेंद्र सिंह ने अपनी व्यंग्य कविता ‘ऊपर जाने का दिल करता है’ के माध्यम से शासन-प्रशासन पर करारा व्यंग्य किया. कारू जी ने कवि गोंडवी की कविता को स्वर दिया. कहा-घर में ठंडे चूल्हे पे अगर खाली पतीली है, बतलाओ कैसे लिख दूं, धूप फागुन की नशीली है.’ इस अवसर पर विजय कुमार सिन्हा, नरेश कुमार दांगी, बालेश्वर शर्मा, बिंदु सिंह, उदय सिंह, प्रो मिथिलेश कुमार, उपेंद्र सिंह, डॉ पप्पू तरुण व अखिलेश्वर सहित सैकड़ों श्रोताओं ने कविताओं का लुफ्त उठाया. इस काव्य संध्या का संचालन सुमंत ने किया.

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