जिले के ग्रामीण इलाके में हैं 1057 तालाब
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शहर के आधा दर्जन तालाबों का मिटा नामोनिशान बाकी के अस्तित्व पर भी मंडरा रहे खतरे के बादल
जिले के ग्रामीण इलाके में हैं 1057 तालाब तालाबों की कमी से गया में बढ़ रहा जल संकट तालाबों का अस्तित्व खत्म होने से वातावरण में तापमान भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा जल्द ध्यान नहीं िदया गया, तो कुछ सालों में लोगों को भीषण जल संकट का करना पड़ेगा सामना गया : पहाड़ों से घिरे […]
तालाबों की कमी से गया में बढ़ रहा जल संकट
तालाबों का अस्तित्व खत्म होने से वातावरण में तापमान भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा
जल्द ध्यान नहीं िदया गया, तो कुछ सालों में लोगों को भीषण जल संकट का करना पड़ेगा सामना
गया : पहाड़ों से घिरे गया जिले को पानी के संकट से निजात दिलाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जल संचय के उद्देश्य से तालाबों का निर्माण कराया गया था. वहीं, दूसरी तरफ गया में तालाबों के होने की पौराणिक व आध्यात्मिक मान्यताएं आदि काल से ही चली आ रही हैं. शहर के कई तालाब पौराणिक महत्व के भी हैं. हर एक की विशेष महत्ता है. दूसरी ओर गया की भौगोलिक संरचना एेसी है कि यहां जल संचय बेहद जरूरी है, जिससे भूगर्भीय जलस्तर बना रहे और लोगों को पानी के संकट का सामना नहीं करना पड़े. लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे शहर की आबादी बढ़ रही है और साथ ही लोगों की पानी की आवश्यकता भी, तालाब गायब होते जा रहे हैं. परिणामस्वरूप लोगों को जल संकट से जूझना पड़ रहा है.
शहर के कई धार्मिक सराेवराें में हाेता है तर्पण : पितृपक्ष मेला में देश-विदेश से लाखों तीर्थयात्री अपने-अपने पितरों के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण व अनुष्ठान करते आ रहे हैं. शहर में श्राद्ध कर्म व तर्पण के लिए एक जमाने में 365 वेदियां हुआ करती थीं. इनमें से एक दर्जन से अधिक तालाबों को वेदी की मान्यता प्राप्त है. ब्रह्मकुंड, ब्रह्मसत, वैतरणी, उत्तर मानस सरोवर, रुक्मिणी तालाब, रामशिला तालाब सहित एक दर्जन तालाबों में श्राद्ध व तर्पण कर तीर्थयात्री अपने पितरों का उद्धार करते आ रहे हैं. यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है. संभवत: इन्हीं परंपराओं को जीवित रखने के लिए तालाबों का निर्माण कराया गया होगा.
इन तालाबों की उम्र कितनी होगी, इसकी चर्चा न तो पुराणों में है और न ही जानकारों के पास उपलब्ध है लेकिन माना जाता है कि गया शहर के प्रायः सभी तालाबों की आयु सैकड़ों साल की होगी. जिस प्रकार वेदियों का अतिक्रमण होने से इनकी संख्या वर्तमान में महज दर्जनों में सिमट कर रह गयी है. ठीक उसी प्रकार यहां के तालाबों की भी यही स्थिति हो गयी है. तालाबों का भी अतिक्रमण धड़ल्ले से जारी है. जिला मत्स्य विभाग से उपलब्ध जानकारी के अनुसार गया शहरी क्षेत्र को छोड़ कर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 1057 तालाब वर्तमान में उपलब्ध हैं.
नगरपालिका ने ही कठाेकर तालाब का अस्तित्व मिटाया : अंततः 1975 में नगर पालिका ने पुनः इस जमीन का अधिग्रहण किया था. नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन राणा रणजीत सिंह ने अवैध कब्जाधारियों को हटा कर 1980 में कठाेकर तालाब के भूखंड को कब्जा मुक्त कराया था. अस्तित्व खो चुके इन तालाबों व पोखरों पर वर्तमान में पक्की इमारतें व व्यावसायिक प्रतिष्ठानें खड़ी हैं.
इन इमारतों में हजारों लोगों का आज रहना हो रहा है. दिग्घी तालाब के उत्तरी हिस्से में रहे तालाब के ऊपर आयुक्त कार्यालय का आलीशान भवन बन गया है. शहर के जो तालाब वर्तमान में बचे हैं उनका भी तेजी से अतिक्रमण हो रहा है. वहीं भूजल रिचार्ज नहीं होने की वजह से तालाब भी सूखते जा रहे हैं. तालाबों को संरक्षित करने की यदि प्रशासनिक व सामाजिक पहल नहीं हुई तो आने वाले वर्षों में इसके अस्तित्व पर भी संकट के बादल छा सकते हैं.
तालाबाें का अतिक्रमण अब भी है जारी : वर्तमान में सूर्यकुंड, ब्रह्मसत सराेवर, वैतरणी तालाब, रुक्मिणी तालाब, रामसागर तालाब, दिग्घी तालाब का दक्षिणी भाग, उत्तर मानस तालाब, रामशिला स्थित रामकुंड, प्रेतशिला स्थित ब्रह्म कुंड, सरयू तालाब, गाेदावरी तालाब, बिसार तालाब, जिला पदाधिकारी के आवासीय कैंपस स्थित एक तालाब आज भी देखे जा सकते हैं. इन तालाबों की बदहाली भी देखी जा सकती है.तालाबों के हो रहे अतिक्रमण को भी देखा जा सकता है. रामसागर तालाब, बिसार तालाब सहित कई ऐसे तालाब व पोखर हैं जिसका तेजी से अतिक्रमण हो रहा है.
गया में तालाबों का होना क्यों है जरूरी
भौगोलिक संरचना व वैज्ञानिकों की राय के अनुसार गया में तालाबों का होना बेहद जरूरी माना गया है. अंत: सलिला फल्गु नदी व पहाड़ियों से घिरे हुए इस शहर में जल संरक्षण के लिए तालाबों का होना जरूरी बताया गया है. पर्यावरण विशेषज्ञ व वैज्ञानिकों की मानें तो तालाब कार्बन को सोख कर पर्यावरण को स्वच्छ बनाते हैं. इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल करेंट वर्ल्ड एन्वायरमेंट पत्रिका में छपेेेे एक शाेध के अनुसार तालाब व जलाशय जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह जीव मंडल की वैश्विक प्रक्रिया को बनाये रखने में भी कारगर होते हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो 500 वर्ग मीटर का तालाब एक साल में 1000 किलोग्राम तक कार्बन सोख सकता है. इसके साथ ही जलाशय सतही पानी से नाइट्रोजन जैसी गंदगी निकालने में भी मददगार होता है.
यह तापमान व आद्रता को भी नियंत्रित रखता है. भूगर्भ विशेषज्ञों की मानें तो मिट्टी के ढांचे में दो परतें होती हैं. इन दो परतों के बीच में खाली जगह रहती है. इस खाली जगह में जल के अणु व ऑक्सीजन होते हैं. जल के अणु व ऑक्सीजन दोनों परतों को एक दूसरे के संपर्क में आने से रोकते हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो यहां की भौगोलिक संरचना के लिए जल संचय को बेहद जरूरी माना गया है. यही कारण है कि तालाबों का अस्तित्व नष्ट होने से यहां का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है. इतना ही नहीं तालाबों व पोखरों का अस्तित्व नष्ट होने से आने वाले कुछ सालों में यहां के लोगों को भीषण जल संकट से जूझना भी पड़ सकता है.
1914 के सर्वे के नक्शे में हैं तालाब
हालांकि इन तालाबों व पोखरों के होने या न होने का कोई पुख्ता प्रमाण न तो प्रशासन के पास है और न ही यहां के जानकारों के पास उपलब्ध है, लेकिन कुछ स्थलों के नाम पोखरा व तालाब पर रहने से तालाब व पोखर होने का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है. कुछेक तालाब व पोखर के होने के प्रमाण अब भी गया के 1914 के सर्वे के नक्शे में उपलब्ध हैं, जिनका वर्तमान में कोई नामोनिशान नहीं है. नक्शे में इस तालाब के चारों हिस्सों में सीढ़ियां बनी हुई हैं. उदाहरण के तौर पर कठोकर तालाब, गंगटी पोखर, बनियापुर सहित अन्य कई स्थानों को अब भी देखा व सुना जा सकता है. कठोकर तालाब जिसका प्लॉट संख्या 11908 जो 1914 के सर्वे के नक्शे पर है.
जानकार बताते हैं कि इस तालाब को नगरपालिका के तत्कालीन प्रशासक द्वारा भरवा दिया गया था. इसके बाद इसे हाट बनाया गया था. तब के समय में यहां बैलगाड़ियां खड़ी होती थीं. 1970 के आसपास नगर पालिका प्रशासन ने इसे कोडरमा के सीएच कंपनी को लीज पर दिया था. इस भूखंड पर अवैध कब्जा होने के कारण कई सालों तक कंपनी का इस भूखंड पर कब्जा नहीं हो सका.
भू-माफियाआें ने मिटाया कई तालाबाें का अस्तित्व
जानकारों की मानें तो गया शहरी क्षेत्र में भी दो दर्जन से अधिक तालाब व पोखर थे. प्रशासनिक उदासीनता व भू-माफियाओं की तिरछी नजर के कारण आधे दर्जन से अधिक तालाबों का अस्तित्व मिट गया है. शेष बचे तालाबों को संरक्षित करने की यदि प्रशासनिक पहल शुरू नहीं हुई तो इनके अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा सकता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि तालाबों का अतिक्रमण यदि इसी तरह होता रहा तो आने वाले कुछ सालों में यहां पानी का भीषण संकट हो सकता है.
गया शहर में कठोकर तालाब, दिग्घी तालाब का उत्तरी हिस्सा, बनिया पोखर, गंगटी पोखर, माड़नपुर बाईपास जलाशय, आजाद पार्क जो पहले तालाब व पोखर हुआ करते थे. आज इनका अस्तित्व पूरी तरह से मिट चुका है. गंगटी पोखर जो विशाल रूप में था, यह आज एक गड्ढे में बदल कर रह गया है. यह पोखर मिर्जा गालिब कॉलेज के पास स्थित है जिस पर भू-माफिया की तिरछी नजर पड़ी हुई है. इस पोखर को बचाने के लिए उच्च न्यायालय में पार्षद धर्मेंद्र कुमार द्वारा वर्ष 2016 में अपील भी की गयी है.’ जिसका केस संख्या 7179 / 2016 है. इस पोखर के विषय में धर्मेंद्र कुमार बताते हैं कि वर्तमान में बने व्हाइट हाउस कंपाउंड के बीचों-बीच में यह पोखर स्थित था. इसकी प्लॉट संख्या 4841 है.
1984 के सर्वे में यह पोखर बिहार सरकार के नाम पर चढ़ गया था. बाद में इस पोखर का खेसरा 1488 व प्लॉट संख्या 4828 हो गया है. नगरपालिका के तत्कालीन अधिवक्ता अब्दुल शकूर खान ने इस पोखर को अपने नाम पर चढ़ा लिया था. इसके बाद पार्षद श्री कुमार ने उच्च न्यायालय में अपील की थी, जिसकी डबल बेंच के न्यायाधीशों ने सुनवाई करते हुए लोकायुक्त से जांच कराने का निर्देश जिला प्रशासन को दिया था. जांच की यह प्रक्रिया आज भी अधर में लटकी हुई है.
इस गढ्ढे रुपी पोखर के आसपास बनी इमारतों के पोखर की जमीन पर ही बने होने की बात जानकारों द्वारा बतायी गयी है. जानकारों की मानें तो इस पोखर का निर्माण टिकारी राज के वारिस राजा गोपाल शरण द्वारा कराया गया था. इसके अलावा भी कई ऐसे तालाब व पोखर हैं, जिनका अब नामोनिशान नहीं रह गया है.
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