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सुध लेने नहीं आते अधिकारी

गया: बिहार गवर्नमेंट प्रेस राज्य का धरोहर है. 1914 में बिहार गवर्नमेंट प्रेस को ढाका से लाकर गया में स्थापित किया गया था. प्रेस ने स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर लिये. लेकिन, इसे चलायमान रखने समेत सुरक्षा व संरक्षा की जिम्मेदारी जिसे दी गयी है, वह इसकी सुध तक लेने नहीं लेते हैं. प्रेस […]

गया: बिहार गवर्नमेंट प्रेस राज्य का धरोहर है. 1914 में बिहार गवर्नमेंट प्रेस को ढाका से लाकर गया में स्थापित किया गया था. प्रेस ने स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर लिये. लेकिन, इसे चलायमान रखने समेत सुरक्षा व संरक्षा की जिम्मेदारी जिसे दी गयी है, वह इसकी सुध तक लेने नहीं लेते हैं. प्रेस महीनों से बंद है. यह दर्द है वहां कार्यरत कर्मचारियों का.

बिहार गवर्नमेंट प्रेस आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. वर्षो से इसकी साफ-सफाई नहीं हुई है. कूड़ों का अंबार लगा है. छोटे-छोटे कल-पुरजे व मोबिल के अभाव में मशीनें बंद पड़ी हैं. बिजली बिल बकाया रहने के कारण विभाग ने कनेक्शन काट दिया था. आठ महीने से बिजली की सप्लाइ बंद थी. बिल भुगतान के बाद बिजली कनेक्शन जोड़ा गया. कर्मचरियों ने बताया कि उन्हें दो माह से वेतन भी नहीं मिला है. पैसों के अभाव में घर चलाना मुश्किल हो गया है. बच्चों कर पढ़ाई-लिखाई प्रभावित हो रही है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि वर्षो से वरदी, साबुन व तौलिया आदि नहीं दिये जा रहे हैं.

कर्मचारियों ने सदर एसडीओ सह प्रेस अधीक्षक मकसूद आलम से सप्ताह में कम से कम एक घंटे का समय देने की मांग की थी, लेकिन आज तक वह प्रेस नहीं गये.

इस संबंध में एसडीओ एसडीओ सह प्रेस अधीक्षक ने बताया कि इन दिनों चुनाव की व्यस्तता से वह प्रेस नहीं जा पा रहे है. कर्मचारियों की समस्याओं का जल्द ही समाधान निकालने का प्रयास किया जायेगा. इधर, उपाधीक्षक अरुण कुमार सिंह अपने अधिकारों का रोना रोते हैं. वह डीडीओ (ड्राइंग डिस्परशन अफसर) भी हैं. बिहार राज्य गवर्नमेंट प्रेस मजदूर संघ, गया के महामंत्री दिलीप कुमार गुप्ता ने बताया कि प्रेस की हालत नाजुक है. अधिकारी सप्ताह में एक दिन भी बैठने लगे, तो काफी समस्याएं दूर हो जायेंगी.

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