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निर्भयता का जनक है सत्य : मोरारी बापू

बोधगया: रामकथा वाचक संत श्री मोरारी बापू ने कालचक्र मैदान में आयोजित रामकथा का प्रवचन करते हुए कहा कि मध्यम मार्ग ही जीवन जीने का सर्वोतम और व्यावहारिक रास्ता है. उन्होंने कहा कि निर्भयता सत्य के बगैर नहीं आ सकती. जीवन में अहिंसा करुणा से, त्याग प्रेम से व अभय सत्य से आता है. रामकथा […]

बोधगया: रामकथा वाचक संत श्री मोरारी बापू ने कालचक्र मैदान में आयोजित रामकथा का प्रवचन करते हुए कहा कि मध्यम मार्ग ही जीवन जीने का सर्वोतम और व्यावहारिक रास्ता है. उन्होंने कहा कि निर्भयता सत्य के बगैर नहीं आ सकती.

जीवन में अहिंसा करुणा से, त्याग प्रेम से व अभय सत्य से आता है. रामकथा के आयोजन के सातवें दिन बापू ने श्रोताओं को जीवन के रहस्यों की पहचान करने संबंधी कई नुस्खों से अवगत कराया. उन्होंने कहा कि साधु को आदर की अपेक्षा नहीं होती है. परंतु, उसकी अपेक्षा से लोगों को हानि हो जाती है. व्रतमान धार्मिक व्यक्ति की पहचान है व वर्तमान आध्यात्मिक की. बापू ने कहा कि आज के अशोक को अस्त्र छोड़ देना चाहिए. श्री राम ने भी रावण के वध के बाद मुनि वशिष्ट के चरणों में सब कुछ समर्पित कर दिया था. मतलब यह कि शस्त्र शास्त्र के शरण में चला गया. एक प्रसंग में उन्होंने कहा कि बुद्ध जापानी, थाई व तिब्बती नहीं होते हैं.

बुद्ध तो देश मुक्त निबंध हैं. असीम हैं. अमित योगी हैं. बापू ने कहा कि रामकथा के नौ बुद्ध हैं. इसमें शिव अनादि बुद्ध हैं. तुलसीदास ने मानस में कहा कि बोधमयं नित्यं गुरु शंकर रूपिणम्. बापू ने प्रवचन के दौरान महाबोधि मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित बुद्ध की मूर्ति का हवाला देते हुए कहा कि बुद्ध की निगाहें सामने स्थित शिवलिंग पर टिकी हैं. एक प्रसंग की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जब बुद्ध से किसी ने पूछा कि आपके नहीं रहने पर बुद्ध की पहचान कैसे होगी.

तब बुद्ध ने कहा था कि इस विग्रह के विषयों में आसक्ति के आधार पर पहचान होगी. उन्होंने कहा कि बोध होता है और प्रबोध किया जाता है. बुद्ध स्थूल नहीं, सूक्ष्म की बात करते हैं. हमें बुद्ध पुरुष के प्रकाश में जीना होगा. गुरु हमारे जीवन की गति को संयमित और संतुलित करते हैं. बुद्ध पुरुष विचार किये बिना क्रिया करते हैं और हम विचार करने के बाद क्रिया करते हैं. भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली पर संत श्री ने प्रवचन करते हुए बुद्ध पुरुषों के लक्षण को व्यक्त करते हुए कहा कि हमें यह देखना चाहिए कि आदमी में शील कितना है. वह पुरुष कितना शीलवान है. वह दूसरे के दु:ख से दुखी व दूसरे के सुख से सुखी होता है कि नहीं. बापू ने कहा कि आज का मानव दूसरों के दु:ख से दुखी तो होता है पर, दूसरे के सुख से सुखी नहीं हो पाता है. बापू ने रामकथा के प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा कि नारद ने भक्ति शास्त्र लिखा और मीरा ने भक्ति गीत को गाया. राधा के लिए कृष्ण वल्लभ हैं व मीरा के लिए कृष्ण बालम हैं. मीरा एक मुदित अवस्था की पहचान हैं. श्रोताओं को बुद्ध के गुणों से प्रेरित करते हुए बापू ने कहा कि बुद्ध पुरुष यश-अपयश, दु:ख-सुख, हानि-लाभ आदि से परे होते हैं. वह संग में भी असंग रहता है. उसे मृत्यु का भय नहीं होता है. कथा के अंत में मंगल आरती की गयी व श्रोताओं को नमन कर बापू प्रस्थान कर गये

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