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सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दिखे तो करें उपचार

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दिखे तो करें उपचार पैदावार की कमी रोकने के लिए यह जरूरीजाले कृषि विज्ञान केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डा. आनंद प्रसाद राकेश ने किसानों को दी सलाहजाले. मौसम हो रहे बदलाव को देखते हुए स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र में उपस्थित किसानों को सजग रहने की सलाह देते हुए मृदा वैज्ञानिक […]

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दिखे तो करें उपचार पैदावार की कमी रोकने के लिए यह जरूरीजाले कृषि विज्ञान केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक डा. आनंद प्रसाद राकेश ने किसानों को दी सलाहजाले. मौसम हो रहे बदलाव को देखते हुए स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र में उपस्थित किसानों को सजग रहने की सलाह देते हुए मृदा वैज्ञानिक डा़ आनंद प्रसाद राकेश ने कहा कि वर्तमान रबी फसलों में कीट व्याधि के अतिरिक्त फसलों में सूक्ष्म पोषक तवों की कमी के लक्षण भी दिखाई दें तो उसे पहचान कर उसका उपचार करना चाहिए़ इससे पैदावार की कमी को रोका जा सकता है़ बिहार की मिट्टी में कुछ सूक्ष्म पोषक तव जैसे जस्ता, लोहा, मैगनीज एवं बोरान की कमी वर्तमान रबी की फसल में पाई जा रही है़ मिट्टी के जांच प्रतिवेदन से यह पाया गया है कि बिहार में जस्ता की कमी 30 से 80 प्रतिशत, बोरान की कमी 10 से 50 प्रतिशत तथा मैगनीज की कमी 10 से 15 प्रतिशत मिट्टी में है़ लोहे की कमी अधिकांशत: चूनायुक्त लवणीय, क्षारीय एवं लवणीय-क्षारीय मिट्टी में पाई जाती है़ इन मिट्टी में लोहे की कमी 20 से 30 प्रतिशत तक है़प्रोटीन की मात्रा बढाती है जस्ता जस्ता. इससे पौधों के अन्दर इण्डोल एसेटिक ऐसीड नामक हार्मोंन का निर्माण करने में सहायता करता है, जो पौधों की वृद्ध के लिए उत्तरदायी होता है़ यह प्रोटीन की मात्रा को भी बढ़ाता है़ इसकी कमी के लक्षण प्रमुख रबी फसलों में इस प्रकार दिखाई देते हैं. जस्ता की कमी के लक्षण गेहूं में कल्ले निकलने समय दिखाई देते हैं. सर्वप्रथम ऊपर से तीसरी पत्ती के मध्य सिरा एवं किनारों के मध्य बीच में भागों में हल्के पीले रंग की धारी बन जाती है, जो आगे चलकर भूरे रंग में बदल जाती है़ पत्ती बीच में सिकुड़ने लगती है एवं सूख जाती है़जस्ता की कमी मक्का में नवीन पत्ती के आधार के तन्तु मध्य सिराके दोनों तरफ से सफेद पीले रंग में बदल जाते हैं, जो धीरे-धीरे पत्ती के अगले हिस्से की ओर बढ़ते हैं. जस्ते की अधिक कमी के स्थिति में पूरी पत्ती सफेद-पीले रंग की हो जाती है़ तने के दो गांठों के बीच की दूरी कम हो जाती है और पौधे छोटे दिखाई देने लगते हैं. बाद में पत्तियों का सफेद भाग सूखने लगता है़ इसे सफेद कली-रोग भी कहा जाता है़ जस्ते के आभाव में चना एवं मसूर के पौधे के बीच वाले भाग की पत्तियां का हरा रंग लाल भूरे रंग में बदल जाती है और बाद में ये पत्तियां सूखने लगती है़ पौधों की वृद्ध रुक जाती है, शाखाएं कम निकलती है और पत्तियां आकार में छोटी दिखती है़ मटर में जस्ते की कमी से पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है एवं पौधों की वृद्धि कम हो जाती है़ फलियों में दाने कम भरते है, फलस्वरुप ऊपज घट जाती है तथा उत्पाद की गुणवत्ता में कमी आती है़ प्याज में जस्ते की कमी होने से पौधे के बढ़वार रुक जाती है़ ऊपरी पत्तियां टेढ़ी हो जाती है, जो आगे चलकर सिकुड़ना एवं सूखना प्रारम्भ कर देती है़ प्याज की गांठ आकार में काफी छोटी हो जाती है़जस्ते का कैसे करें व्यवहारफसलों में जस्ते की व्यवहार विधियों में मिट्टी उपचार विधि सर्वोत्तम है़ यदि मिट्टी में जस्ते का व्यवहार नहीं किया गया हो तो पांच किलोग्राम जिंक सल्फेट को ढाई किलोग्राम बुझे चूने के साथ मिलाकर 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करने से उपज में 30 से 40 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाती है़ इसके अतिरिक्त चिलेटेड जिंक का भी अनुशंसित मात्रा छिड़काव लाभप्रद पाया गया है़दलहनी व तेलहनी में दिखते है लोहा की कमी के लक्षण रबी फसलों के प्रमुख दलहनी एवं तेलहनी फसलों में लोहे की कमी के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं. लोहे की कमी होने पर सर्वप्रथम ऊपर की पत्तियों का रंग पीला सफेद होने लगता है और बाद में पूरी पत्ती सफेद रंग में बदल जाती है तथा सूखने लगती है़ मिट्टी में लोहे की कमी को फेरस सल्फेट 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा पाइराइट 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर डालकर पूरा किया जा सकता है़ इसका प्रयोग बुआई के समय अन्य उर्वरकों के साथ मिलाकर प्रयोग करना चाहिए, लेकिन पाइराइट को बुआई के 25 दिन पहले ही मिट्टी में डाल देना चाहिए, जिससे रासायनिक क्रिया पूरी हो सके़ फेरस सल्फेट का छिड़काव अत्यधिक लाभप्रद बताया़ लोहे की कमी को 1 से 2 प्रतिशत फेरस सल्फेट को पानी में घोलकर दस दिनों के अंतर पर 2 से 3 छिड़काव करने से दूर किया जा सकता है़मिट्टी में दस से पंद्रह फीसद कम पाये जा रहे मैगनीजबिहार के अधिकांश इलाके के मिट्टियों में मैगनीज की कमी 10 से 15 प्रतिशत पाई गई है़ इस कमी से पौधों में पीलिया रोग उत्पन्न हो जाता है़ रबी के जई फसल में इसके लक्षण अधिक दिखाई देता है़ इसकी कमी से आरम्भ में पौधे के निचली पत्तियों पर नीले भूरे रंग के धब्बे प्रकट होते है जो क्रमश: मिलकर उत्तक के रंग को बादामी कर देती है़ पत्तिया बादामी रंग की होकर टूटने लगती है़ जड़ों का ठीक से विकास नहीं होता और पौधे सूखने लगता है़फूलगोभी पर दिखता है बोरान का प्रभाव रबी फसलों के प्रमुख दलहनी, तेलहनी एवं फूलगोभी की फसलें बोरान की कमी से प्रभावित होती है़ इसकी कमी से शर्करा के प्रवाह समुचित ढंग से नहीं होने से अग्रिम कलिका की मृत्यु हो जाती है़ इससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है तथा शाखाएं बहुत कम बनती है़ पौधों में फूल, फल एवं बीज बनने की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है़ गेहूं एवं मक्का में बोरान की कमी से बीज बनने की क्रिया बाधित होती है क्योंकि परागन की क्रिया में इसका महवपूर्ण भूमिका है़

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