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चुगला करे रे चुगली, बिलईया करे रे म्याउं…

चुगला करे रे चुगली, बिलईया करे रे म्याउं… फोटो:::::::परिचय : मिथिला की संस्कृति में बसा है सामा चकेवा का राग कार्तिक पूर्णिमा को विसर्जन के साथ होगा समापन कमतौल. ‘डाला ल बहार भेली बहिनों से, सामा खेले गेली हे बहिनों. वृंदावन में आग लागल कियो ने बुझावे हे, जैसे गीत इन दिनों गांव के गली-गली […]

चुगला करे रे चुगली, बिलईया करे रे म्याउं… फोटो:::::::परिचय : मिथिला की संस्कृति में बसा है सामा चकेवा का राग कार्तिक पूर्णिमा को विसर्जन के साथ होगा समापन कमतौल. ‘डाला ल बहार भेली बहिनों से, सामा खेले गेली हे बहिनों. वृंदावन में आग लागल कियो ने बुझावे हे, जैसे गीत इन दिनों गांव के गली-गली में गूंज रहे हैं. दरअसल ये गीत यहां के प्रसिद्ध लोकपर्व सामा-चकेवा के हैं. हालांकि आधिकांश जगहों पर इसकी शुरुआत छठ व्रत के समापन के दिन से होता है़ परन्तु कहीं-कहीं खरना के दिन ही इसकी शुरुआत की जाती है़ जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदी और तालाबों में प्रतिमा विसर्जन के साथ समाप्त हो जायेगा़ वैसे तो इसकी परम्परा शहर बाजार में लगभग समाप्त होने के कगार पर है, लेकिन ग्रामीण अंचल में इस पर्व को जीवंत बनाये रखने में बहनों और महिलाओं का योगदान सराहनीय है़ इस पर्व की तैयारी में बहने व महिलाएं छठ पर्व के समापन के साथ ही जुट जाती है़ इसमें मिट्टी की सामा-चकेवा, चुगला, भैर, सतभैया आदि की मूर्तियां बनाती हैं, विसर्जन से पहले भाई उसे तोड़ता है़ ये मूर्तियां विभिन्न रंगों में रंगी जाती है तथा प्रतिदिन रात्रि में महिलाएं समूह में गीत गाती हैं. इस कारण गांव-घर गीतों से गुंजायमान होता रहता है़ लोगों की मानें तो भाई बहन के पवित्र प्रेम पर आधारित लोक-आस्था और लोकाचार की प्राचीन परंपरा से जुड़े भाई-बहनों के बीच स्नेह का यह लोकपर्व मिथिलाचल में आज भी काफी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है़ सामा-चकेवा को लेकर छोटी-छोटी बच्चियों में खासा उत्साह देखा जाता है़ इस अवसर पर पति के साथ परदेस या ससुराल रहने वाली अपनी बहनों को भी बुला लिया जाता है़ रिद्धि, सिद्धि, प्रज्ञा, परी, जूली, संध्या, रिया, चुनमून, काजल, सपना आदि बहनों की मानें तो इस पर्व को बहनें अपने भाइयों के दीर्घायु होने की कामना करती हैं. इसलिए इसे भ्रातृ प्रेम का अनुपम पर्व होने का गौरव प्राप्त है़ एकादशी तिथि से इसकी विदाई की तैयारी शुरू हो जाती है़ बेटी की विदाई की तरह उपहार में दिए जाने वाले कई प्रकार के सामान मिट्टी के बनाये जाते हैं. कई प्रकार के जेवर और कपड़ा देकर विदाई किया जाता है़ कार्तिक पूर्णिमा की रात चुगला को आग लगा कर जोते हुए खेत में फेंक दिया जाता है़ इस मौके पर पटाखे भी छोड़े जाते हैं. इस दौरान वृंदावन में आग लागल, कोई नै बुताबै छय, हमरो से सभे भैया, दौड़-दौड़, बुताबै छय, सेमा खेलै गेलियै हो भईया चकेवा लाय गैलै चोर, चुगला करे रे चुगली, बिलईया करे रे म्याउं ‘सरीखे गीत गाती है़ं वही परंपरागत विदाई लोक गीत ‘बड़ा रे जतन से हम सामा दाई के पोसली’ से आसपास का क्षेत्र गमगीन हो जाता है़

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