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शहीद प्रवीण का शव पहुंचते रो पड़ा शहर
दरभंगा/मधुबनी : अररिया के भरगामा में बतौर थानाध्यक्ष प्रवीण कुमार की मंगलवार की शाम एक आपराधिक मुठभेड़ में हुई मौत की खबर जैसे ही भौआड़ा पहुंची तो एकबारगी सन्नाटा पसर गया. यह खामोशी बुधवार की सुबह तक पसरी रही. पर जैसे ही प्रवीण का शव लदे वाहन आवास के सामने आकर रूकी तो मानो पूरा […]
दरभंगा/मधुबनी : अररिया के भरगामा में बतौर थानाध्यक्ष प्रवीण कुमार की मंगलवार की शाम एक आपराधिक मुठभेड़ में हुई मौत की खबर जैसे ही भौआड़ा पहुंची तो एकबारगी सन्नाटा पसर गया. यह खामोशी बुधवार की सुबह तक पसरी रही.
पर जैसे ही प्रवीण का शव लदे वाहन आवास के सामने आकर रूकी तो मानो पूरा शहर चीत्कार उठा. वहां मौजूद सैकड़ों लोगों की भीड़ दहाड़ मार कर रोने लगी. मां तो सुनकर ही बेहोश हो गयी.
पिता धैर्य दिखाने की कोशिश में गस खा जाते. यहां मुश्किल यह दिख रहा था कि कौन व्यक्ति कैसे दयानंद सिंह को धैर्य रखने की सलाह दे. आलम हर चेहरे पर सामान था. हर आंख आंसुओं में डूबा हुआ था. लोग प्रवीण की हर अनछुए पहलुओं को याद कर रो रहे थे. एकलौते बेटे को खोने के गम में पिता दयानंद सिंह बिलख कर रो रहे थे.
शव यात्रा में सैकड़ों ने लिया हिस्सा
सुबह करीब आठ बजे प्रवीण के शव को अंतिम संस्कार के लिये उनके भौआड़ा स्थित आवास से उठाया गया.मां, बहन और पत्नी के चित्कार के बीच मोहल्ले वासियों के आंसुओं में लिपटी शव को उठाने की हिम्मत कोई नही कर पा रहा था. पर नियति के आगे विवश लोगों ने शव को जीवछ नदी पर ले जाने के लिये रवाना हुए.
दुर्भाग्य यह था कि शव को उन कंधों का सहारा मिला जो कभी बचपन में प्रवीण को कंधे पर घुमाया करते थे. इसे देख सैकड़ों खड़े लोगों की आंखे फिर छलक पड़ी थी. मां फटी आंखों से बेटे के शव को देख रही थी तो पत्नी चित्कार रही थी.
बारिश के बीच हुआ दाह संस्कार
बुधवार की सुबह से ही बारिश हो रही थी. इसी बीच में शहीद प्रवीण का दाह संस्कार हुआ.प्रवीण के बड़े बेटे कनिष्क ने पिता को मुखागिA दी. वह अपने दादा के गोद में था. वह भी पिता की याद में सुबक रहा था. वह कभी दादा का चेहरा देखता तो कभी लोगों को देखता. इस दौरान बारिश होती रही. हालांकि मुखागिA के बाद शव को जलाने में बारिश बाधा बनने की कोशिश कर रही थी, लेकिन लोगों की तत्परता से ससमय शव का दाह संस्कार हुआ.
पढ़ाई में अच्छे थे प्रवीण
दयानंद सिंह मधुबनी में हवलदार के पद पर थे. वह लंबे समय तक डीएम के अंगरक्षक रहे. इस दौरान पूरे इलाका से उनका एक अलग संबध रहा. प्रवीण भी अपने पिता के साथ ही रहा और मधुबनी में ही उनकी शिक्षा दीक्षा हुई. प्रारंभिक शिक्षा मोडाना इंगलिश स्कूल से हुई.
उसके बाद तत्कालीन वाटसन हाइस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की. फिर शहर स्थित आर के कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल किया था. परिजन बताते है कि वह पढ़ाई में काफी अच्छे थे. सबसे बड़ी बात थी कि वह समय के बहुत पाबंद रहते थे. पढाई के अलावे खेल कूद में भी उनकी अभिरुचि रहती थी.
बैडमिंटन के थे चैंपियन
प्रवीण को अमूमन हर खेल से लगाव था. पर वह बैडमिंटन का अच्छा खिलाड़ी था. बिहार बैडमिंटन संघ के कोषाध्यक्ष हेमेंद्र नारायण सिंह ने बताया है कि प्रवीण बचपन से ही बैडमिंटन का अच्छा खिलाड़ी था. जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक कई बार उसने अपने खेल के दम पर मधुबनी का नाम रोशन किया था. वह अपने समय में जिला का चैंपियन था.
साल 1990 में वह इस्ट जोन खेल चुका था. वहीं साल 2003 में नेशनल चैंपियनशिप में भाग लिया था. इसके अलावे वह नेशनल कैंप में भी 45 दिनों तक हिस्सा ले चुका है. पटना के टीम से भी वह खेल चुके थे. उन्होंने बताया कि पुलिस सेवा में जाने से पहले बैडमिंटन के दम पर ही रेलवे में नौकरी मिली थी. पर उनका मन पुलिस सेवा में लगा था.
परिजन थे आक्रोशित
शहीद प्रवीण कुमार के पिता दयानंद सिंह अपने बेटे के मौत से तो सदमे में हैं. पर वह अररिया पुलिस के व्यवहार से भी काफी दुखी बताये गये. शहीद बेटे को उचित सम्मान नहीं मिलने से वे काफी आहत थे. वहीं, मृतक के फुफेरे भाई संजीव सिंह जो शव लाने के लिये अररिया गये थे उनके चेहरे से आक्रोश झलक रहा था. उन्होंने कहा कि प्रवीण की मौत गहरी साजिश का हिस्सा है.
कहा कि अररिया सदर अस्पताल में जब वे लोग पहुंचे तो पुलिस बल की काफी भीड़ थी. पर मृतक के पिता से मिलने तक नहीं आये. इसको लेकर सबों में काफी आक्रोश था. वहीं शहीद के शव को अररिया पुलिस के द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर तक नहीं दिये जाने की बात से पिता काफी आहत थे और अपने बेटे के काम को याद कर काफी बिलख रहे थे.
एकलौते पुत्र थे प्रवीण
शहीद थानाध्यक्ष प्रवीण कुमार अपने पिता के एकलौते पुत्र थे. इनके अलावे दयानंद सिंह को दो पुत्री है. यही वजह रही है कि प्रवीण का लालन पालन परिवार बड़े लाड़ प्यार से हुआ. पिता बताते हैं कि वह काफी सुलझा व अनुशासित था. स्कूली जीवन से ही वह लगनशील रहा.
कभी भी उसे पढ़ाई लिखाई के लिए ज्यादा डांट फटकार करने की जरूर नहीं पड़ी. वह जानता था कि मैं पुलिस महकमें में एक छोटे ओहदे पर हूं. इसलिए वह हमसे सीनियर पोस्ट पर जाने की सदैव बात करता था. हालांकि वह रेलवे में नौकरी होने के बाद भी वह पुलिस सेवा में जाने की अपनी जिद पर कायम था. यही कारण रहा कि 2009 में वह बिहार पुलिस सेवा में अधिकारी स्तर पर गया.
पिता बताते हैं कि पुलिस सेवा में जाने के बाद से वह काफी खुश रहता था. वह काफी जोशीला था और अपने काम के प्रति जवाबदेह भी था. यही कारण है कि अब तक उसे विभाग की ओर से सराहना ही मिलती रही. उसने अपने काम से अपनी पहचान बनायी थी.
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