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आम आदमी भी जीत सकता है चुनाव

दरभंगा : वर्तमान भारतीय राजनीति में एक सुखद बदलाव यह आया है कि अब एक आम आदमी भी चुनाव लड़ सकता है और जीत भी सकता है. तीन-चार दशक पूर्व तक वही लोग चुनाव जीतते थे जो या तो धनवान थे, किसी राजनीतिक परिवार के सदस्य थे, किसी राजघराने से संबंध रखते थे या किसी […]

दरभंगा : वर्तमान भारतीय राजनीति में एक सुखद बदलाव यह आया है कि अब एक आम आदमी भी चुनाव लड़ सकता है और जीत भी सकता है. तीन-चार दशक पूर्व तक वही लोग चुनाव जीतते थे जो या तो धनवान थे, किसी राजनीतिक परिवार के सदस्य थे, किसी राजघराने से संबंध रखते थे या किसी विशेष क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोग हुआ करते थे. इन्हें बाहुबली या दबंग लोगों का समर्थन प्राप्त होता था. इसके बाद पांचवां ग्रुप इन दबंगों का रहा जो चुनाव जीतते रहे.

लनामिवि के राजनीति विज्ञान विभाग में आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह को संबोधित करते हुए बतौर मुख्य अतिथि प्रो सैयद मुमताजुद्दीन ने यह बातें कही. उन्होंने कहा कि आज से तीन-चार दशक पूर्व किसी पार्टी के जिलाध्यक्ष या प्रदेश अध्यक्ष का बड़ा महत्व होता था. पर आज लोगों को उनका नाम भी पता नहीं होता. पार्टियों में कार्यकर्ताओं का कद घटा है. अब पार्टी सिस्टम, पर्सनालिटी सिस्टम में बदलता जा रहा है.

पिछला लोकसभा चुनाव तीन नामों पर लड़ा गया, जिनमें मोदी, राहुल और केजरीवाल थे. उन्होंने कहा कि हाल के चुनावों में क्षेत्रीय दलों की स्थिति घटी है और राष्ट्रीय मुद्दे ज्यादा हावी हो रहे हैं. जाति और संप्रदाय पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव निर्धारित करने में हमेशा से इनका महत्व रहा है. फिर भी राष्ट्रीय मुद्दों ने अपना असर नहीं खोया. मनरेगा, आरटीआइ अधिनियम आदि कार्यो के बदौलत यूपीए-वन की सरकार ने चुनाव में जीत हासिल की लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में कई घोटालों के उजागर होने के कारण उसे हार का सामना करना पड़ा. यह दिखाता है कि लोगों ने जाति और समुदाय से ऊपर उठकर वोट किया. यह भी एक सुखद प्रवृत्ति है. 2014 लोकसभा चुनाव एवं इससे पूर्व हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह ट्रेंड सामने आया कि एक आम आदमी भी चुनाव लड़ सकता है और जीत सकता है.

मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया किसी का भी इमेज बनाने की क्षमता रखता है.ऐसे में मीडिया को भी अपनी जवाबदेही तय करनी होगी. सेमिनार के आयोजन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे सेमिनार समाज को सही दिशा देने में सहायक होंगे. उन्होंने कहा कि बिहार में किन विषयों पर शोध किया जाये यह शोधार्थियों को पता भी नहीं होता. यहां कॉपी पेस्ट का काम जोरों पर चल रहा है जिसे स्वीकारने में कोई हिचकिचाहट नहीं है. यहां लोग संसाधन की कमी का रोना रोते हैं. इसके लिए जरूरी है कि हम बाहर के एक्सपर्ट को यहां बुलायें जो इन सीमित संसाधनों में किस प्रकार के शोध किये जा सकते हैं, इस पर प्रकाश डाल सकें.

विभागाध्यक्ष डॉ जेपी यादव की अध्यक्षता में आयोजित समापन समारोह का संचालन आयोजन सचिव डॉ सत्यनारायण प्रसाद ने किया. इस अवसर पर जेएनयू से आये डॉ प्रदीप कांत चौधरी, दिल्ली विश्वविद्यालय से आये डॉ सूरज यादव, पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ अनिल कुमार झा आदि ने भी अपने विचार रखे. सेमिनार में सर्वोत्तम आलेख प्रस्तुत करने वाले शोधार्थियों को पुरस्कार की घोषणा भी की गयी. इस कड़ी में भारतीय राजनीति में मतदाताओं के पैदा होते नये वर्ग पर प्रस्तुत आलेख के लिए दिलीप मंडल को प्रथम पुरस्कार दिया गया. वहीं पुष्पांजलि कुमार को द्वितीय जबकि संजीव कुमार झा एवं मो जमशेद आलम को संयुक्त रूप से तृतीय पुरस्कार के लिए चयनित किया गया. साथ ही पिंटू कुमार, अनिता कुमारी, धीरेंद्र कुमार झा व जयंत कुमार राय को सांत्वना पुरस्कार की घोषणा की गयी. कार्यक्रम में कई विभागाध्यक्ष, कई महाविद्यालयों से आये शिक्षकगण, शोधार्थी सहित कई छात्र-छात्रएं उपस्थित थे.

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