अनदेखी. महात्मा गांधी का सपना हो रहा चकनाचूर, विद्यालयों से गायब हो गये संसाधन
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बुनियादी विद्यालयों की बुनियाद हुई कमजोर
अनदेखी. महात्मा गांधी का सपना हो रहा चकनाचूर, विद्यालयों से गायब हो गये संसाधन बुनियादी विद्यालयों से कौशल विकास की सारी चीजें गायब हो गयी हैं. इन स्कूलों में न तो चरखा है और न ही सिलाई-कढ़ाई की चीजें. स्कूलों में गांधी जी का कोई प्रतीक चिह्न भी नहीं है. बक्सर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी […]
बुनियादी विद्यालयों से कौशल विकास की सारी चीजें गायब हो गयी हैं. इन स्कूलों में न तो चरखा है और न ही सिलाई-कढ़ाई की चीजें. स्कूलों में गांधी जी का कोई प्रतीक चिह्न भी नहीं है.
बक्सर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों में शुमार बुनियादी विद्यालयों की बुनियाद हिल गयी है. इनका अस्तित्व मिटने के कगार पर है. ये विद्यालय बुनियादी शिक्षा से तो दूर हैं ही, हालात यह हो गये हैं कि अब सामान्य शिक्षा भी इन विद्यालयों में लागू नहीं हो पा रही है. अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है.
गांधी जी का सपना था बुनियादी विद्यालय : आजादी से पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सन 1919 में बुनियादी विद्यालयों की स्थापना की परिकल्पना की थी. सन 1934 में बुनियादी विद्यालयों का विकास का कार्य शुरू किया गया. वर्ष 1947 में आजादी के समय बिहार में कुल 391 बुनियादी विद्यालयों की स्थापित की गयी, जिसमें बक्सर जिले में सात विद्यालयों की स्थापना हुई थी.
स्वावलंबी बनाना था विद्यालय का मुख्य उद्देश्य : बुनियादी विद्यालयों की स्थापना का मूल उद्देश्य लोगों को स्वावलंबी बनाना था. इसके तहत ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के व्यावहारिक, रोजगार परक एवं कार्य कौशल की शिक्षा प्रदान करनी थी, जिससे स्वरोजगार को बढ़ावा मिलता था, लेकिन यह सब अब बीते दिनों की बातें हो चली है.
क्यों हिल गयी बुनियादी विद्यालयों की बुनियाद : वर्ष 1980 के बाद इन स्कूलों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गयी, जो शिक्षक पदस्थापित थे, वे धीरे-धीरे सेवानिवृत्त हो गये. नतीजा यह हुआ कि शिक्षकों की संख्या घटती चली गयी. सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्वीकृत पद के लिए हर बुनियादी विद्यालय के बेसिक ग्रेड में तीन और स्नातक ग्रेड में दो शिक्षकों का पदस्थापना किया जाना था, जो दुर्भाग्यवश नहीं हो पाया.
नियोजित शिक्षकों के भरोसे बुनियादी विद्यालय : जिले के चौसा, ब्रह्मपुर, नावानगर, इटाढ़ी, डुमरांव और बक्सर प्रखंड मुख्यालय स्थित बुनियादी विद्यालयों में से किसी में छात्रों को कौशल विकास उपकरण का लाभ नहीं मिलता है.
1947-50 में बने उक्त विद्यालयों में वर्ग एक से आठवीं कक्षा में अमूमन 400 छात्रों का नामांकन है. विद्यालयों में नियुक्त 90 प्रतिशत शिक्षक नियोजित हैं. कौशल विकास उपकरण किसी विद्यालय में नहीं है. विद्यालयों में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों की घोर कमी के कारण रख-रखाव का अभाव है. कई जगह अतिक्रमण भी है. विद्यालयों का पुराना भवन काफी जर्जर हो क्षतिग्रस्त हो चुका है. विद्यालय में कौशल विकास उपकरण नहीं रहने के चलते बच्चों का हुनर निखार का कार्य नहीं हो रहा है. समय के साथ सभी उपकरण बेकार हो गये हैं.
सुधरेंगे हालात
बुनियादी विद्यालय की स्थिति 70 के दशक में ही चरमराना शुरू हो गयी थी. वर्तमान स्थिति की गंभीरता को नकारा नहीं जा सकता है. बुनियादी विद्यालय के उत्थान के लिए सरकार ने कदम उठाया है. इस विद्यालय के सुधार के लिए चरणबद्ध शिक्षकों की बहाली होगी. हालांकि पहले चरण में बक्सर नहीं है, फिर भी हम अपनी ओर से भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि सरकार की नयी योजना से जिला लाभान्वित हो.
कृष्ण कुमार, जिला शिक्षा पदाधिकारी
ये है मानक
बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम की अवधि सात वर्ष की है.
शिक्षा का माध्यम मातृभाषा व छात्र-छात्राओं के लिए नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है.
संपूर्ण शिक्षा का संबंध आधारभूत शिल्प पर आधारित है.
शिल्प की शिक्षा ऐसी हो, जिससे बालक सामाजिक व वैज्ञानिक महत्व को समझ सकें.
लड़के व लड़कियों का समान पाठ्यक्रम रखा जाय.
छठी व सातवीं कक्षाओं में बालिकाएं आधारभूत शिल्प के स्थान पर गृहविज्ञान ले सकती हैं.
पाठ्यक्रम में धर्म की शिक्षा नहीं दी जाये.
शिक्षा ऐसी हो जो नवयुवकों को बेरोजगारी से मुक्त कर सके.
शिक्षा बालक के मानवीय गुणों का विकास करने में सहायक हो.
शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के शरीर, हृदय, मन और आत्मा का सामंजस्यपूर्ण विकास हो.
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