बक्सर : मधुमक्खी पालन के लिए खेत की आवश्यकता नहीं होती. साथ ही किसी प्रकार के उर्वरक या सिंचाई तथा अधिक श्रमिक की भी आवश्यकता नहीं होती. इसके द्वारा खेती के साथ-साथ अतिरिक्त आमदनी के स्रोत के रूप में किया जा सकता है. उक्त बातें सोमवार से शुरू हुए पांच दिवसीय मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण शिविर को संबोधित करते हुए मुख्य प्रशिक्षक डॉ रामकेवल ने कहीं. इसका उद्घाटन कृषि विज्ञान केंद्र लालगंज हुआ.
शिविर को संबोधित करते हुए श्री रामकेवल ने कहा, पहले साल स्थापना करने में थोड़ा खर्च अधिक आता है, परंतु साल के अंत में वसूल हो जाता है. दूसरे साल से 100 बक्सा रखने पर तीन लाख रुपये आसानी से कमाया जा सकता है. इसके अलावा मोम, प्रोपोलिस एवं मक्खियाें को बेच कर भी आमदनी प्राप्त होती है तथा मधुमक्खी विष भी बिकता है. साल भर में 01 बक्से से 40 से 45 किलों मधु प्राप्त होती है, जिसे बाजार में कई मल्टीनेशनल कंपनियां खरीदती हैं, जिसकी बाजार में बहुत मांग है. मधु एक शुद्ध प्राकृतिक उत्पाद है, जो प्रकृति में सबसे उत्तम भोजन एवं औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
इसमें सभी प्रकार के विटामिन, ऊर्जा एवं खनिज प्राप्त होता है. इसके सेवन से समस्त रोगों से निजात पाने में सहायता मिलती है. इसे बच्चे एवं बूढ़े सभी खा सकते हैं तथा हमेशा तंदुरूस्त एवं जवान रह सकते हैं. इसका प्रयोग खाने के अलावा विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है. प्रशिक्षण में कुल दस प्रतिभागी हैं, जिसमें तीन महिला एवं सात पुरुष शामिल हैं. शामिल प्रशिक्षणार्थियों में श्रीमती देवंती देवी, धनजीत कुमार, राकेश कुमार सिंह, राजकुमार, राहुल कुमार, बिंदु कुमारी, तिलेश्वर राम, श्रीमती कंचन बाला देवी, संतोष कुमार चौहान एवं सुमंत कुमार शामिल हैं. प्रशिक्षण में शामिल मधुमक्क्खी पालकों को मधुमक्खी का इतिहास, मधुमक्खी का जीवन चक्र, मधुमक्खी की प्रजातियों के आदि की जानकारी दी गयी.