गुरुदेव कहने से प्रसन्न होते हैं भुवरनाथ बाबा
दरबार में गलत काम करने वालों को मिलती आयी है सजा
डुमरांव : प्रखंड के सोवां में स्थित भुवरनाथ का मंदिर आस्था व विश्वास का केंद्र बना है. यहां सच्चे मन से आने वाले शिव भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. टुड़ीगंज रेलवे स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित यह शिव मंदिर बहुत पुराना व प्राचीन है. गांव के लोगों को नहीं पता है कि शिवलिंग की स्थापना किसने की है. उम्र के सत्तर बसंत देख चुके गांव के दामोदर तिवारी, विशेश्वर तिवारी, गोपाल यादव, प्रो. सुदर्शन सिंह, शिक्षक उदय नारायण सिंह का कहना है कि आज जहां पर शिव मंदिर है, वह स्थान अगल-बगल के जमीन से कुछ ऊंचा था और आज देखने से भी स्पष्ट होता है. गांव के लड़के आस-पास खेल रहे थे.
तभी एक दिन वहां पीले रंग के कुछ सांप दिखाई दिये. आसपास पत्तियों से ढंके जगह को धीरे-धीरे साफ किया जाने लगा तो स्थिति समझ में आने लगी. क्योंकि जितना साफ किया जा रहा था अंदर सांपों की संख्या बढ़ने लगी. लोग डर से खोदना बंद कर दिये. संयोग कहें या भगवान की लीला सांपों द्वारा किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. धीरे-धीरे यह खबर गांव तथा आस-पास के लोगों में आग की तरह फैल गयी. बगल के रेहियां गांव में रह रहे शिव मंदिर के पुजारी सीताराम दास को यह खबर बतायी गयी. पहुंचे तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ की मंदिर बनाने की घोषणा कर दी. गांव तथा आस-पास के गांव के सहयोग से भव्य शिव मंदिर का निर्माण हुआ. भूरे रंग के शिवलिंग के कारण लोग भूवरनाथ बाबा के नाम से लोग पुकारना शुरू कर दिए. तब से आज तक आस्था व विश्वास का प्रतीक यह मंदिर लोगों के भक्ति की केन्द्र बना हुआ है.
सावन में शिव भक्तों का लगा रहता है तांता: भक्त बक्सर से गंगाजल पैदल लाकर जलाभिषेक करते हैं. ९० दशक से मौन व्रत धारण किये हुए बाल ब्रह्मचारी श्रीराम शर्मा जी यहां रहते हैं. लगभग नब्बे के दशक से यहां गांव के श्रीराम शर्मा अपना घर छोड़ कर मंदिर पर रहने लगे. शुरू में घर के लोगों को लगा कि कुछ दिमागी परेशानी के कारण ऐसा कर रहे हैं. लेकिन उनके हठ को देखते हुए घर वाले भी उनको मंदिर पर रहने के लिए छोड़ दिये. माता जी सुबह-शाम घर से खाना लाकर खिलाती. एक तरह से मां भी संन्यासीन का जीवन जीने लगी और जब तक रही पुत्र मोह कहें या फिर जो भी वह दोनों समय खाना खिलाती थी. धीरे -धीरे लोगों को मालूम हुआ कि अब यह बालक संन्यासी हो गया है, तो गांव के लोगों ने उनके लिए एक कमरा बनवा दिया और भोजन बनाने का सारा सामान उपलब्ध करा दिया. आज उनसे मुलाकात करने और कुछ पूछने के लिए लोग बाहर से आते रहते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों समय सूर्य की तरफ मुंह करके कुछ देर उपासना करते हैं और तब आगे कुछ करते हैं. बिना जूता-चप्पल का और शरीर पर वस्त्र के नाम पर एक धोती और एक गमछा रखते हैं.
महाशिवरात्री के दिन होता है विशेष अखंड हवन: मंदिर पर महाशिवरात्रि के दिन 24 घंटे का अखंड हवन का कार्यक्रम चलता है. जिसमें गांव तथा आस-पास के लोग श्रद्धा से भाग लेते हैं. हवन समाप्त होने पर प्रसाद वितरण होता है.
एक सच्ची घटना जब शिव मंदिर के घंटे की चोरी हुई
आज से लगभग 25-30 साल पहले की बात है. गांव के दो चोरों ने रात में शिव मंदिर में लगे पीतल के घंटे चुरा लिए और जाकर पुआल में छुपा कर वहीं सो गये. सुबह हुई तो मंदिर जाने वाले लोगों ने घंटा गायब पाया. एक खलिहान में कुछ लोग गये तो देखे कि गांव के दो लोग पास में सोये हुए थे. संयोग से एक आदमी मवेशियों के लिए पुआल निकालने आया और जब पुआल निकालने लगा तो टन-टन की आवाज आयी. इस तरह की स्थिति देख वहां बहुत लोग इकट्ठा हो गये. पुआल को उड़ेला गया तो उसमें से घंटा प्राप्त हुआ. दोनों चोरों ने पूछने पर अपनी संलिप्तता स्वीकार की. दोनों का सिर मुड़वाकर चेहरे पर कालिख पोतकर पूरे गांव में घुमाया गया. आज स्थिति ऐसी है कि एक इधर से उधर मारा फिर रहा है, तो दूसरे का पूरा परिवार समाप्त हो गया तथा उसका खुद का हाथ-पांव सामान्य से भिन्न हो गया. एक पैर कुष्ठ के कारण काटा जा चुका है. तो दोनों हाथ में कुष्ठ होने से उंगलियां मुड़कर सट गयी है. किसी तरह वह जीवन बिता रहा होगा. क्योंकि वह गांव नहीं आता है.