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उपभोक्ता फोरम के भवन में लाउडस्पीकर बांध सालों भर चलता है धरना, परेशानी

बंद कमरे में भी नहीं हो पाती सुनवाई, प्रशासन मौन बक्सर कोर्ट : बक्सर समाहरणालय के मुख्य द्वार पर बने जिला उपभोक्ता फोरम की पहचान अब हड़ताली चौक से हो गयी है. लगभग प्रतिदिन होनेवाले धरना, प्रदर्शन या अनशन से यहां के लोगों को काफी परेशानी होती है. फोरम के पीछे खाली पड़ी जमीन पर […]

बंद कमरे में भी नहीं हो पाती सुनवाई, प्रशासन मौन

बक्सर कोर्ट : बक्सर समाहरणालय के मुख्य द्वार पर बने जिला उपभोक्ता फोरम की पहचान अब हड़ताली चौक से हो गयी है. लगभग प्रतिदिन होनेवाले धरना, प्रदर्शन या अनशन से यहां के लोगों को काफी परेशानी होती है. फोरम के पीछे खाली पड़ी जमीन पर ये कार्यक्रम होते हैं. बता दें कि उक्त जमीन संयुक्त रूप से जिला अधिवक्ता संघ एवं बिहार सरकार की है. नगर में होनेवाली हर दिन की रैलियों से अब सभी कोई ऊब गया है. तरह-तरह की मांग के लिए उक्त जमीन सबसे माकूल है. क्योंकि यहां से न सिर्फ जिलाधिकारी को संबोधित किया जा सकता है, बल्कि आवागमन के लिए स्टेशन के अलावा अन्य जगहों के लिए उपयुक्त मार्ग भी हैं लेकिन धरना एवं अनशनकारियों द्वारा किये जानेवाले आंदोलनों का सबसे बुरा प्रभाव उपभोक्ता फोरम की न्यायिक कार्यवाही पर पड़ती है.
वर्ष, 2001 में उपभोक्ता फोरम का बना था भवन : वर्ष, 2001 के पहले उपभोक्ता फोरम का भवन अनुमंडल कार्यालय के पास था. 2001 में उपभोक्ता फोरम का भवन समाहरणालय के मुख्य द्वार पर लगभग 10 लाख की लागत से तैयार किया गया, जिसके बाद मामले की सुनवाई यहीं होने लगी. वहीं पूर्व से जिलाधिकारी के समक्ष किये जानेवाले धरना-प्रदर्शन को उक्त भवन के जगह पर किया जाता था. उपभोक्ता भवन बन जाने के बाद प्रदर्शनकारी इसके पीछे की खाली पड़ी जमीन पर अपना आंदोलन करना शुरू कर दिये. आंदोलन के दौरान नेताओं के भाषण से उपभोक्ता फोरम को काफी परेशानी होती है.
न्यायिक कार्य हो जाता है बाधित : जिला उपभोक्ता फोरम में लगभग 218 मामलों की सुनवाई लंबित है. प्रतिदिन लगभग 15 से 20 मामलों की सुनवाई की जाती है. वहीं एक अनुमान के मुताबिक महीने में औसतन 15 से 20 धरना, प्रदर्शन एवं अनशन को फोरम के पीछे खाली पड़ी जमीन पर किया जाता है. पंचायत चुनाव, विधानसभा चुनाव एवं लोकसभा के चुनाव के समय लंबी तिथियों तक प्रतिदिन सभा को यहां से संबोधित किया जाता है. कई बार तो दो-दो सभाएं एक साथ की जाती हैं. इतना ही नहीं अनशनकारी लाउडस्पीकरों को भी उपभोक्ता भवन में बांध देते हैं. ऐसे में अंदर अधिवक्ताओं द्वारा दी जानेवाली दलीलों को न्यायिक पदाधिकारी सुन नहीं पाते हैं.
बंद कमरे में की जाती है सुनवाई : तीखी आवाज के बीच जब सुनवाई नहीं हो पाती है तो कई बार इसके लिए बंद कमरों का उपयोग भी किया गया लेकिन वो भी असफल ही रहा. जिला उपभोक्ता फोरम के पूर्व अध्यक्ष सह सेवानिवृत्त अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नारायण पंडित मामलों को तेजी के साथ निष्पादित करने के लिए जाने जाते हैं. उनके कार्यकाल में जब लाउडस्पीकर की तीखी आवाज के कारण कुछ भी सुनायी नहीं देता था तो दोनों पक्षकारों एवं संबंधित अधिवक्ताओं को लेकर अपने चैंबर की खिड़कियों को बंद कर सुनवाई किया करते थे लेकिन कर्णभेदी आवाज के कारण वहां भी किसी तरह काम चलाया जाता था.

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