जिले में 57 दिनों से बालू उत्खनन पर है रोक
कोइलवर/चांदी : जिले में 57 दिनों से बालू उत्खनन पर रोक है, जिससे मजदूरों के सामने विकट समस्या आ गयी है. जीविकापार्जन के लिए अब मजदूरों का धैर्य खो गया है और वे पलायन को मजबूर हो गये हैं. अधिकतर मजदूर तो बालू बंद होते ही दूसरे प्रदेश का रुख भी कर चुके हैं.
वहीं बालू उत्खनन की बंदी का ऐसा असर पड़ा कि बालू ढोनेवाले सैकड़ों ट्रक सड़क पर खड़े हो गये. बालू घाटों के आस-पास खुले लाइन होटल भी बंद हो गये. लगभग दो माह से ट्रकों के खड़े होने के कारण वाहन मालिकों को कंपनी की किस्त भी चुकाने के पैसे नहीं है. बालू व्यवसाय से जुड़े लोग सड़क पर आ गये हैं. मालूम हो कि सरकार द्वारा 1 जुलाई से 30 सितंबर तक बालू उत्खनन पर रोक है.
गत वर्ष भी बालू उत्खनन पर लगी थी रोक : गत वर्ष फरवरी महीने में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भोजपुर समेत सूबे में बालू उत्खनन पर रोक लगा दी थी. सात महीने बाद सिया द्वारा पर्यावरण संबंधित क्लियरेंस मिलने के बाद कुछ बालू घाटों को सेवा शर्त पर मंजूरी दी गयी थी. वहीं इस वर्ष स्टेट लेवल इनवायरमेंट असेसमेंट ऑथोरिटी (सिया) द्वारा भोजपुर में 18 ऐसे बालू घाटों से उत्खनन की मंजूरी दी, जो 25 एकड़ से कम क्षेत्रफल वाले घाट हो. लेकिन बालू माफियाओं ने अंधाधुंध उत्खनन कर नियमों की धज्जियां उड़ा दी.
क्या हैं बालू उत्खनन के मानक
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, नयी दिल्ली की माने, तो नदियों के संरक्षण व पर्यावरण दूषित नहीं हो को ध्यान में रखते हुए कहा कि बालू उत्खनन तीन मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए या फिर बालू उत्खनन के समय नद के बेड से पानी आ जाने पर उत्खनन को वहीं बंद कर देना चाहिए लेकिन बालू माफियाओं
ने तीन मीटर बालू काट फेंक
देते थे. और मशीनों द्वारा लगभग 60 फुट गड्ढा कर
बालू का उत्खनन करते थे. वहीं मशीनों द्वारा पानीवाले बालू को ट्रकों पर लोड किया जाता था, जिससे बालू लदे ट्रकों से सड़कों पर पानी गिर सड़कें भी बर्बाद हो रही थीं.