राजेश कुमार ओझा
राजनीतिक दलों से समर्थन मिलने के बाद बिहार विधान परिषद की होने वाली 24 सीटों पर चुनाव को लेकर प्रत्याशियों ने अपनी तैयारियां शुरु कर दी है. इधर, मुखिया जी भी अपने वोट के बदले नोट की राशि तय कर दी है. यही कारण है कि राजनीतिक दलों ने इस चुनाव में खर्च होने वाली बेतहाशा राशि पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
बताते चलें कि बिहार की सियासत इन दिनों स्थानीय प्राधिकार से होने वाली बिहार विधान परिषद की 24 सीटों के इर्द-गिर्द है. हर कोई यह स्वीकार करता है कि चुनाव खर्चीला है, फिर भी जोर-आजमाइश में किसी की तरफ से कोई कमी नहीं की जा रही. यही कारण स्थानीय निकाय का यह चुनाव पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए नहीं बल्कि पूंजीपतियों के लिए है.
भाकपा माले नेता राम नरेश पांडेय भी यह स्वीकार करते हैं. उनका कहना है हमनें दो सीट मांगा था. लेकिन हमें राजद की ओर से विधान परिषद के लिए एक सीट मिला. यह पूछने पर कि बिहार विधान परिषद की होने वाले चुनाव में तो इस बार कांग्रेस भी राजद के साथ चुनाव नहीं लड़ रही है. फिर आपको 24 में से एक सीट क्यों मिला. इसपर राम नरेश पांडेय कहते हैं कि इस चुनाव में एक- एक वोट नोट पर पड़ता है. पूंजीपतियों ने इस चुनाव को खर्चीला बना दिया है. हमारी पार्टी गरीबों की पार्टी है. हमारे पास पूंजीपति नहीं है. इस लिए हम एक सीट में ही संतुष्ट हैं. हम पार्टी प्रमुख पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी एनडीए से सीट नहीं मिलने पर इस प्रकार की ही प्रतिक्रिया दी थी.
जगजाहिर है पैसों का लेन देनस्थानीय प्राधिकार के चुनाव में पैसे का बोलबाला अब जगजाहिर होता जा रहा है. विपक्षी दलों के द्वारा इस बात को स्वीकारने के बाद सत्ताधारी दल के लोग भी यह मानते हैं कि यह चुनाव खर्चीला है और हर किसी के बूते की बात नही है. बीजेपी विधायक कुंदन सिंह का भी मानना है कि तमाम राजनीतिक दलों में इस चुनाव को लेकर पूंजीपतियों का बोलबाला है.
मुखिया जी ने तय किया रेटत्रिस्तरीय पंचायत समिति के प्रतिनिधियों के स्तर पर बिहार में 24 सीटों पर होने वाले विधान परिषद के प्रतिनिधि का चुनाव होता है. सदन में त्रिस्तरीय पंचायत समिति के प्रतिनिधियों की वे आवाज उठाते हैं. यही कारण है कि इनके वोटर मुखिया, वार्ड सदस्य, पंचायत समीति, जिला परिसद के सदस्य होते हैं. चुनाव की चर्चा के साथ ही बिहार में त्रिस्तरीय पंचायत समिति के प्रतिनिधियों के वोटरों ने अपने रेट भी तय कर लिया है. सूत्रों का कहना है कि सबसे ज्यादा मुखिया ने अपने वोट का रेट तय किया है. कहा जा रहा है कि एक मुखिया ने अपने एक वोट के बदले बिहार विधान परिषद के संभावित प्रत्याशियों से 50 हजार रुपए की मांग किया है. इसी प्रकार जिला पार्षद ने एक लाख और वार्ड सदस्यों ने अपने के बदले 15 रुपए की मांग किया है.