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दुकानों से होती है वसूली
आरा रेलवे स्टेशन का हाल बदतर आरा : कहते हैं जिनकी हाथों में कानून का डंडा है और जनता की सहूलियत के लिए देखरेख का जिन्हें जिम्मा सौंपा गया है. वहीं वरदीवाले कानून को दरकिनार करते हुए प्रतिदिन अवैध तरीके से दुकान सजवाने में खुलेआम सहयोग करते हैं. जैसा कि आरोप अक्सर स्थानीय लोग लगाते […]
आरा रेलवे स्टेशन का हाल बदतर
आरा : कहते हैं जिनकी हाथों में कानून का डंडा है और जनता की सहूलियत के लिए देखरेख का जिन्हें जिम्मा सौंपा गया है. वहीं वरदीवाले कानून को दरकिनार करते हुए प्रतिदिन अवैध तरीके से दुकान सजवाने में खुलेआम सहयोग करते हैं.
जैसा कि आरोप अक्सर स्थानीय लोग लगाते हैं, तो इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी. जी हां, यहां बात हो रही है आरा रेलवे स्टेशन परिसर में प्रतिदिन सजनेवाली दुकानों सेे पैसे की लालच में खुलेआम दर्जनों दुकानें परिसर में सज रही हैं. इसके कारण ग्रेड ए श्रेणी की दर्जा से सुशोभित आरा रेलवे स्टेशन परिसर का हाल बदतर है. रेलवे परिसर बुरी तरह से अतिक्रमण के जाल से जकड़ा हुआ है.
परिसर में छोटी-छोटी फुटपाथी व नाश्तों की दुकानों समेत कई तरह की अन्य दुकानें सजती हैं. इसके अलावा मौसम के हिसाब से भी कई प्रकार की चलंत दुकानें लगती हैं, जो रेलवे प्रशासन के नाक के नीचे खुलेआम चलती है. इससे यात्रियों को बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इन सभी दुकानों से रेलवे पुलिस प्रशासन को अच्छी कमाई हर रोज होती है. यात्रियों की मानें, तो ऐसे पुलिसवालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है.
अक्सर यात्री लगाते हैं आरोप
यात्रा करनेवाले यात्री अक्सर यह आरोप लगाते हैं कि स्टेशन पर सजनेवाली दुकानों का कूड़ा-कचरा गिरा रहता है. उनका कहना है कि आखिर स्टेशन पर क्यों दुकानें सजती हैं. जब परिसर में इसकी अनुमति है ही नहीं, तो फिर दुकानें पुलिस प्रशासन क्यों लगवाता है.
रेलवे प्रशासन ने साधी चुप्पी
कभी-कभी तो इन फुटपाथी दुकानदारों से यात्रियों की नोंक-झोंक हो जाती है. इसकी शिकायत यात्री स्टेशन प्रबंधक समेत रेलवे पुलिस प्रशासन से भी करते हैं, लेकिन आश्वासन छोड़ कोई कार्रवाई नहीं होती है. एक दुकानदार अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि रेलवे परिसर में जितनी भी अवैध तरीके से दुकानें सजती हैं.
एक दुकान से वसूले जाते हैं तीन सौ रुपये
सभी दुकानदार प्रतिदिन 60 रुपये लेकर 300 रुपये तक देते हैं और पैसे की उगाही रेलवे पुलिस प्रशासन के आदमी करते हैं. सूत्रों के अनुसार एक दुकान का तीन हिस्सा होता है, जो बराबर-बराबर बांटा जाता है. बताया जा रहा है कि दुकानदार से वसूल कर पैसा ले जानेवाला एक जगह दे देता है और उसके बाद बराबर हिस्सों में बांटा जाता है.
क्या कहते हैं स्टेशन प्रबंधक
आरा रेलवे स्टेशन के प्रबंधक एसएन पाठक ने बताया कि परिसर में लगनेवाली अवैध दुकानों को हटाने के लिए यात्रियों एवं अन्य लोगों द्वारा शिकायत मिलती है, तो रेलवे पुलिस प्रशासन को लिखित रूप से आवेदन देकर हटाने के लिए निर्देश दिया जाता है. अगर रेलवे पुलिस प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करती है, तो दानापुर में बैठे वरीय अधिकारियों को आवेदन दिया जाता है, ताकि यात्रियों को रेलवे विभाग उन्हें सुविधाएं दे सकें.
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