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अगस्त ऋषि तर्पण आज, पितृ पक्ष पर तर्पण कल से

भागलपुर : इस वर्ष 17 सितंबर शनिवार को आश्विन कृष्ण प्रतिपदा प्रारंभ हो रहा है. उसी दिन से पितृ तर्पण शुरू हो जायेगा. शनिवार से लगातार 15 दिनों तक पितृ तर्पण होगा. शनिवार से बाजार में ग्राहकों का आना कम हो जायेगा एवं व्यवसायियों का कारोबार मंदा पड़ जायेगा. 30 सितंबर शुक्रवार को अमावस्या तिथि […]

भागलपुर : इस वर्ष 17 सितंबर शनिवार को आश्विन कृष्ण प्रतिपदा प्रारंभ हो रहा है. उसी दिन से पितृ तर्पण शुरू हो जायेगा. शनिवार से लगातार 15 दिनों तक पितृ तर्पण होगा. शनिवार से बाजार में ग्राहकों का आना कम हो जायेगा एवं व्यवसायियों का कारोबार मंदा पड़ जायेगा. 30 सितंबर शुक्रवार को अमावस्या तिथि में पितृ तर्पण का अंत होगा और महालया की समाप्ति होगी.

आज भादो पूर्णिमा पर गंगा तटों पर उमड़ेगी भीड़ : भादो पूर्णिमा 16 सितंबर को है. उसी दिन अगस्त दान व ऋषि तर्पण होगा. भादो पूर्णिमा को लेकर शुक्रवार को सभी गंगा तटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी. पितृ पक्ष में मांगलिक कार्य करना अशुभ माना जाता है. चाहे बाजार में खरीदारी ही क्यों नहीं हो. पितृ पक्ष आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक चलता है. इन 15 दिनों में लोग अपने पितरों को तिल और जल देकर पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है.
जगह-जगह होगी भगवान सत्यनारायण की पूजा : भादो पूर्णिमा पर जिले के विभिन्न स्थानों पर भगवान सत्यनारायण की पूजा होती है. शहर के लहरी टोला, घंटाघर चौक, नया बाजार आदि स्थानों पर भी भगवान सत्यनारायण की पूजा होती है. रामदास गुप्ता पथ लहेरी टोला में जन ज्योति नवयुवक संघ की ओर से शुक्रवार को दोपहर दो बजे भगवान सत्यनारायण की पूजा होगी. अध्यक्ष जयप्रकाश यादव ने बताया कि इस बार बाढ़ आपदा से पूजन कार्य सादगीपूर्वक होगा. किसी प्रकार का सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं दिखेगा.
श्राद्ध करने से पितृगण साल भर रहते हैं प्रसन्न : ज्योतिषचार्य डॉ झा बताते हैं कि श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धयादीयते यत् तत् श्राद्धं अर्थात् श्रद्धा से जो कुछ दिया जाय. पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर प्रसन्न रहते हैं. यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि है. तथापि आश्विन माह की अमावस्या पितरों के लिए परम फलदायी है.
शनिवार से 15 दिनों तक होगा पितृ तर्पण
पितृ पक्ष में श्राद्ध की महिमा
धर्मशास्त्र में कहा गया है कि पितरों को पिंडदान करने वाला मनुष्य दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन एवं धन-धान्य की प्राप्ति करता है. इतना ही नहीं पितरों की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. आश्विन मास के पितृ पक्ष में पितरों को आशा लगी रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिंडदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे. यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं. अतएव प्रत्येक हिंदू मानव का धर्म है कि वह पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध एवं तर्पण अवश्य करे तथा अपने शक्ति के अनुसार फल-फूल जो भी संभव हो, पितरों के निमित्त अर्पित करे.
पितृ पक्ष श्राद्धों के लिए 15 तिथियों का एक समूह
ज्योतिषचार्य डॉ सदानंद झा बताते हैं कि अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितृ पक्ष के नाम से विख्यात है. इन 15 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी पुण्यतिथि पर श्राद्ध करते हैं. पितरों का ऋण श्राद्धों द्वारा चुकाया जाता है. पितृ पक्ष श्राद्धों के लिए निश्चित 15 तिथियों का एक समूह है. वर्ष के किसी भी माह व तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृ पक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है. भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है. इसी दिन से महालया का आरंभ भी माना जाता है.
श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित
जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं, उन्हें पूरे 15 दिनों तक क्षौरकर्म नहीं करना चाहिए. पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए. प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करना चाहिए. तेल, उबटन आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए. दातून करना, पान खाना, तेल लगाना, मांसाहारी भोजन करना, स्त्री प्रसंग और दूसरों का अन्न ये श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं. मनुष्य जिस अन्न को स्वयं भोजन करता है, उसी अन्न से पितर और देवता भी तृप्त होते हैं.

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