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मेंटेनेंस खर्च से तो नयी सड़क बन जाती

एनएच 80. पांच साल में िवभाग ने मरम्मत पर खर्च किये 15 करोड़ से ज्यादा भागलपुर को मोकामा और फरक्का से जोड़ने वाली एनएच 80 की मरम्मत पर विभाग ने पिछले पांच साल में करोड़ों रुपये किये पर सड़क पैदल चलने लायक भी नहीं है. भागलपुर : जितनी राशि इस सड़क की मरम्मत पर खर्च […]

एनएच 80. पांच साल में िवभाग ने मरम्मत पर खर्च किये 15 करोड़ से ज्यादा

भागलपुर को मोकामा और फरक्का से जोड़ने वाली एनएच 80 की मरम्मत पर विभाग ने पिछले पांच साल में करोड़ों रुपये किये पर सड़क पैदल चलने लायक भी नहीं है.
भागलपुर : जितनी राशि इस सड़क की मरम्मत पर खर्च की गयी, उतने में कहलगांव-पीरपैंती सेक्शन के किसी एक या दो पार्ट की सड़क बन जाती. वर्तमान में यह स्थिति है कि लोगों के लिए घर से निकल कर कहलगांव-पीरपैंती सेक्शन के एनएच पर आना नामुमकिन सा हो गया है. केवल पिछले ढाई-तीन साल के दौरान इस सड़क के मेंटेनेंस पर लगभग 14 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. रमजानीपुर से पीरपैंती के बीच लगभग 14 किमी लंबी सड़क को चलने लायक बनाने के लिए लगभग 1.47 करोड़ रुपये खर्च हुए और यहां की ही स्थिति सबसे ज्यादा स्थिति खराब है.
पीरपैंती से मिरजाचौकी तक लगभग 10 किमी लंबी सड़क को चलने लायक तैयार करने के लिए 2.89 करोड़ रुपये खर्च किये गये. फिर भी वाहनों का गुजरना तो दूर, राहगीरों को भी चलने में कठिनाई होती है. बाबूपुर मोड़ से पक्कीसराय के बीच लगभग 17 किमी लंबी सड़क पर पहले छह करोड़ खर्च किया गया. इसके बाद बिना गंगा का पानी सड़क पर चढ़े बाढ़ क्षतिग्रस्त मरम्मत योजना के तहत 1.13 करोड़ रुपये दुरुस्तीकरण के पीछे खर्च कर दिया गया.
इसके अलावा भैना पुल के डायवर्सन पर दो बरसात में 50-50 लाख रुपये कर कुल एक करोड़ रुपये खर्च किया गया और वर्तमान में डायवर्सन डूबा है और भारी वाहनों का परिचालन बंद है.
यहीं नहीं भैना पुल की मरम्मत पर लगभग 80 लाख रुपये खर्च किये गये हैं. हालांकि कांट्रैक्टर को विभाग से लगभग 40 लाख रुपये का ही भुगतान हुआ है. मगर, बैरियर लगने की वजह से भारी वाहनों का गुजरना बंद है. यानी, मरम्मत पर खर्च तो किया गया, मगर इसका उपयोग नहीं हो रहा है. यही हाल, चंपा पुल का भी है. लगभग 65 लाख रुपये मरम्मत पर खर्च हुए है और बैरियर की वजह से भारी वाहन गुजर नहीं रही है. हल्की वाहनों के गुजरने की स्थिति में पहले भी पुल था और मेंटेनेंस और इस पर होने वाले खर्च के बाद भी यही स्थिति है.
प्लानिंग के तहत होता काम, तो यह दिन देखना नहीं पड़ता : कहलगांव-पीरपैंती सेक्शन की सड़क का निर्माण या फिर मरम्मत का काम अगर प्लानिंग के तहत होता, तो सरकार का पैसा भी बरबाद नहीं होता और इस क्षेत्र के लोगों को यह दिन देखना भी नहीं पड़ता. विभागीय अभियंताओं की केवल मरजी चलती रही है. जहां मन किया, वहां की सड़क के गड्ढों को भरने के लिए एस्टिमेट बना कर भेजता रहा और इसे स्वीकृति भी मिलती रही.

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