भागलपुर : तीन माह पहले तक सबौर का सुलतानपुर भिट्ठी गांव शराब उद्योग के लिए प्रसिद्ध था. आज वहां एक भी शराब की भट्ठी नहीं जल रही है. धंधे से जुड़े लोग आज सरकार की सख्ती से चुपचाप घर बैठे हैं. सरकार के शराबंदी की घोषणा में प्रशासन के साथ-साथ समाज के लोगों के शामिल […]
भागलपुर : तीन माह पहले तक सबौर का सुलतानपुर भिट्ठी गांव शराब उद्योग के लिए प्रसिद्ध था. आज वहां एक भी शराब की भट्ठी नहीं जल रही है. धंधे से जुड़े लोग आज सरकार की सख्ती से चुपचाप घर बैठे हैं. सरकार के शराबंदी की घोषणा में प्रशासन के साथ-साथ समाज के लोगों के शामिल होने से शराबियों ने भी अपने नशे की राह बदल ली है.
अब वे महुआ शराब की जगह ताड़ी पी रहे हैं. शराबियों के अनुसार ताड़ी से उनकी सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा.अधिकतर खुदरा शराब बेचने वालों ने ताड़ी बेचना शुरू कर दिया है. अब उनके यहां शाम को ताड़ी पीने वालों की जमघट लगती है. ताड़ी शराबियों को दारू के रेट पर ही 50 रुपये प्रति मग मिल रही है. पहले ताड़ी 10 से 15 रुपये प्रति मग बिकती थी.
जमीन के अंदर सड़ाया जाता था महुआ : सुलतानपुर भिट्ठी में तीन माह पहले तक आठ से 10 लोग बड़े पैमाने पर अवैध देसी महुआ शराब का निर्माण करते थे. इनकी फैक्टरी से औसतन पांच सौ लीटर प्रतिदिन महुआ शराब का उत्पादन होता था. फैक्टरी संचालक खेत मेें जमीन के अंदर सैकड़ों की संख्या में बड़े-बड़े जरकीनों में महुआ सड़ाते थे.
अल सुबह इन फैक्टरी मालिक के दरवाजे से शराब की डिलीवरी शुरू हो जाती थी, जो देर रात तक चलती थी. पूरे सुलतानपुर भिट्ठी गांव के अधिकतर युवा शराब के आदि बन गये थे. लोग अपनी मेहनत की कमाई का अधिकतर हिस्सा शराब में गंवा देते थे.
ग्रामीणों के अनुसार लोग बेटे-बेटियों की शादी सुलतानपुर भिट्ठी गांव का नाम सुनते ही करने से इनकार कर देते थे. अब शराब बंदी से समाज के सभ्य लोगों, महिलाओं व बच्चों में परिवर्तन आस जगी है. उनका कहना है कि सरकार को इस तरह की सख्ती कुछ दिनों तक बनाये रखनी चाहिए, ताकि फिर से शराब निर्माण करने की कोई हिम्मत नहीं कर सके.