स्वर्णकारों ने निकाला कैंडिल मार्च
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विरोध. स्वर्णकारों के साथ कांग्रेस की महिला पदाधिकारियों ने किया प्रदर्शन
स्वर्णकारों ने निकाला कैंडिल मार्च सोना व हीरा पर उत्पाद शुल्क लगाये जाने को लेकर स्वर्ण व्यवसायी आक्रोशित हैं. शुक्रवार को जिला स्वर्णकार संघ की अगुवाई में व्यवसायियों ने धरना दिया और कांग्रेस की महिला कार्यकर्ताओं के साथ कैंडल मार्च िनकाला. भागलपुर : जिला स्वर्णकार संघ की अगुवाई में शुक्रवार नौंवे दिन भी स्वर्णकारों का […]
सोना व हीरा पर उत्पाद शुल्क लगाये जाने को लेकर स्वर्ण व्यवसायी आक्रोशित हैं. शुक्रवार को जिला स्वर्णकार संघ की अगुवाई में व्यवसायियों ने धरना दिया और कांग्रेस की महिला कार्यकर्ताओं के साथ कैंडल मार्च िनकाला.
भागलपुर : जिला स्वर्णकार संघ की अगुवाई में शुक्रवार नौंवे दिन भी स्वर्णकारों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा. दिन भर अपनी दुकानें बंद कर धरना पर बैठे और शाम को कांग्रेस की महिला पदाधिकारियों के साथ कैंडिल मार्च निकाला. इससे पहले उनके धरना में कांग्रेस की महिला अध्यक्ष कोमल सृष्टि, सोनी लाल, नगर महिला अध्यक्ष पूजा साह, अनामिका शर्मा, डाॅ राकेश साहू शामिल हुई. कैंडिल मार्च सोनापट्टी से निकल कर वेराइटी चौक, खलीफाबाग चौक, कोतवाली चौक, स्टेशन चौक, लोहापट्टी, सुजागंज बाजार होते हुए पुन: सोनापट्टी तक निकाली गयी.
इसके बाद बैठक कर सभी संगठनों से सलाह-मशविरा करने का निर्णय लिया गया, ताकि सभी व्यवसायियों की सर्वसम्मति से भागलपुर बंद का आह्वान किया जा सके. विरोध प्रदर्शन में पारसनाथ सोनी, विजय कुमार साह, गोपाल वर्मा, मनोज कुमार, संजय कुमार साह, अरुण वर्मा, रूपेश साह, मुकेश साह, मनोज कुमार साह, प्रमोद वर्मा, शिव कड़ेल, अमित कुमार, विष्णु वर्मा, अंकित, जितेंद्र वर्मा, दिनेश भटालिया, लक्ष्मीनारायण वर्मा, मुकेश साह, अमित कड़ेल समेत कई स्वर्णकार शामिल हुए.
विधायक मिलेंगे आज : विधायक अजीत शर्मा शनिवार को स्वर्णकारों से मिलकर उनका हालचाल जानेंगे.
सपना सौंपना चाहता हूं अगली पीढ़ी को
शब्द के शिल्पीकार, साधक साहित्यकार देवेंद्र सिंह का जन्मदिन 11 मार्च को था. 76 वसंत पार कर चुके देवेंद्र सिंह की लेखनी में अभी भी वसंत सी ताजगी है. उनकी साहित्य साधना अहर्निश जारी है. उनके जन्मदिन पर उनके दीर्घायु होने की कामना के साथ उनका संदेश उनके ही शब्दों में.
पिछले कई महीनों से मैं लगातार अपनी जिंदगी की किताब खंगाल रहा हूं. उस क्रम में यह बोध हुआ कि सबसे कठिन होता है जिंदगी की किताब को पढ़ कर समझना. वह बंदा जो छिहत्तर साल की लंबी आयु लांघकर इस मुकाम तक पहुंचा, आखिर है क्या? यही वह सवाल था जिसका उत्तर मैं खोज रहा था. उस खोज में मिला एक सुरंग का द्वार जो मुझे बचपन के घाट पर ले गयी. वहीं मिले थे एक सत्यपुरूष. उनका नाम था प्रेमचंद. उन्होंने मुझे कुछ रंग-बिरंगे, पत्थर दिये थे और कहा था-
बच्चे, ये लालो-गौहर हैं. इन्हे संभाल कर रखना, जिंदगी में काम आयेंगे.
उन पत्थरों को सहेज कर ही मैं जिंदगी की यात्रा पर चला था, धीरे-धीरे उनके साथ पहचान बनती गयी. अब मैंने जाना कि जिनको पत्थर समझ सहेजा था वे मूल्य, आदर्श, संवेदना तथा सपने थे. अपनी उस थाती के साथ जब दुनिया के बाजार में आया तो पाया कि वहां उनका कोई मोल न था. बाजार वाले कहते- किसने कह दिया ये लालो-गौहर हैं,
ये तो निरे कंचे हैं! मगर मै भरमाया नहीं, कारण जानता था, उनकी आंखों पर मांड़ी चढ़ी है. मै यह भी बूझ गया था कि बिना मूल्यों-आदर्शों-संवेदनाओं-सपनों के अच्छा मनुष्य, अच्छा समाज सिरजा नहीं जा सकता. वह एक संगीन लड़ाई थी और मै बिना हार माने लड़ता रहा. एक अच्छे समय और समाज का सपना देखता रहा. मुझे इसकी परवाह नहीं कि वह सपना कब साकार होगा. मैं तो इतना भर जानता हूं, सपना कभी मरता नहीं. वही सपना मैं अगली पीढ़ी को सौंपना चाहता हूं.
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