भागलपुर व बांका के लॉज में शरण लेते रहे हैं नक्सली व नक्सली समर्थक
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नक्सलियों का स्लीपर सेल बना शहर!
भागलपुर व बांका के लॉज में शरण लेते रहे हैं नक्सली व नक्सली समर्थक साइलेंट जोन से बदल कर अब स्लीपर सेल में तब्दील हो गया है भागलपुर भागलपुर : भागलपुर शहर नक्सलियों का साइलेंट जोन रहा है. यहां किसी तरह की बड़ी वारदात को अंजाम नहीं दिया गया है, लेकिन हाल के दिनों में […]
साइलेंट जोन से बदल कर अब स्लीपर सेल में तब्दील हो गया है भागलपुर
भागलपुर : भागलपुर शहर नक्सलियों का साइलेंट जोन रहा है. यहां किसी तरह की बड़ी वारदात को अंजाम नहीं दिया गया है, लेकिन हाल के दिनों में कई जगहों पर परचा-पोस्टर फेंके हुए मिले हैं. पूछताछ में कुछ नक्सलियों ने भागलपुर शहर का नाम लिया है.
ऐसे में पुलिस यह मान कर चल रही है कि भागलपुर प्रक्षेत्र साइलेंट जोन से बदल कर स्लीपर सेल में बदल गया है. नक्सली आसपास के क्षेत्रों में कार्रवाई को अंजाम देकर या पुलिस दबिश के कारण शहर में पनाह पाते हैं और सब कुछ ठीक होने के बाद यहां से चले जाते हैं. पुलिस सूत्र यह भी मानती है
कि नक्सली यहां से अपने पुराने आधार क्षेत्र भोजपुर व सीतामढ़ी, बंगाल के सीमावर्ती नक्सलबाड़ी, मेदनी हाट, वानर हाट, दुमका के नोनीहाट, गोड्डा के सुंदर पहाड़ी आदि इलाके की ओर कूच कर जाते हैं.लखीसराय, जमुई व मुंगेर के जंगलों में सीआरपीएफ व पुलिस की कार्रवाई के बाद नक्सली अब भागलपुर व बांका के मैदानी हिस्सों की ओर रुख करने लगे हैं. पुलिस सूत्रों का मानना है कि वे भागलपुर व बांका के कुछ लाॅजों में शरण लेने लगे हैं.
पुलिस-प्रशासन के छानबीन में यह बातें सामने आयी है कि यहां के लॉज व बड़े रसूखदारों का घर भी शरणस्थली बन गया है. यहां पर उनका आना-जाना होता है. हालांकि नक्सली व नक्सली समर्थक यहां रहने में पूरी सावधानी बरतते हैं.
ऐसे बना है स्लीपर सेल : नक्सली व नक्सली समर्थक अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए भी लॉज में ठहरते हैं. वे अपना आधर क्षेत्र भी इस दौरान मजबूत करते हैं.
इसके साथ ही जंगल में काम आने वाली दवा, कलम, कागज, पोस्टर के लिए रंग की खरीदारी करते हैं. इसके बाद वहां के छात्रों के बीच कार्ल मार्क्स, लेनिन, माओत्से-तुंग, च्वेगवारा, हो-चि-मिन्ह आदि वामपंथी नेताओं के सिद्धांत पर चर्चा करते हैं. छात्रों की चाह को जब ताड़ लेते कि वे क्रांतिकारी विचारों के प्रति प्रेरित हैं, इसके बाद उन्हें नक्सली साहित्य पढ़ाते हैं. इस दौरान यहां के कुछ लोग उनसे जुड़ाव महसूस करने लगते हैं, जो बाद में स्लीपर सेल के रूप में बदल जाता हैं.
इस दौरान जब-जब जंगलों में पुलिस की दबिश पड़ती, तो वे बांका व भागलपुर के लॉजों में शरण ले लेते. धीरे-धीरे उनकी शरणस्थली बन जाती है.
बड़े व मध्यम कद के नक्सली लेते हैं शरण : जब-जब जंगलों में पुलिस की दबिश पड़ती है, तो अधिकतर नक्सली दूसरे प्रांतों की ओर रुख कर जाते हैं. बड़े व मध्यम कद के नक्सली अपनी योजना को सफल करने के लिए स्थानीय क्षेत्रों, बाजार क्षेत्रों व शहरी हिस्सों में शरण ले लेते हैं. इससे उन्हें योजना बनाने और अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए आने-जाने में दिक्कत नहीं होती. नक्सली साहित्य पढ़ना कोई गुनाह नहीं है.
लेकिन किताब का जाखीरा रखना गुनाह जरूर है. इसके अलावा प्रतिबंधित साहित्य रखना पुलिस की नजर में गुनाह है. इसके अलावा नक्सली विचारधारा फैलाने व वैसे साहित्य को क्षेत्र में वितरण कराने में सहयोग देना है, जिन पर प्रतिबंध है, अपराध है.
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