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जेएलएनएमसीएच में पहली बार स्पिलीन ट्यूमर का सफल ऑपरेशन

जेएलएनएमसीएच में पहली बार स्पिलीन ट्यूमर का सफल ऑपरेशन फोटो- ऑपरेशन के बाद सर्जरी विभाग में भरती स्पिलीन मरीज मंजू देवीफोटो- वॉटस एप पर (सुधाकर भैया)ऑपरेशन में निकला स्पिलीन ट्यूमर – मरीज मंजू देवी (31)पिछले 8 साल से पेट दर्द से परेशान थी- अल्ट्रासाउंड जांच रिपोर्ट में पता चला कि स्पिलीन में ट्यूमर है- ऑपरेशन […]

जेएलएनएमसीएच में पहली बार स्पिलीन ट्यूमर का सफल ऑपरेशन फोटो- ऑपरेशन के बाद सर्जरी विभाग में भरती स्पिलीन मरीज मंजू देवीफोटो- वॉटस एप पर (सुधाकर भैया)ऑपरेशन में निकला स्पिलीन ट्यूमर – मरीज मंजू देवी (31)पिछले 8 साल से पेट दर्द से परेशान थी- अल्ट्रासाउंड जांच रिपोर्ट में पता चला कि स्पिलीन में ट्यूमर है- ऑपरेशन के दौरान स्पिलीन के दो पार्ट से निकाला गया ट्यूमर – पिछले तीन महीने से डॉक्टर कर रहे थे मरीज का डायगनोसिस संवाददाताभागलपुर : जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पहली बार शरीर की तिल्ली (स्पिलीन) भाग में ट्यूमर काे सफलतापूर्वक निकाला गया. मुंगेर जिले के संग्रामपुर प्रखंड के खपरा गांव की 35 वर्षीय महिला मंजू देवी को पिछले आठ साल से पेट में गैस व दर्द से परेशान थी. शुरू में बिना किसी जांच के संग्रामपुर में ही डॉक्टर से इलाज करा रही थी. दर्द के बढ़ जाने के कारण परिजनों ने तीन माह पहले जेएलएनएमसीएच में दिखाया था. अल्ट्रासाउंड के दौरान रेडियोलाॅजी विभाग के एके मुरारका को पता चला कि मरीज की तिल्ली (स्पिलीन)भाग में ट्यूमर है. इस बात की जानकारी सर्जरी विभाग के डॉक्टरों को दी. बाद में डॉक्टरों ने जांच में पाया कि मरीज को हाइटेडिट शिस्ट की बीमारी है. यह रेयर डिजिज, जो काफी खतरनाक होती है. डॉक्टरों का कहना है कि आम तौर पर इस बीमारी को कैंसर मान लिया जाता है, लेकिन यह कैंसर नहीं, बल्कि हाइटेडिट शिस्ट बीमारी है. डॉ पंकज की अगुवाई में डॉक्टरों की एक टीम ने किया ऑपरेशनसर्जरी विभाग के डॉक्टर पंकज कुमार ने बताया कि हाइटेडिट शिस्ट की बीमारी सामान्य तौर पर लीवर में होता है. मरीज मंजू देवी को यह बीमारी इस मायने में जटिल था कि इन्हें हाइटेडिट शिस्ट की बीमारी लीवर में न होकर तिल्ली (स्पिलीन)में थी. तिल्ली भाग का ऑपरेशन वैसे भी खतरनाक माना जाता है, क्योंकि तिल्ली भाग में ही खून का निर्माण होता है. जांच में पता चला कि ट्यूमर काफी कम्पीलिकेटेड पोजिशन में है. एक तो दो ट्यूमर था, उसपर भी पेट के लीवर, डायफ्रॉम, पेनक्रियाज आदि भाग से जटिल तरीके से जुटा हुआ था. दिक्कत यह था कि ऑपरेशन के दौरान अगर तिल्ली में ही ट्यूमर फट जाता तो मरीज की तुरंत मौत हो जाती. ऐसे जटिल ऑपरेशन करने में सबसे बड़ी चुनौती थी कि ट्यूमर निकालने के साथ तिल्ली को बचाना, ट्यूमर को फटने से बचाना और ट्यूमर के आस-पास के अंग को सुरक्षित बचाना भी था. बता दें कि ऑपरेशन के बाद मरीज की हालत बेहतर है और परिजनों से नार्मल बातचीत कर रही है. मालूम हो कि जेएलएनएमसीएच में पहली बार हुए इस ऑपरेशन में डॉक्टरों की एक टीम लगी हुई थी. टीम में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राकेश कुमार के अलावा एनेसथेसिया के डॉ सत्यार्थी और डॉ विकास, डॉ कुमार रत्नेश, डॉ जेपी सिन्हा, डॉ हरिशंकर प्रसाद आदि शामिल थे. गौरतलब है कि डॉ पंकज के नेतृत्व में पांच माह पहले जुलाई में भी 20 साल के मरीज आदर्श कुमार के पेट से 10 किलो का ट्यूमर सफलतापूर्वक निकाला गया था.

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