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पेट की भूख की खातिर सब सहना पड़ता है

पेट की भूख की खातिर सब सहना पड़ता हैफोटो : आशुतोष-सवारी बैठाने की होड़ और ऑटो स्टैंड न होने के कारण पुलिस की गालियाें और फटकार के बीच सरेराह सवारी बैठाते हैं ऑटोचालकसंवाददाता, भागलपुरकिसको पुलिस की गाली व डंडा खाना अच्छा लगता है, लेकिन परिवार की भूख मिटाने की मजबूरी व अधिक कमाने की चाह […]

पेट की भूख की खातिर सब सहना पड़ता हैफोटो : आशुतोष-सवारी बैठाने की होड़ और ऑटो स्टैंड न होने के कारण पुलिस की गालियाें और फटकार के बीच सरेराह सवारी बैठाते हैं ऑटोचालकसंवाददाता, भागलपुरकिसको पुलिस की गाली व डंडा खाना अच्छा लगता है, लेकिन परिवार की भूख मिटाने की मजबूरी व अधिक कमाने की चाह में यह सब सहना पड़ता है. जाम की कीमत पर हम भी बीच बाजार में खड़े सवारियाें को टेंपों में बिठाना नहीं चाहते हैं, लेकिन दूसरा उठा लेगा इस चक्कर में करना पड़ता है. यह दर्द है शहर के टेंपो चालकों का. वे गाली, दुत्कार और फटकार खाने के बावजूद लबों पर मुस्कान लिये सवारियों को शहर के हर चौक-चौराहे पर अपनी टेंपो में बैठाते नजर आते हैं. तिलकामांझी चौक पर पुलिस के डांट-फटकार के बावजूद सवारी भरते टेंपो चालकों से उनके मनमानी करने का कारण जानना चाहा. बरारी निवासी संजय का कहना था कि एक तो पूरे शहर में कहीं टेंपो स्टैंड नहीं है. इसके बावजूद पुलिस सड़क पर टेंपो खड़ी कर सवारी भरने पर गाली देती है. दुख तो बहुत होता है लेकिन पेट की भूख जो न कराये. भीखनपुर में रहने वाले मोहन का कहना है कि हम सड़क पर सवारी न भरें, तो दूसरा चालक अपनी टेंपो में बैठा लेगा. गाढ़ी कमाई से खरीदे गये टेंपो पर जब पुलिस की लाठी गिरती तो बहुत दुख होता है. लेकिन करें भी तो क्या. आखिर कमाने के चक्कर में जान-बूझकर गलती जाे हमसे होती है. गुमटी नंबर दो निवासी बबलू का कहना है कि अगर प्रशासन तिलकामांझी, मनाली चौक, कचहरी चौक से लेकर रेलवे स्टेशन आदि पर स्थायी स्टैंड की व्यवस्था कर दें तो हम क्यों सड़क पर सवारी भरने जायें. प्रशासन की लापरवाही की मार हम गरीब टेंपोचालकों पर पुलिस की लाठी के रूप में पड़ती है. छोटी खंजरपुर निवासी गौतम ने कहा कि हम भी सुकून के साथ कमाना चाहते हैं, लेकिन परिवार की भूख मिटाने की मजबूरी हमें सड़क पर गाली-मार खाने को मजबूर करता है. टेंपो स्टैंड का न होने तथा पटरी के समाप्त होने के बाद सवारियां भी बीच चौराहे पर खड़े होकर टेंपों का इंतजार करती है. ऐसे में पुलिस की गाली के बावजूद हमें उन सवारियों को टेंपाें में बैठाना पड़ता है.

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