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तपोवन ने 1956 से शुरू की जात्रा की यात्रा

तपोवन ने 1956 से शुरू की जात्रा की यात्रा-तपोवन नाट्य कंपनी को मां की तरह मानते हैं सभी कलाकारफोटो नंबर : सुरेंद्र जीसंवाददाता,भागलपुरकोलकाता की तपोवन नाट्य कंपनी 1956 से जात्रा नाटक व थियेटर कर रही है. दुलाल कृष्ण चटर्जी के नेतृत्व में 1972 में राष्ट्रपति से पुराण रत्न पुरस्कार प्राप्त की. उक्त बातें निदेशक नील […]

तपोवन ने 1956 से शुरू की जात्रा की यात्रा-तपोवन नाट्य कंपनी को मां की तरह मानते हैं सभी कलाकारफोटो नंबर : सुरेंद्र जीसंवाददाता,भागलपुरकोलकाता की तपोवन नाट्य कंपनी 1956 से जात्रा नाटक व थियेटर कर रही है. दुलाल कृष्ण चटर्जी के नेतृत्व में 1972 में राष्ट्रपति से पुराण रत्न पुरस्कार प्राप्त की. उक्त बातें निदेशक नील कमल चटर्जी ने प्रभात खबर से बातचीत में कही. कंपनी देश के विभिन्न हिस्सों में पेशेवर संस्था की तरह जात्रा शैली को जिंदा रखने का प्रयास कर रही है. नसीरूद्दीन शाह के साथ भूमिका कर चुकी हैं सायंतिकाबांग्ला अभिनेत्री सायंतिका बांग्ला फिल्म खासी कथा में बॉलीवुड अभिनेता नसीरूद्दीन शाह के साथ चरित्र अभिनेत्री की भूमिका कर चुकी हैं. वह बताती हैं कि तीन वर्ष पहले जात्रा से यह सोच कर जुड़ी कि दर्शकों से सीधे रूप से जुड़ सके. सायंतिका भरत नाट्यम से विशारद हैं. वहीं बांग्ला अभिनेता अपूर्व भी इसी सोच के साथ फिल्म के साथ-साथ जात्रा से जुड़ा. वह लुटेरा में रणवीर कपूर के साथ भूमिका कर चुका है. दोनों कलाकारों ने देश स्तर पर पुरस्कार भी प्राप्त किया है. मिदनापुर के अनूप माइको कंपनी के मैनेजर हैं. उनका कहना है कि कंपनी को सभी कलाकार मां की तरह मानते हैं. इसमें किसी का मेहनताना बेहतर नहीं होता. किसी तरह परिवार चल जाता है, लेकिन शौकिया इससे जुड़ते हैं. सामान्य कलाकार व सहयोगी पांच हजार रुपये ही पूरे माह में पा लेता है. मुंबई के आर्ट कॉलेज से मेकअप की पढ़ाई कर चुके जगन्नाथ पटनायक, सुकुमार जाना व सेम बताते हैं कि जात्रा व थियेटर को पेशा के रूप में अपनाये हैं, लेकिन इसमें पूरे माह में सात से 10 हजार तक ही हो पाता है. इसमें ऐसी बात भी होती है कि तीन या पांच रात का नाटक कर लेते हैं, तो पांच से सात हजार रुपये तक हो जाता है. उनकी सबसे बड़ी चुनौती होती है कि अपने साज-सज्जा से दर्शकों को लुभा सकें. अनूप ने बताया कि बापी मर्जित, श्याम हलदर, सुजीत मंडल, सुब्रत हलदर को सभी सबसे प्रिय मानते हैं, चूंकि वह बक्सा उठाने से लेकर मंच सजाने तक का काम करते हैं. उनकी टीम में 45 बड़े बक्से हैं, जिसमें साज घर तैयार करने से लेकर वाद्य यंत्र, म्यूजिक सिस्टम आदि होते हैं. इसे उठाना और जगह-जगह व्यवस्थित करना चुनौतीपूर्ण काम है. इसमें खास कलाकारों के लिए अलग-अलग केबिन तैयार करना भी इसी काम में आता है.

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