इसके बाद समाज और राष्ट्र कैसे रहेगा. हम इस धरती पर खुद के लिए ही नहीं, समाज व राष्ट्र के लिए भी पैदा होते हैं. ऐसे में हमें ऐसी चीजें नहीं अपनानी चाहिए, जो हमारी संस्कृति को संक्रमित कर दे. हमें यह समझना होगा कि हम भारतीय हैं, तो हमारा अस्तित्व क्यों है. हमारी संस्कृति प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है. ऋग्वेद चार से पांच हजार वर्ष पुराना है. उसमें स्त्रियों की दशा का वर्णन है. तब स्त्रियों को वर चुनने का अधिकार था. आज भी वयस्क को अपने मुताबिक जीने का अधिकार है. हमें स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, लेकिन संस्कृति को ध्यान में रखते हुए. पति-पत्नी में सहभागिता तभी होती है, जब उनका संबंध रीति-रिवाज पर आधारित होता है. विवाह से स्थायित्व का भाव पैदा होता है.
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परिवार को समाप्त कर देता है लिव इन रिलेशनशिप
भागलपुर: महादेव सिंह कॉलेज में सोमवार को यूजीसी प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार शुरू हुआ. इसका विषय लिव इन रिलेशनशिप : भारत में हालिया प्रगति व चुनौतियां हैं. इस पर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमा शंकर दुबे ने कहा कि जब लिव इन रिलेशनशिप की बात करेंगे, तो परिवार की बात समाप्त हो […]
भागलपुर: महादेव सिंह कॉलेज में सोमवार को यूजीसी प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार शुरू हुआ. इसका विषय लिव इन रिलेशनशिप : भारत में हालिया प्रगति व चुनौतियां हैं. इस पर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमा शंकर दुबे ने कहा कि जब लिव इन रिलेशनशिप की बात करेंगे, तो परिवार की बात समाप्त हो जाती है.
यह तकरार है परंपरा व आधुनिकता के बीच का : पटना यूनिवर्सिटी के प्रो श्यामल किशोर ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप परंपरा व आधुनिकता के बीच का तकरार है. हम परंपरा को छोड़ नहीं सकते, आधुनिकता को नकार नहीं सकते. लिव इन रिलेशनशिप में हम साथ तो रह लेते, पर दायित्व का निर्वहन नहीं कर पाते. इसी कारण यह रिश्ता विवादित है. इसे कानूनी दृष्टिकोण से अपराध नहीं माना गया है. दूसरी ओर इस संबंध में स्थायित्व व सामाजिक अनुशासन का अभाव होता है.
आर्थिक सुदृढ़ता ने दिया इसे बढ़ावा : सीनियर डिप्टी कलक्टर संजीव कुमार ने कहा कि जबसे महिलाओं की आर्थिक सुदृढ़ता बढ़ी, लिव इन रिलेशनशिप पर बात होने लगी. प्रत्येक व्यक्ति को अपने मुताबिक जीने का अधिकार है. ऐसे में यह संबंध सही है, लेकिन इसे अभी तक कानूनी मान्यता नहीं मिली है. आयोजन सचिव डॉ राधामोहन पांडेय ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप से नयी ऊर्जा मिलती है. भागलपुर में भी लोग इस तरह के संबंध बना कर रह रहे हैं, पर लैला-मजनू, हीर-रांझा और रोमियो-जूलियट विरले ही मिलते हैं. प्राचार्य डॉ केडी प्रभात ने अतिथियों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप विवादित तो है, पर यह जंगल की आग की तरह फैल रही है. हमारे मनीषियों ने काम की बात की, तो इसके नियंत्रण पर भी चर्चा की है. यह वैश्विक विषय बन गया है. मंच संचालन डॉ विभु कुमार राय ने किया. गांधी विचार विभाग के अध्यक्ष डॉ विजय कुमार ने रिपोर्टियर की भूमिका निभायी. इस मौके पर डॉ आशा ओझा, डॉ बहादुर मिश्र, डॉ एसपी राय, डॉ केष्कर ठाकुर, डॉ जयप्रकाश नारायण, डॉ प्रभु नारायण मंडल, डॉ शंभु प्रसाद सिंह, डॉ अनीता कुमारी, डॉ साधना मंडल, राजकुमार राउत, राकेश कुमार झा, कुमार मनीष, डॉ सीबीपी सिंह, डॉ रविशंकर चौधरी, मृत्युंजय कुमार, मधु अग्रवाल, डॉ ईश्वर चंद आदि मौजूद थे.
विकार दूर करें, विकल्प नहीं ढूंढ़ें
इलाहाबाद से आये अखिल भारतीय दर्शन परिषद के अध्यक्ष प्रो जटाशंकर ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप को हम वैकल्पिक समाज व्यवस्था के रूप में देख रहे हैं. स्त्री के अधिकार का हनन, पारिवारिक हिंसा और समानता का अधिकार न देना लिव इन रिलेशनशिप पर सोचने को मजबूर कर रहा है. विवाह संस्था में समान अधिकार का प्रावधान है, पर उसमें विकार आ गया है. हमें यह विकार दूर करना चाहिए, न कि विकल्प ढूंढ़ना चाहिए. विवाह विशेष दायित्व का निर्वाह है. अगर हम इसे नकार रहे हैं, तो हम दायित्व से भाग रहे हैं.
भटकाव है लिव इन रिलेशनशिप
प्रतिकुलपति प्रो एके राय ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप भटकाव है. उन्होंने कहा कि वह ऐसे रिश्ते का पुरजोर विरोध करते हैं. शादी एक संस्था है. क्यों कोई सात फेरे लेते हैं, समाज, रिश्तेदार, दोस्त को शादी में आमंत्रित करते हैं. आज यूरोपियन देशों की स्थिति यह हो गयी है कि बच्चे अपने दादा, दादी को तलाशने में लगे हैं. लिव इन रिलेशनशिप में पिता तक का नाम मिलना मुश्किल है. हमारे समाज ने ब्रrा व प्रजापति विवाह को अपनाया है. स्वतंत्रता देने का यह मतलब नहीं कि जिस परिवार ने जीने लायक बनाया, उन्हें और उनके रिवाज को भूल जाएं.
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