भागलपुर: आत्मा की शुचिता, स्वच्छता व निर्मलता का होना ही शौच धर्म है. जिस प्रकार समुद्र अनेक सरिताओं से भी तृप्त नहीं होता, उसी प्रकार इनसान विश्व की संपूर्ण दौलत को पाने के बाद भी तृप्त नहीं होता. उक्त बातें मुनिराज सौरभ सागर महाराज ने गुरुवार को नाथनगर कबीरपुर स्थित श्री चम्पापुर दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र में दशलक्षण महापर्व के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म पर प्रवचन करने हुए कही. श्रद्धालुओं ने भगवान पद्म प्रभु जिनालय (मंदिर) की परिक्रमा करते हुए अहिंसा परमो धर्म: का जयघोष किया. श्रद्धालुओं ने अष्ट मंगल द्रव्य जिनालय में चढ़ाया और परिक्रमा की. इस दौरान अभिनंदन बड़जात्या ने सौधर्म इंद्र बन कर भगवान की प्रतिमा माथे पर लेकर श्रद्धालुओं के साथ आयोजन स्थल पर जाम कर भगवान को सिंहासन पर विराजमान किया.
शांति धारा शांति लाल काला ने की. सुनील जैन ने बताया कि महिला मंडल द्वारा दशधर्म एकांकी का विशेष आयोजन किया गया. मुनिराज ने आगे कहा कि सत्य के दर्शन करना चाहते हो तो अपने भीतर से लोभ कसाई को भी निकाल दो, आत्मा की वेदी को स्वच्छ कर लो बीजारोपण से पूर्व पृथ्वी को झांड़-झंकाड़, कंकड़-पत्थर से रहित कर दो ताकि आत्मा स्वच्छ, निर्मल हो जाये और सत्य का देवता आकर विराजमान हो जाये. इसलिए चतुर्थ नंबर का धर्म उत्तम शौच रखा गया है.
आर्यिका कीर्तिश्री माता ने मंत्रोच्चरण किया, जबकि विवि विधान का निर्देशन क्षुल्लक प्रेरक सागर ने किया. समारोह में श्रीपाल जैन, भागचंद पाटनी, स्वरूप रारा, कैलाश गंगवाल, अजीत बड़जात्या, विनोद विनायिका, राजीव पाटनी, आलोक बड़जात्या समेत राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु के अलावा बिहार-झारखंड के कई जिलों के श्रद्धालु शामिल थे.