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अंधेरे में रहनेवालों से मांग रहे बिजली बिल

भागलपुर : नाथनगर प्रखंड के बैरिया अजमेरीपुर गांव में 10 वर्ष पहले राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत बिजली का खंभा गड़ा, उस पर तार खींचा गया व ट्रांसफारमर भी लगा दिया. इन दस वर्षो में बिजली तो नहीं पहुंची, लेकिन बिजली का बिल जरूर पहुंच गया. ग्रामीणों का कहना है कि हमलोगों को 15 […]

भागलपुर : नाथनगर प्रखंड के बैरिया अजमेरीपुर गांव में 10 वर्ष पहले राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत बिजली का खंभा गड़ा, उस पर तार खींचा गया व ट्रांसफारमर भी लगा दिया.

इन दस वर्षो में बिजली तो नहीं पहुंची, लेकिन बिजली का बिल जरूर पहुंच गया. ग्रामीणों का कहना है कि हमलोगों को 15 साल से बिजली के नाम पर छला जा रहा है. चुनाव के समय नेता वोट के लिए बिजली जल्द पहुंचाने का वादा करते हैं, लेकिन आज तक इस अंधेरे गांव को रोशन करने वाला कोई आगे नहीं आ रहा है.

वर्ष 2001 में पावर हाउस ने लोहे का बिजली खंभा गांव तक पहुंचाया, लेकिन उसे गाड़ा नहीं. पोल आज भी मिट्टी में दब कर जंक खा रहा है.

2005 में पावर ग्रिड ने दारापुर से अजमेरीपुर गांव तक विद्युत का पोल गाड़ गांव में तार व ट्रांसफारमर पहुंचाया. गांव में बीपीएल परिवार के लोगों के घरों में पोल से कनेक्शन कर बोर्ड व मीटर भी लगा दिया, लेकिन एक साल बाद तक गांव में बिजली नहीं पहुंची. चोरों ने गांव से बाहर खेत में गड़े पोल से तार काट लिया. आज इस क्षेत्र में अजमेरीपुर से दारापुर गांव तक खेत में तार विहीन विद्युत पोल खड़े है.

बोले ग्रामीण. बैरिया के शोभाकांत मंडल, राजा रूपा चंद्र, अशोक मंडल, सुरेश मंडल, ललन साह आदि ने बताया 15 साल से बिजली के लिए हमलोगों को छला जा रहा है. 20 दिन पहले गांव में बिजली विभाग से बिजली बिल मांगने चार-पांच आदमी आये थे.

सबका मोबाइल नंबर लिख कर ले गये व बिल जमा करने के लिए दबाव डाल रहे हैं. किसी को तीन हजार, तो किसी को 10 हजार बिल जमा करने कहा जा रहा है. वोट के समय सुधा श्रीवास्तव, सुबोध राय, सुशील मोदी, शाहनवाज हुसैन, अजय मंडल सबने इस अंधेरे गांव में चकमक रोशनी पहुंचाने का वादा किया था, लेकिन बिजली नहीं पहुंची. एक हजार खर्च कर 225 लोगों ने रसीद कटवा कर उपभोक्ता बनने का आवेदन भरा, सब बेकार हो गया.

डिबिया की रोशनी में करते हैं पढ़ाई.

गांव के स्कूली बच्चे रोशन, अमित, राहुल, प्रीतम, पूजा, शोभा कुमारी ने बताया कि हमलोगों के किस्मत में रोशनी नहीं है. गांव में लगभग 400 परिवार दो लीटर केरोसिन देकर 14 वाट का एक सीएफएल एक माह तक जलाते हैं. वह भी रात नौ बजे रात तक ही.

यहां के अधिकतर बच्चे लालटेन, डिबिया या बोतल की कुप्पी की रोशनी में पढ़ाई करते हैं. डिबिया की रोशनी में पढ़ने से आंख में जलन होती है. बिजली नहीं होने के कारण हमलोग टीवी नहीं देख पाते हैं. कंप्यूटर सीखने व क्रिकेट मैच देखने शहर जाना पड़ता है.

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