भागलपुर: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डॉ धनेश्वर मंडल ने कुलपति के नाम एक खुला पत्र जारी किया है. उन्होंने जहां शिक्षक पेंशनरों व शिक्षकेतर कर्मी पेंशनरों को मिल रहे दो तरह के पेंशन लाभ पर टिप्पणी की है, वहीं विश्वविद्यालय कार्यालय की कार्यप्रणाली पर भी नाराजगी जतायी है. बकौल डॉ मंडल-मैं खुला-खुला लिख रहा हूं, क्योंकि मामला महज मेरा नहीं, एक बड़े समूह का है. दूसरे विश्वविद्यालय को लिखे गये पत्र उसके दफ्तर के ‘ब्लैक होल’ में गुम हो जाते हैं.
उन पर कार्रवाई का प्रश्न ही नहीं उठता. विश्वविद्यालय के शिक्षक पेंशनरों को पिछले कई महीने से नव-निर्धारित पेंशन का भुगतान हो रहा है. उन्हें बकाया भी मिलनेवाला है. इसके उलट शिक्षकेतर पेंशनरों को अभी तक पुरानी दरों पर ही पेंशन भुगतान जारी है. उनका पेंशन पुनर्निर्धारण व तदनुसार भुगतान कब से होगा, इस पर विश्वविद्यालय चुप है.
पेंशनरों के बीच भेदभाव बरता भी गया, तो अपेक्षाकृत दुर्बलों के खिलाफ. दुर्बलों की आह बड़ी मोटी होती है. किसी को देना और किसी को न देना मनमानापन है. अन्याय है. नि:स्संदेह छूटे हुए लोग भी पुनरीक्षित पेंशन पायेंगे, पर वह देर से किया गया न्याय होगा. देर से किया गया न्याय, न्याय नहीं करने जैसा है.
हम आशा करते हैं कि कुलपति, कार्यालय की करतूत से वाकिफ नहीं हैं. यदि हैं, तो इस बारे में सबसे कम कहना बेहतर होगा. कुलपतिजी, आपके आने से कुलपति पद की पाकीजगी तो लौटी, पर दफ्तर की तंद्रा कहां टूटी. कहने की जरूरत नहीं, जहां काम नहीं होता, वहां भ्रष्टाचार होता है. विश्वविद्यालय में सारे अफसर हैं. सबके सब कुलपति की चाहत के हैं या हो सकते हैं. भरे-पूरे कर्मचारी हैं. फिर भी प्रोन्नति, परीक्षाफल या वेतन-पेंशन हर चीज के लिए कुलपति को ही क्यों घेरा जाता है. शेक्सपियर के हेमलेट के लिए ‘यही तो समस्या है.’
मौजूदा आलम को देखते हुए अपने संकटमोचन के लिए हम भी कुलपति को ही पकड़ रहे हैं. वरना यह कुलपति की जगह कुलसचिव या वित्त पदाधिकारी भी हो सकता था. काम करने के अनेक तरीके हैं और नहीं करने के अनेक बहाने हैं. हम आशान्वित हैं कि विश्वविद्यालय कार्यबल बना कर या सेवा आउटसोर्स करके या अन्य किसी प्रकार से काम पूरा करके अगले पेंशन भुगतान के समय हमारे साथ बरती गयी अनियमितताओं को दूर कर लेगा.