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आठवें दशक में नुक्कड़ नाटक ने बनायी पहचान : चंद्रेश

– सफदर हाशमी के 25 वें शहादत दिवस पर विचार गोष्ठी वरीय संवाददाता, भागलपुर लाजपत पार्क के समीप कला केंद्र में सफदर हाशमी के 25 वें शहादत दिवस पर विचार गोष्ठी हुई. गोष्ठी में प्रख्यात रंगकर्मी, नाटककार, लेखक, कवि सफदर हाशमी के 25 वें शहादत दिवस पर अपने-अपने विचार रखे. विचार संयोजक चंद्रेश ने कहा […]

– सफदर हाशमी के 25 वें शहादत दिवस पर विचार गोष्ठी वरीय संवाददाता, भागलपुर लाजपत पार्क के समीप कला केंद्र में सफदर हाशमी के 25 वें शहादत दिवस पर विचार गोष्ठी हुई. गोष्ठी में प्रख्यात रंगकर्मी, नाटककार, लेखक, कवि सफदर हाशमी के 25 वें शहादत दिवस पर अपने-अपने विचार रखे. विचार संयोजक चंद्रेश ने कहा कि आठवें दशक के शुरू में रंगमंच के क्षेत्र में नुक्कड़ नाटक ने पहचान बनायी. नुक्कड़ नाटक जन आंदोलन के बीच निकला है. आठवां दशक काफी उथल-पुथल का दौर था और उस दौर में नाटक को फलने-फूलने का मौका मिला. उसी दौर में सफदर हाशमी ने नुक्कड़ नाटक के क्षेत्र में सृजनात्मक हस्तक्षेप किया. उन्हांेने नाटक को एक नये रूप में उभारा, जिसका साहित्यिक मूल्य भी था. उन्हांेने कहा कि सफदर की मौत नाटक के लिए क्षति थी, इसकी भरपायी आज तक नहीं हो पायी है. जहां तक भागलपुर का सवाल है, यह क्षेत्र नुक्कड़ नाटक के बेहतर क्षेत्र के रूप मंे उभर रहा है. इस दिशा में यहां काफी काम भी हुआ है. परिधि के उदय ने भी इस दिशा में व्यापक बदलाव को लेकर चर्चा की.

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