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स्कॉर्पियो खरीद में एक के बाद एक मिली गड़बड़ी
भागलपुर : टीएमबीयू में स्कॉर्पियो खरीद मामले में जांच के क्रम में त्रुटियां ही त्रुटियां मिली. पुलिस की जांच रिपोर्ट में इसमें कई बिंदुओं पर सवाल भी उठाये गये. कुलपति की स्वीकृति के बाद परचेज ऑर्डर निकलना चाहिए था, लेकिन इसके बिना ही गाड़ी खरीद का वाउचर बना दिया गया. स्कार्पियो गाड़ी की ऐससिरिज के […]
भागलपुर : टीएमबीयू में स्कॉर्पियो खरीद मामले में जांच के क्रम में त्रुटियां ही त्रुटियां मिली. पुलिस की जांच रिपोर्ट में इसमें कई बिंदुओं पर सवाल भी उठाये गये. कुलपति की स्वीकृति के बाद परचेज ऑर्डर निकलना चाहिए था, लेकिन इसके बिना ही गाड़ी खरीद का वाउचर बना दिया गया. स्कार्पियो गाड़ी की ऐससिरिज के लिए बिना प्रशासनिक स्वीकृति के ही 48500 रुपये का भुगतान कर दिया गया.
गाड़ी की खरीद वित्त विभाग का सेल्स परचेज वित्त विभाग से होती है लेकिन गाड़ी खरीद विश्वविद्यालय के इंजीनियर अंजनी कुमार के जरिये की गयी. नौ सिंतबर 2016 को यह सूचित किया गया कि स्कार्पियो गाड़ी मार्च 2015 में ही बेची गयी थी, जिसका प्रथम मालिक चंद्र प्रकाश था. अभियंता अंजनी कुमार द्वारा स्कार्पियो खरीदने के बाद इंजन और चेसिस नंबर की जांच नहीं की गयी. मैकेनिकल इंजीनियर मुरारी मिलन अरुण द्वारा 30 मार्च 2017 को संचिका में यह टिप्पणी दी गयी है कि ब्रजेश ऑटो मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्गत स्कार्पियो गाड़ी का कोटेशन 14 लाख 27 हजार 590 रुपये है. जबकि वत्सा ऑटो मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड बैजानी भागलपुर द्वारा निर्गत स्कार्पियो गाड़ी का काेटेशन 14 लाख 29 हजार 384 रुपये है.
फिर भी कम कोटेशन वाले से गाड़ी खरीदने के बजाय उससे अधिक कोटेशन वाली एजेंसी से स्कार्पियो खरीद की गयी. गाड़ी खरीद के लिए 14 लाख 29 हजार 384 रुपये स्वीकृत किया गया था. जबकि वत्सा ऑटो मोबाइल को 14 लाख 09 हजार 384 रुपये का भुगतान किया गया. चेक बनाने का आदेश न तो वित्तीय परामर्शी से लिया गया और न ही तत्कालीन कुलपति से. वत्सा ऑटो मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड ने उक्त खरीदी गयी स्कार्पियो का नंबर बीआर 10 वी 1457 से बीआर 10 वी 1422 कर दिया.
स्कार्पियो ए 10 खरीद मामले में व्यापक धांधली की गयी है.
गाड़ी खरीदने के लिए किसी व्यक्ति को अधिकृत नहीं किया गया. दो लोगों के कोटेशन में जिसका कम कोटेशन होना था, उससे गाड़ी खरीदा जाना चाहिए था लेकिन हुआ इसका उल्टा
एसेसरीज के साथ स्कार्पियो का कोटेशन 14 लाख 29 हजार 384 रुपये दिया गया था. लेकिन उक्त धनराशि का बाउचर बनाने के साथ-साथ एसेसरीज के लिए अलग से 48500 रुपये का भुगतान बिना प्रशासनिक स्तर पर स्वीकृति मिले ही कर दिया गया.
वत्सा आॅटोमोबाइल को चार मार्च 2016 काे चेक दिया गया. लेकिन वत्सा आॅटो मोबाइल ने उस तिथि को गाड़ी मुहैया नहीं करायी. जब गाड़ी दी गयी तो ऑनर बुक नहीं दिया गया. विश्वविद्यालय ने जब कानूनी कार्रवाई के लिए पत्र लिखा तब ऑनर बुक दिया गया. जो अनुचित है.
वत्सा आटो मोबाइल ने गाड़ी का पहला नंबर बीआर 10 वी 1457 फिर बाद में उसने बीआर 10 वी 1422 कर दिया गया. अंतत: डीटीओ ने गाड़ी को बीआर 10 पीए 8591 नंबर कर दिया. गाड़ी का नंबर जब बदल रहा था तो उस समय ही विश्वविद्यालय को संज्ञान में लेना था. एक तो संज्ञान नहीं लिया उल्टे तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ एके राय ने दूसरी स्वीकृति दे दी.
पांच सितंबर 2016 को पहली सर्विसिंग के दौरान ही पता चल गया था कि गाड़ी खरीद में फर्जीवाड़ा हुआ है. बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया. इससे इनकी मिलीभगत प्रतीत होता है.
ऐसे चला फर्जीवाड़े का पता
पांच सितंबर 2016 को पहली सर्विसिंग के दौरान पता चल गया था कि स्कार्पियो की खरीद में फर्जीवाड़ा हुआ है. गाड़ी मार्च 2015 में ही किसी चंद्र प्रकाश ने उक्त गाड़ी की खरीद कर ली थी.
अभियंता अंजनी कुमार गाड़ी खरीद में शामिल थे. जब यह पता चला कि गाड़ी मार्च 2015 में ही चंद्रप्रकाश ने खरीद कर ली थी तो कुल सचिव ने अंजनी कुमार का नाम दर्ज किया कि वे इसकी देखरेख करें. इसके बावजूद अंजनी कुमार ने अपना मंतव्य नहीं दिया.
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