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मायागंज में ओ ग्रुप के डोनर में तलाश होगी बांबे ब्लड ग्रुप की

जांच. बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्य दुर्लभ हैं जो ए व बी ग्रुप के नहीं हैं भागलपुर : जेएलएनएमसीएच के ब्लड बैंक में खून देने-लेने वाले ओ ग्रुप के मरीजों का अन्य जांच के साथ-साथ अब ये भी जांचा जायेगा कि मरीज कहीं बांबे ब्लड ग्रुप का सदस्य तो नहीं है. जांच में बांबे ब्लड […]

जांच. बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्य दुर्लभ हैं जो ए व बी ग्रुप के नहीं हैं

भागलपुर : जेएलएनएमसीएच के ब्लड बैंक में खून देने-लेने वाले ओ ग्रुप के मरीजों का अन्य जांच के साथ-साथ अब ये भी जांचा जायेगा कि मरीज कहीं बांबे ब्लड ग्रुप का सदस्य तो नहीं है. जांच में बांबे ब्लड ग्रुप का सदस्य पाये जाने पर ब्लड बैंक उसकी कुंडली बनायेगा ताकि भविष्य में इस प्रकार के मरीजों के लिए डोनर की तलाश में दर-दर की ठोकर न खानी पड़े. इसके लिए जेएलएनएमसीएच प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है. अगर सब कुछ सही रहा तो अगले माह से ओ ब्लड ग्रुप के मरीज व डोनर का बांबे ब्लड ग्रुप जांच की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. अगर ऐसा हुआ तो जेएलएनएमसीएच सूबे का पहला एेसा हॉस्पिटल होगा जहां के ब्लड बैंक में बांबे ब्लड ग्रुप की भी जांच एवं इस ग्रुप के सदस्यों का डॉटा तैयार होता है.
एंटी एच री एजेंट के जरिये ढूंढे जायेंगे बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्य. आज की तारीख में मायागंज हॉस्पिटल के ब्लड बैंक में एंटी एच री एजेंट का वायल नहीं है. जबकि इसी के जरिये ओ ब्लड ग्रुप वाले मरीजों के खून की जांच करके जाना जा सकता है कि वह बांबे ब्लड ग्रुप का सदस्य है कि नहीं. इसके एक वायल (पांच एमएल) की कीमत निजी बाजार में 450 रुपये है. ब्लड बैंक को अगर एंटी एच रि एजेंट का वायल मिलने की स्थिति में बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्यों की जेल टेक्नोलॉजी के जरिये जांचने का काम शुरू हो जायेगा.
क्या है बांबे ब्लड ग्रुप. बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्य दुर्लभ है जो न ‘ए’ है और न ‘बी’ और न ‘एबी’ ग्रुप है. दूसरे ब्लड ग्रुप में एंटीजन एच होते हैं. इसी एंटीजन से ग्रुप ‘ए’, ‘बी’ व ‘एबी’ बनते हैं. जबकि बांबे ब्लड ग्रुप में एच एंटीजन नहीं होते हैं. यहीं कारण है कि ग्रुप को एचएच ग्रुप भी कहा जाता है. इस ब्लड ग्रुप वाले लोग सभी को रक्तदान कर सकते हैं लेकिन ये सिर्फ अपने ही ब्लड ग्रुप वाले से ही खून ले सकते हैं.
देश में हर दस हजार लोगाें में एक व्यक्ति है बांबे ब्लड ग्रुप का सदस्य. बांबे ब्लड ग्रुप इतना रेयर है कि देश में दस हजार लोगों में से किसी एक का ब्लड ग्रुप बांबे ब्लड ग्रुप का होता है. यूरोप के देशों में तो दस लाख में से किसी का ब्लड ग्रुप बांबे होता है. ऐसे में इस ब्लड ग्रुप वाले डोनर की जबरदस्त संकट है. यही कारण है कि संकट की घड़ी में खून की जरूरत पड़ने पर इस ग्रुप वाले मरीज की जान बचाना मुश्किल हो जाता है.
ब्लड बैंक के टेक्निशियनों ने सीखा बांबे ग्रुप, केल व डफी जांच का गुर
बुधवार को बायो रेड द्वारा जेएलएनएमसीएच के ब्लड बैंक में ‘एडवांस ट्रेनिंग ऑन जेल टेक्नोलॉजी’ विषयक वर्कशाप का आयोजन किया गया. इस अवसर पर ब्लड बैंक के लैब टेक्निशियनों ने मुख्य ग्रुप के अलावा सब ग्रुप के तहत होने वाले बांबे ग्रुप, केल व डफी जांच का गुर सीखा. इस अवसर पर ट्रेनर जयंता रॉय चौधरी ने कहा कि सामान्यत: मरीजों का ब्लड ग्रुप कर दिया जाता है. लेकिन मरीज का कांपिटेबिलिटी टेस्ट बहुत ही कम किया जाता है.
जबकि कांब्स फेज में ही जेल टेक्नोलॉजी द्वारा ग्रुप व क्रास मैचिंग किया जाना चाहिए. इस अवसर पर उन्होंने मुख्य जांच के साथ-साथ सब ग्रुप जांच करने के तरीके व सावधानी पर विस्तार से प्रकाश डाला. ट्रेनिंग के दाैरान ब्लड बैंक की मेडिकल ऑफिसर डॉ दिव्या सिंह, लैब टेक्निशियन राजेश कुमार, अरुण कुमार सिंह, उत्तम कुमार, केशव कुमार सिंह, विश्व दीपक कुमार, जव्वाद अहमद, मो फतेह आलम, मो साजिद अख्तर व काउंसलर सैय्यद आरफीन आदि मौजूद रहे.
पत्र मिलने के बाद दस दिन के अंदर एंटीजन एच री एजेंट के वायल की खरीदारी कर दी जायेगी. साथ ही बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्यों के मिलने पर न केवल आफलाइन बल्कि ऑनलाइन डाटा बनाया जायेगा. सूबे के किसी भी हिस्से में इलाजरत मरीज को जरूरत पड़ने पर बांबे ब्लड ग्रुप का खून उपलब्ध कराया जा सके.’
डॉ आरसी मंडल, अधीक्षक जेएलएनएमसीएच भागलपुर
एंटी एच री एजेंट की उपलब्धता के लिए हॉस्पिटल के अधीक्षक को पत्र लिखा जायेगा. इसकी उपलब्धता के बाद ब्लड बैंक में जांच प्रक्रिया शुरू कर दी जायेगी. इसी के साथ इस ग्रुप के सदस्यों का डॉटा जुटाने का काम भी शुरू हो जायेगा.
डॉ दिव्या सिंह, मेडिकल ऑफिसर, ब्लड बैंक जेएलएनएमसीएच भागलपुर
शहर के किसी भी ब्लड बैंक में नहीं है बांबे ब्लड ग्रुप का डोनर
भागलपुर शहर में जितने भी सरकारी और प्राइवेट ब्लड बैंक हैं. उनमें से किसी के भी वहां बांबे ब्लड ग्रुप का कोई डोनर रजिस्टर्ड नहीं है. यही कारण है कि जब भी इस ब्लड ग्रुप का कोई रोगी आता है तो उसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है. लाख कोशिशों के बावजूद उसकी सहायता नहीं हो पाती है. ऐसी स्थिति में दूसरे शहरों में इस ग्रुप वाले डोनर की तलाश की जाती है. हालांकि ब्लड बैंकों की ओर से लगातार ऐसे डोनर्स को जोड़ने की कोशिश चल रही है लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है.
बनेगी बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्यों की कुंडली
जांच का काम शुरू होने के बाद ब्लड बैंक बांबे ब्लड ग्रुप के सदस्यों का रिकार्ड बनायेगा. उस रिकार्ड बुक में इसके मेंबर का नाम, पता, कांटेक्ट नंबर आदि का संपूर्ण ब्योरा दर्ज होगा. ताकि इस ग्रुप के बीमार सदस्यों को खून मिलने की स्थिति में इन लोगों से संपर्क कर उनकी जान को बचाया जा सके.

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