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फी जमा करने की बढ़ी चिंता

समस्या . स्कूल फी में बढ़ोत्तरी अभिभावकों के लिए बनती है टेंशन बेगूसराय/ बीहट : सरकार की सुस्ती व लापरवाही के चलते जिले में निजी विद्यालय धड़ल्ले से फल-फूल रहा हैं. एक ओर सरकार समान शिक्षा प्रणाली का राग अलापती है तो दूसरी ओर शिक्षा में बाजारवाद की छूट देकर बचाने का कोई प्रयास नहीं […]

समस्या . स्कूल फी में बढ़ोत्तरी अभिभावकों के लिए बनती है टेंशन

बेगूसराय/ बीहट : सरकार की सुस्ती व लापरवाही के चलते जिले में निजी विद्यालय धड़ल्ले से फल-फूल रहा हैं. एक ओर सरकार समान शिक्षा प्रणाली का राग अलापती है तो दूसरी ओर शिक्षा में बाजारवाद की छूट देकर बचाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है. नये शैक्षणिक सत्र शुरू होने की आहट मात्र से निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों के माथे पर अभी से चिंता की लकीरें खींचने लगी है. एक बार फिर ऐसे स्कूलों की फी मनमानी तरीके से बढ़ जायेगी.
एडमिशन के समय मोटी राशि तो ली ही जाती है. नयी कक्षा में जाने पर एडमिशन फी ली जायेगी.ड्रेस और किताबें या तो इन स्कूलों से खरीदनी पड़ेगी या फिर इनके द्वारा तय दुकानों से. इसके अलावा बच्चों में सर्किल डेवलपमेंट के नाम पर सालों भर वसूली अलग से. शिक्षा के नाम पर किये जा रहे व्यापार पर अब प्रतिबंध लगाना जनता की मांग है.
हर साल बदल जाता है यूनिफॉर्म:
किसी निश्चित नियम के अभाव में स्कूल का ड्रेस कब बदल जाये .इसकी कोई गारंटी नहीं है. साथ ही साथ स्कूल में खुले काउंटर से ही खरीदने की ताकीद भी. जूते-मौजे, स्वेटर,टाई,बेल्ट से लेकर पठन-पाठन की अन्य सामग्री तक.अभिभावक स्कूल के व्यापारिक चतुरता को देखते-समझते हुए भी लूटने को विवश हैं.
फी पर नहीं है कोई कंट्रोल :निजी स्कूलों में ली जाने वाली फी अभिभावक काफी मुश्किल से जमा कर पाते हैं मगर प्राइवेट स्कूल किसी न किसी रूप में फी बढ़ाने से बाज नहीं आते हैं.गरमी में भले स्कूल बंद हो जाये लेकिन फी जमा करनी ही पड़ती है.बच्चे भले स्कूल न जायें वहां के लैब व लाइब्रेरी का उपयोग नहीं करें लेकिन उन्हें उनका शुल्क देना ही होता है. इसके अलावा उन्हें ट्यूशन,बस की फी सहित कई ऐसे शुल्क भी देने पड़ते हैं,जिसका व्यवहार उस दौरान छात्र नहीं करते हैं.विरोध करने पर स्कूल प्रबंधन सीधे बच्चे को हटा लेने की बात कह अभिभावक को चुप करा देते हैं.
अपने ही स्कूल में रि-एडमिशन फी:क्लास वन से टू में जाने की बात हो या क्लास थ्री से फोर में जाना हो,बिना रि-एडमिशन के दूसरे क्लास में जाने की अनुमति अपने विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को भी नहीं है. बिना फी दिये काम नहीं चलता है.कहीं पर रि-एडमिशन तो कहीं डेवलपमेंट के नाम पर मोटी रकम स्कूल वाले पूरे अधिकार के साथ वसूलते हैं.इतना ही नहीं सीबीएसइ से मान्यता प्राप्त अधिकांश स्कूलों में 10वीं बोर्ड पास करने के बाद 11वीं में अगर विद्यार्थी उसी स्कूल में पढ़ना चाहता है तो उन्हें दोबारा स्कूल द्वारा लिए जाने वाले टेस्ट परीक्षा में शामिल होना पड़ता है.और फिर मोटी रकम देने के बाद ही स्कूल में नामांकन मिलता है.
बीच सड़क पर खुलते हैं वाहनों के गेट:सीबीएसइ और आइसीएसइ बोर्ड के अनुसार स्कूल के बस का गेट बच्चों के उतरने वाले स्टॉपेज पर ही खुलना तय किया गया है. लेकिन अधिकांश बसों के गेट बंद होते ही नहीं और बच्चे बस के गेट पर लटके देखे जा सकते हैं.बसों से बच्चों को कहीं पर भी चढ़ा-उतार दिया जाता है.इस क्रम में बच्चों के घायल होने की कई घटनाएं हुई हैं .फिर भी स्कूल प्रबंधन का ध्यान इस ओर नहीं जाता .स्कूल बस में बिना लाइसेंस और परिचय पत्र के ही अधिकतर अप्रशिक्षित चालक होते हैं. इतना ही नहीं स्कूल बसों की नियमित जांच तक नहीं होती है.
थानों में नहीं है स्कूलों की जानकारी:हर स्कूल की अद्यतन जानकारी सभी लोकल थानों तक को नहीं रहती है.स्कूल के टेलिफोन नंबर के साथ तमाम शिक्षकों के नंबर भी लोकल थाने में होने चाहिए. इसके अलावा तमाम स्कूलों को पुलिस जिला मुख्यालय से भी जुड़ा रहना चाहिए.लेकिन कुछ को छोड़कर ,अधिकतर स्कूल अपना डिटेल्स देना भी जरूरी नहीं समझते हैं.
स्कूली वाहनों में मानकों की हो रही अनदेखी
निजी स्कूलों द्वारा सुरक्षा के मानकों की अनदेखी करते हुए बसों व अन्य वाहनों का परिचालन कर बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.वाहन के नाम पर पैसे जमा करने के बाद भी बच्चों को बैठने के लिए सीट नहीं मिलती है. विभिन्न रूटों के लिए निर्धारित स्कूल बसों के अंदर क्षमता से अधिक बच्चों को खड़ा देखा जा सकता है. ऊपर से उन्हें घंटों बस में घुमाया जाता है. इससे बच्चे स्कूल तक पहुंचते-पहुंचते थक जाते हैं .इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता है.वहीं शिकायत करने पर स्कूल प्रबंधन कहता है कि यही व्यवस्था है,इसमें भेजिये,नहीं तो खुद पहुंचाइये .इतना ही नहीं स्कूल बसों में सीबीएसइ के गाइड लाइन के मुताबिक न तो फर्स्ट एड का कीट रहता है न ही स्कूल का कोई शिक्षक.
सीबीएसइ के नियमानुसार कोई भी सीबीएसइ से मान्यता प्राप्त स्कूल एक बार ही किसी बच्चे से नामांकन फी ले सकता है. उससे फिर आगे के क्लास में जाने पर स्कूल दोबारा नामांकन शुल्क नहीं ले सकती है.सीबीएसइ के अनुसार अगर कोई छात्र किसी क्लास में एक बार नामांकन ले लेता है तो उसका दूसरे क्लास में खुद ही नामांकन हो जायेगा.लेकिन नियम को ताक पर रख कर ऐसी स्कूलें खुलेआम मनमानी रहे हैं.
निजी स्कूलों की मनमानी रोकनी होगी.एआइएसएफ इसको लेकर जल्द ही व्यापक आंदोलन करेंगे.निजी स्कूलों को एक जैसा सम्मानजनक फी निर्धारित करनी होगी.फीस को लेकर मनमानी से अभिभावक त्रस्त हैं.अभिभावकों को एकजुट होकर संघर्ष करने की जरूरत है.
रामकृष्ण,छात्र नेता
महंगी फी वाले स्कूल में कमजोर वर्ग के बच्चे कैसे पढ़ सकेंगे.निजी स्कूल शिक्षा की बजाय कमाने और गरीबों को शिक्षा से दूर करने के लिए खोले जा रहे हैं.सरकार भी ऐसे स्कूलों को लूटने का लाइसेंस दे रही है.
श्यामनंदन सिंह पन्नालाल,अभिभावक व समाजसेवी
बिना नियमावली बने निजी स्कूलों की मनमानी नहीं रूकेगी.सरकारी स्कूलों में साइकिल-पोशाक के नाम पर करोड़ो खर्च हो रहे हैं,लेकिन पढ़ाई का स्तर नहीं है.इसमें सुधार लाना और लोगों की सोच बदलना जरूरी है.
जितेंद्र कुमार,छात्र नेता
प्रत्येक साल स्कूल में कार्यरत शिक्षकों के सैलरी में 10 प्रतिशत की वृद्धि की जाती है. लेकिन उस अनुपात में फी की बढ़ोत्तरी नहीं की जाती है.जो भी फी लिया जाता है उसे सीबीएसइ बोर्ड को अवगत करा दिया जाता है. अभिभावकों पर ज्यादा बोझ न पड़े इसका हरसंभव ख्याल रखा जाता है.
राजकिशोर सिंह, निदेशक,विकास विद्यालय,बेगूसराय

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