बेगूसराय: आजादी के दशकों बाद भी महिलाओं को समाज में बराबरी का हक हासिल नहीं हो सका है. हालांकि महिलाओं ने माना है कि विगत कुछ वर्षों में महिलाओं की शिक्षा में सुधार हुआ है. साथ ही स्त्री-पुरुष अनुपात में भी आंशिक बदलाव हुए हैं, जो कि समग्र रूप से देखने पर राज्य व समाज […]
बेगूसराय: आजादी के दशकों बाद भी महिलाओं को समाज में बराबरी का हक हासिल नहीं हो सका है. हालांकि महिलाओं ने माना है कि विगत कुछ वर्षों में महिलाओं की शिक्षा में सुधार हुआ है. साथ ही स्त्री-पुरुष अनुपात में भी आंशिक बदलाव हुए हैं, जो कि समग्र रूप से देखने पर राज्य व समाज के लिए महिला-पुरुषों के संतुलित विकास के लिए काफी नहीं है.
महिला शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सम्मान, लोकतांत्रिक अधिकार, आजादी और लैंगिक समानता आदि सवालों पर महिलाओं की स्थिति अभी काफी पीछे है. महिलाओं ने एक स्वर में माना कि महिलाओं को फैसले लेने का अधिकार आज भी संकट में है.
महिलाओं का उत्थान कैसे हो पर प्रभात खबर की परिचर्चा
बरता जा रहा है भेद-भाव
महिला सशक्तीकरण की बातें हो रही हैं, लेकिन वास्तविक स्वरूप में यह जमीन पर नहीं उतर पा रही है. महिलाओं ने माना कि अपनी जिंदगी के हर छोटे-बड़े हर काम का खुद निर्णय लेने की क्षमता होना ही महिला सशक्तीकरण है. अपनी निजी स्वतंत्रता और खुद फैसले लेने के लिए महिलाओं को अधिकार देना ही महिला सशक्तीकरण है, जबकि महिला मानसिक और शारीरिक हर तरह से पुरुषों के अधीन बनी है. खासकर हमारे पारंपरिक ग्रामीण समाज की महिलाएं जो अपनी इच्छाशक्ति, स्वतंत्रता और स्वाभिमान को दबाकर जीने के लिए मजबूर हैं. जरूरत है ऐसी महिलाओं को सशक्त करने की. ताकि वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकें और समाज के विकास में अपनी अहम भूमिका निभा सकें.