बेगूसराय : तीन तलाक को पांच जजों की बेंच के द्वारा गैर कानूनी करार दे देने और छह महीने के लिए इस पर रोक भी लगा देने के निर्णय के साथ-साथ सरकार को इसके संबंध में कानून बनाने का निर्देश दिये जाने की खबर जैसे मिली इसको लेकर शहर में हलचल मच गयी. इसको लेकर […]
बेगूसराय : तीन तलाक को पांच जजों की बेंच के द्वारा गैर कानूनी करार दे देने और छह महीने के लिए इस पर रोक भी लगा देने के निर्णय के साथ-साथ सरकार को इसके संबंध में कानून बनाने का निर्देश दिये जाने की खबर जैसे मिली इसको लेकर शहर में हलचल मच गयी. इसको लेकर कई तरह की चर्चाओं का बाजार गरम हो गया.
विदित हो कि कोर्ट को यह तय करना था कि तीन तलाक महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है अथवा नहीं यह कानूनी रूप से जायज है या नहीं और तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा है या नहीं. इससे पहले केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वह तीन तलाक को जायज नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद तीन तलाक पर रोक पर क्या सोचती हैं मुसलिम समाज की महिला व मुसलिम समाज की बेहतरी के लिए कार्य करने वाले संगठन इसकी पड़ताल प्रभात खबर के प्रतिनिधियों के द्वारा की गयी.जिसमें लोगों की भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आयी है.
तीन तलाक संवैधानिक है या नहीं मुझे इस बात से मतलब नहीं है. धर्म-ग्रंथ व मुफ्ती-मौलाना आदि के माध्यम से मैं यह जानती हूं कि यह एक बिल्कुल धार्मिक मामला है. इसका हल धार्मिक तरीके से ही हो तो बेहतर होगा.
फरजाना खातून,गृहणी
तीन तलाक किसी भी महिला के लिए काफी कष्टदायी है. परंतु संबंध-विच्छेद का यह मुसलिम धार्मिक शरीयत है.तीन तलाक देने वाले पुरुष पर उसके गुनाह के लिए कोई सजा का यदि निर्धारण हो तो वह महिला समाज के हक में बेहतर होगा.
कहकशां प्रवीण,छात्रा
तीन तलाक का दुरुपयोग वर्तमान समय में बढ़ा है. इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए मजहबी संस्थानों को आगे आकर ठोस पहल कर अंकुश लगाने की जरुरत है.
मोहम्मद अहसन,अध्यक्ष पैगाम-ए-अमन कमेटी ,बेगूसराय
तीन तलाक एक मजलिस में देना गुनाह है. देने वाला शख्स मुजरिम है.उसको उसके गुनाह के लिए दंड की व्यवस्था मुल्क के कानून के स्तर पर किया जाये. तीन तलाक देने से तलाक होगा ही नहीं. यह इसलामी शरीयत के विरुद्ध है.
मुफ्ती खालिद कासमी,इस्लामी स्कॉलर व मुफ्ती शहर,बेगूसराय