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नौलखा मंदिर का हो विकास
बेगूसराय : ऐतिहासिक धरोहर हमारी जीवन संस्कृति की खुली किताब होती है. हमारी हर अगली पीढ़ी उन ऐतिहासिक धरोहरों से हमारे इतिहास के हर काल खंडों की जीवन संस्कृति से जीवंत रूप में परिचित होते हैं. यही कारण है कि हम अपने पूर्वजों के द्वारा निर्मित विभिन्न तरह के कला संस्कृति,मठ,मंदिरों जैसी धरोहर को सुरक्षा […]
बेगूसराय : ऐतिहासिक धरोहर हमारी जीवन संस्कृति की खुली किताब होती है. हमारी हर अगली पीढ़ी उन ऐतिहासिक धरोहरों से हमारे इतिहास के हर काल खंडों की जीवन संस्कृति से जीवंत रूप में परिचित होते हैं. यही कारण है कि हम अपने पूर्वजों के द्वारा निर्मित विभिन्न तरह के कला संस्कृति,मठ,मंदिरों जैसी धरोहर को सुरक्षा एवं संरक्षा प्रदान करते हैं. नौलखा मंदिर बेगूसराय शहर में बनी हुई ऐसी ही एक प्राचीन व ऐतिहासिक धरोहर है. लेकिन आज स्थिति यह है कि इस एेतिहासिक धरोहर की पहचान मिटने के कगार पर पहुंच गयी है.
अपने समय में आर्कषण का केंद्र था शहर का नौलखा मंदिर:लोगों का कहना है कि चारो तरफ किलेनुमा दीवारों व तीन मंजिले मुख्य द्वार कभी मठ का मुख्य आकर्षण हुआ करती थी. मठ के रूप में चर्चित नौलखा मंदिर परिसर दो सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है. हालांकि मठ परिसर में वर्ष 1953 में नौ लाख रुपये में मंदिर निर्माण होने के बाद यह पूरा परिसर नौलखा मंदिर के रूप में पहचाना जाने लगा.
भव्य कलाकृति को लेकर दूर-दूर से पहुंचने लगे लोग:नौलखा मंदिर की कलाकृति सिर्फ जिले में ही नही दूर-दूर तक फैल गयी. हर वर्ष दूर-दूर से लोग नव वर्ष पर पिकनिक मनाने यहां जुटते हैं.आम दिनों नव विवाहित जोड़े भी मनोरंजन व सैर सपाटे के लिए पहुंचते हैं .फिर भी यह मंदिर एक पर्यटन स्थल के रूप में पहचान बनाने के बाद भी बदहाली के कगार पर है.
खो रही एतिहासिक पहचान: मंदिर की पुरानी ऐतिहासिक चहारदीवारी तो अब लगभग ढहने को है. अगर समय रहते चहारदीवारी का निर्माण हो जाता तो इसकी पुरानी पहचान जीवित रह सकती है.
ढह रहा है मंदिर परिसर का मुख्य द्वार:मंदिर का मुख्य द्वार प्राचीन कालीन भवन निर्माण कला का बेमिशाल नमूना है. यह किले की तरह तीन मंजिला निर्मित थी जो ढह ढह कर एक मंजिल पर पहुंच चुकी है.
फट चुके हैं मंदिर के गुंबज:शीशे चढ़ाया गया गुंबज पूरे मंदिर की सुंदरता है.मंदिर के गुंबज का उपरी छोर फट चुका है. जिससे इसकी सुंदरता मिटने लगी है. मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार के प्रति नगर निगम सजग भी हुई है .
नगर निगम के पहल पर पोखर का जीर्णोद्धार तथा फर्श का पक्कीकरण जैसे कुछ नव निर्माण तो हुए हैं परंतु सभी उंट के मुंह में जीरा जैसी कहावत को चरितार्थ करने वाली ही साबित हो पायी है.
विशाल परिसर के लिए नहीं बन रही योजना:मंदिर परिसर लगभग 30 बीघे में फैला हुआ है.विशाल भू -भाग पर्यटक को आकर्षित करने के लिए न तो बिहार राज्य धार्मिक न्यास वोर्ड कोई मैप तैयार कर रही है और न ही बिहार सरकार के संबंधित विभाग ही इस ओर ध्यान दे पा रहा है.
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