रख – रखाव और सुरक्षा के अभाव में क्षरित हो रही हैं मंदार की चट्टानों पर बनी देवी देवताओं की मूर्तियां.
मनोज उपाध्याय
बांका : पौराणिक मंदार पर्वत पर बिखरे पड़े ध्वंसावशेषों की तरह सैकड़ों भित्ति चित्र भी उत्कीर्ण है. ये भित्ति चित्र लगभग संपूर्ण मंदार पर्वत की चट्टानों पर उत्कीर्ण है. माना जाता है कि मूर्तियों की ही शक्ल में उत्कीर्ण ये भित्ति चित्र गुप्त काल से लेकर पाल वंश के राजाओं के काल तक के है.
पाल वंश की रानी कोण देवी द्वारा पापहरणी सरोवर का निर्माण कराये जाने का भी उल्लेख इतिहास में मिलता है. इससे माना जाता है कि मंदार की तराई में पापहरणी की खुदाई के काल में ही ज्यादातर भित्ति चित्र मंदार की चट्टानों पर बने.
मंदार पर बने इन भित्ती मूर्तियों की संख्या सैकड़ों में हैं. लेकिन आवश्यक रख – रखाव एवं संरक्षण के अभाव में ये उत्कीर्ण शिला मूर्तियां नष्ट होने के कगार पर है. इनमें से जैन संप्रदाय से जुड़ी मूर्तियों का तो फिर भी जब तब रख रखाव हो जाता है लेकिन सनातन मूर्तियों को देखने वाला कोई नहीं. मकर संक्रांति के अवसर पर यहां जुटने वाली भारी भीड़ की पूजा पाठ के कारण इन मूर्तियों पर लगे सिंदूर और सामग्री मूर्तियों के अस्तित्व को ही नुकसान पहुंचा रहे है. नरसिंह गुफा के पास ऐसी दर्जनों भित्ती मूर्तियां है जिन तक आम लोगों की पहुंच नहीं. ये काफी ऊंचाई पर चट्टानों पर स्थित है. इन्हें दूर से ही देखा जा सकता है. आंधी बारिश में हालांकि इनकी भी सूरत अब बिगड़ती चली जा रही है. फिर भी दूसरी भित्ती चित्रों से इनकी स्थिति बेहतर है.
सीता कुंड और शंख कुंड से लेकर मंदार शिखर स्थित विष्णु पद मंदिर तक के राश्ते में दोनों ओर अनेक स्थानों पर दर्जनों प्रस्तर उत्कीर्ण मूर्तियां उपेक्षा के अभाव में अंतिम सांसें ले रही हैं.
ऐसी मूर्तियां संपूर्ण मंदार पर्वत पर फैली हुई है. इन्हें देखने वाला कोई नहीं है. इनमें विभिन्न सनातन देवी – देवताओं और जैन मुनियों की मूर्तियां शामिल हैं. कहने को बार-बार मंदार को पर्यटन के राष्ट्रीय नक्शे पर शामिल करने की दिशा में मुहिम चलाने की बात की जाती है.
लेकिन सच तो यह है कि यहां के पौराणिक धरोहरों और ध्वंसावशेषों तक की निगरानी और संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. मंदार की तराई में ही अनेक पौराणिक ध्वंसावशेष संरक्षण के अभाव में बर्बाद हो चुके हैं और कई बर्बादी के कगार पर है. इनमें लखदीपा मंदिर, फगडोल, कामधेनू मंंदिर, ऋषि आश्रम आदि शामिल है. अगर उनकी संरक्षा और हिफाजत के लिए शीघ्र कदम नहीं उठाये गये तो मंदार की पौराणिकता और ऐतिहासिकता के गवाह इन धरोहरों का वजूद मिट जायेगा.