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स्कूल को दान दी जमीन, चार दशक बीते, पर नहीं जुड़ा नाम

धोरैया: 81 डिसमिल जमीन विद्यालय को दान में देने के बावजूद अब तक भूमिदाता का नाम विद्यालय के नाम के साथ नहीं जोड़ा गया है़ मामला धोरैया प्रखंड के बटसार उच्च विद्यालय का है़ वर्ष 1971 में बाजार बटसार ग्राम निवासी नारायण भगत ने सीओ धोरैया के नाम से उक्त भूमि दान स्वरूप विद्यालय के […]

धोरैया: 81 डिसमिल जमीन विद्यालय को दान में देने के बावजूद अब तक भूमिदाता का नाम विद्यालय के नाम के साथ नहीं जोड़ा गया है़ मामला धोरैया प्रखंड के बटसार उच्च विद्यालय का है़ वर्ष 1971 में बाजार बटसार ग्राम निवासी नारायण भगत ने सीओ धोरैया के नाम से उक्त भूमि दान स्वरूप विद्यालय के नाम से दी थी़ पर, चार दशक बाद भी आज तक भूमिदाता का नाम विद्यालय के नाम से नहीं जोड़ा गया है़ इससे भूमिदाता के परिजनों समेत ग्रामीणों में नाराजगी है़. हालांकि नियम के अनुसार दान देने के समय ही भूमिदाता का नाम विद्यालय के नाम से जुट जाना चाहिये था़.
इंतजार करते-करते स्वर्ग सिधार गये
ब्रिटिश काल में घोघा से लेकर बोदरा महेशपुर तक 30 किमी के क्षेत्र में मात्र तीन ही स्कूल हुआ करते था़ ताड़र, बटसार एवं बोदरा महेशपुर, बटसार उच्च विद्यालय ब्रिटिश काल से ही है़ बटसार हाइस्कूल की नींव 22 डिसमिल में ही थी़ भूमि की कमी को देखते हुए ही स्थानीय प्रशासन, विद्यालय प्रधान समेत तत्कालीन समिति के अनुरोध पर नारायण भगत ने स्कूल के लिए जमीन दान में दी थी़ जमीन दान देने के बाद नारायण भगत अपना नाम विद्यालय के नाम के साथ जोड़ने हेतु कई बार आवेदन विभाग को दिये, लेकिन नाम नहीं जुड़ा. वर्ष 1990 में भूमिदाता के निधन के बाद उनके पुत्र राम सिंहासन भगत ने कागजी कार्रवाई को आगे बढ़ाना शुरू किया़ मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक गुहार लगायी़ इसके बाद कभी मानव संसाधन विभाग, तो कभी बिहार सरकार द्वारा पत्रंक के माध्यम से जानकारी मिलती रही कि आज फला अधिकारी ने जांच की़ बावजूद अब तक न तो शिक्षा विभाग और न शासन की ओर से नाम जोड़ने की पहल की गयी. अब तक कई बार बीइओ, बीडीओ, सीओ से लेकर डीइओ तक मामले की जांच कर भूमिदाता का नाम विद्यालय के नाम के साथ जोड़ने के लिए अपना मंतव्य माध्यमिक शिक्षा विभाग पटना के निदेशक को भी भेज चुके हैं़ पर, कार्रवाई शून्य है.
नहीं दी सूचना, हो गया निर्माण
दान में दिये गये भूमि के आलोक में सरकार व भूमिदाता के बीच हुए एकरारनामा में इस बात का जिक्र है कि उक्त भूमि पर किसी तरह का भी निर्माण कार्य बिना भूमिदाता से पूछे नहीं होगा़ बावजूद इसके पुराने जीर्ण शीर्ण भवन को तोड़ कर नया भवन बना दिया गया़ इसकी सूचना भूमिदाता के पुत्र ने तत्कालीन जिलाधिकारी को भी दी थी़.
कहते हैं भूमिदाता के पुत्र
भूमिदाता के पुत्र राम सिंहासन भगत ने कहा कि सरकार यह बताये कि किस कारण से अब तक उनके पिता का नाम विद्यालय के साथ नहीं जोड़ा गया़ अगर नाम जोड़ने की प्रक्रिया में सरकार को किसी प्रकार की कानूनी अड़चन आ रही है, तो चार दशक का किराया तथा वर्तमान में भूमि की कीमत सरकार अदा कऱे अन्यथा बाध्य हो कर न्यायालय में याचिका दायर करूंगा़ अन्यथा परिवार के एक सदस्य का समिति में नाम तथा स्कूल का नाम नारायण भगत उच्च विद्यालय होना चाहिये था़.

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