जैन साधु के लिए विश्व की सारी महिलाएं मां बहन व पुत्री के समान
औरंगाबाद (ग्रामीण) : जैन साधु-साध्वी जहां भी जाते हैं, वहां अपने आचार -विचार प्रसाद जन सामान्य को भी यथासंभव देते है. इनके उपदेश श्रवणार्थ कोई फीस या प्रवेश शुल्क नहीं होता. श्रीमंत गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, शहरी-ग्रामीण, बाल-वृद्ध,जैन-अजैन हर कोई इनका परिचय कर सकता है और धर्मोपदेश सुन भी सकता है.
जैन साधु-साध्वी इलेक्ट्रिक या इलेक्ट्रॉनिक्स कोई भी उपकरण या साधनों का इस्तेमाल नहीं करते. चाहे कितनी गरमी हो वे एसी या पंखा नहीं चलायेंगे. कड़ाके की ठंड में भी अंगिठी या हीटर का प्रयोग नहीं करते. सभी जीवों की रक्षा करना ही जैन धर्म का उद्देश्य है. जैन साधु के लिए विश्व की सारी महिलाएं अपनी मां, बहन व पुत्री के समान है.
ये बातें अयोध्या से जीटी रोड के रास्ते पारसनाथ लौट रहे जैन धर्मावलंबियों के जत्थे में शामिल निर्मल दर्शन विजय ने कही. एक माह पहले लगभग 50 साधू और साध्वियों का एक जैन जत्था उतरप्रदेश के अयोध्या स्थित भगवान आदिनाथ के जन्म स्थली गया हुआ था. अयोध्या से पैदल चलते हुए शुक्रवार की शाम औरंगाबाद पहुंचे और ओरा के समीप रात में विश्राम किया. इस जैन धर्मावलंबियों के जत्था में आचार्य श्री कृतियश सूरी जी और चर्चित मॉडल से साध्वी बनी समदेग प्रज्ञाश्री साध्वी भी शामिल थी.
पता चला है कि समदेग प्रज्ञाश्री अमेरिका में फैशन डिजाइनर का काम करती थी. लगभग आठ लाख डॉलर के पैकेज को ठुकरा कर जैन धर्म को अपना कर साध्वी बन गयी. प्रभात खबर प्रतिनिधि ने उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने सिर्फ यही कहा कि सभी जीवों की रक्षा करो,सभी अपने है. निर्मल दर्शन विजय ने बताया कि 30 नवंबर को कोलकता पहुंचेंगे.
हमारा उदेश्य पूरा जीवन पैदल चल कर सभी जीवों की रक्षा करना है. हिंसा से कैसे बचे यह प्रयत्न करना है. अगर आप दुखी होना न चाहते हो तो दूसरो को दुख मत दो. माता-पिता की सेवा के साथ देव गुरू की भक्ति करने में ही विश्व का कल्याण होगा.